उज्जैन। सिंहस्थ में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने व्यवस्थाएं अच्छी जुटाई, लेकिन राजधर्म का पालन करने से चूक गए। चूंकि अखाड़ा परिषद अध्यक्ष शैव संप्रदाय से थे तो मुख्यमंत्री ने सारा ध्यान उन्हीं पर लगा दिया, वैष्णवों के साथ उपेक्षा करते रहें। इस तरह से एक ही जगह पर केंद्रित होकर उन्होंने अपने राजकीय व प्रशासकीय स्वभाव पर प्रश्नचिह्न लगा लिया। भेदभाव की इस राजनीति के कारण सीएम से आधा मेला भी छूटा रहा। जाहिर है मंगलनाथ क्षेत्र के जिन संतों के साथ यह पक्षपात हुआ वे उन्हें शाप भी दे रहे होंगे। मुख्यमंत्री की यह दोहरी नीति उनके अस्तित्व के लिए खतरा भी साबित हो सकती है। यही नहीं यह मुद्दा विधानसभा में उठ सकता है।
यह बात नीलगंगा चौराहा स्थित श्रीरामधाम पर आयोजित सिंहस्थ समापन समारोह के अवसर पर रामानंदाचार्य पीठ पंचगंगा वाराणसी के जगद्गरू रामनरेशाचार्यजी महाराज ने कही। एक सवाल के जवाब में जगद्गुरू रामनरेशाचार्यजी ने यह भी कहा कि यदि भाजपा व उसके संगठन के लोग यह सोच रहे हैं कि वे सिंहस्थ में चंद महात्माओं को भरोसे में लेकर उत्तरप्रदेश की राजनीति प्रभावित कर देंगे, वहां उनके सहारे से सत्ता पर काबिज हो जाएंगे तो यह दोनों ही पक्षों की सबसे बड़ी भूल हैं। क्योंकि ऐसा कुछ होने वाला नही हैं।
राम मंदिर को एजेंडे से हटाने पर महात्मा आहत
जगद्गुरू रामनरेशाचार्यजी महाराज ने कहा कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो लगा था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा लेकिन राम मंदिर को एजेंडे से ही हटा दिए जाने सारे महात्मा आहत है। वे समझ गए कि यह सरकार ठीक नहीं है। वैसे भी अयोध्या में एक भी काम भाजपा ने नहीं करवाया। मंदिर के ताले कांग्रेस के ही राज में खुले और ढांचा ढहा। रामजी के नाम पर ही कांग्रेस ध्वस्त हुई हैं और भाजपा भी उसी नक्शे कदम पर चल रही है।
धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वास कायम
जगद्गुरू रामनरेशाचार्यजी महाराज ने इस बात पर प्रशन्नता व्यक्त की कि जिस तरह से राजनीतिक व पारिवारिक क्षेत्र में गिरावट आई हैं उसके विपरीत धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में अभी भी लोगों की आस्था और विश्वास कायम है। इसका उदाहरण सिंहस्थ महाकुंभ में उमड़े जन सैलाब को देखने से मिला। लगा कि धर्मभूमि, विश्वगुरूभूमि, संतों की भूमि यहीं हैं और कहीं नहीं।
यहां जताई सुधार की जरूरत
8 धर्म, सनातन परंपरा और वैध-पुराणों के जिन मूल्यों एवं विचारों के आधार पर यह मेला लगता है उसके विपरीत सोच के लोग यहां नहीं आने चाहिए।
शंकराचार्यों को अखाड़ों ने दरकिनार कर रखा था यह ठीक नहीं। पहल यह हो कि अखाड़े शंकराचार्य को आगे कर उनके मार्गदर्शन में कार्य करें। सत्ताधारी भी उनका सम्मान करें।
वैष्णव परंपराओं में भी आचार्य धर्म का पालन करवाया जाए।
लाल कपड़ा पहने मेले में आने वाला हर सख्श संत नहीं होता, वह उग्रवादी भी हो सकता है इसलिए हर किसी पर भरोसा नहीं किया जाए। प्रवेश पूर्व जांच-पड़ताल हो।
सीएम मेले से ज्यादा अपने प्रचार में लगे रहें। उन्हें किसी को भी निमंत्रण देने नहीं जाना चाहिए था। विदेशी लोग जो गोमांस खाते हो उन्हें तो मेले की सीमा में प्रवेश तक नहीं देना चाहिए था।
रुपए लेकर महामंडलेश्वर और खालसे बनाए जा रहे हैं। यह परिपाटी भविष्य के लिए घातक है। इस पर तुरंत रोक लगना चाहिए।
अखाड़ों में नकली नागा शामिल हो रहें हैं उन पर भी रोक लगे।
स्नान के दौरान संतों के साथ भक्तों का प्रवेश नहीं होना चाहिए।
मेले का समापन होते ही पंडाल व शिविरों में चोरियां होने लगी। गैंग आ रही हैं और सामान चोरी कर रही हैं। यह सरकार पर कलंक है। अन्य प्रांतों में तो ऐसा नहीं होता है। मेले का ऐसा समापन ठीक नहीं।
मेले में सही लोग दबे रहे,गलत उभरकर आए
जगद्गुरू रामनरेशाचार्यजी महाराज ने महीनेभर के मेले के अनुभव के आधार पर बहुत कुछ सुधार की अपेक्षा जताई। कहीं शासन स्तर पर तो कहीं संत समाज के स्तर पर। वे बोले की इस कुंभ में सहीं लोग दबे रहे और गलत उभरकर आए। यह परिपाटी ठीक नहीं है। उन्होंने कुछ बिंदुओं में सुधार के लिए ध्यानाकर्षण करवाया। समारोह के दौरान ट्रस्टी संजय मंगल, तुलसी मनवानी, विजय मित्तल आदि ने जगद्गुरू का स्वागत सम्मान किया।