उज्जैन। सदी के द्वितीय सिंहस्थ के द्वितीय शाही स्नान से पूर्व बाल नागा साधु को उनके गुरु द्वारा गुरुवार को दीक्षा दी जाएगी। सनातन धर्म में 16 संस्कारों का पालन किया जाता है। इसी तरह नागा साधुओं के जीवन में भी कुछ महत्वपूर्ण संस्कार होते हैं। इन महत्वपूर्ण संस्कारों की दीक्षा इन्हें विधि-विधानपूर्वक दी जाएगी। नागा साधु बनने से पूर्व उनका पिंडदान कराया जाता है। इसके पश्चात अत्यंत गुप्त संस्कारों से बाल नागा साधुओं को सिद्ध मंत्रों के साथ साधना के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया जाता है। ऐसे ये हजारों बाल नागा दीक्षा लेकर 9 मई के अमृत स्नान से नागा जीवन की ओर प्रवृत्त होंगे। गुप्त संस्कार की तैयारी जूना अखाड़ा में कई दिनों से चल रही है।
शरीर पर भभूति रूपी मंत्र चढ़ाते-उतारते हैं नागा
नागा साधु भभूति को एक मंत्र के रूप में उपयोग करते हैं। जमना किनारे जन्मे निर्भयसिंह गिरिजी बताते हैं भभूति अनेक औषधीय सामग्रियों से परिपूर्ण होती है। नागा इन औषधियों को अपने शरीर पर एक कवच वस्त्र और मन में मंत्र के उच्चारण को लेकर उतारते हैं और चढ़ाते हैं। नागा साधुओं के जीवन में यूं तो मंत्रों का चढ़ाना और उतारना प्रतिदिन चलता ही रहता है, पर कई नागा साधु ऐसे होते हैं जो केवल कुंभ या सिंहस्थ के दौरान ही शाही स्नान करते हैं जबकि कुछ केवल सिंहस्थ में ही स्नान को महत्व देते हैं। एक सामान्य नागा साधु अपने जीवन में लाखों बार मंत्रों को उतारने और चढ़ाने का कार्य करता है।