उज्जैन से विनोद शर्मा। ये सेवा का महाकुंभ है। मां शिप्रा और नर्मदा मिलकर इस महाकुंभ का गौरव बढ़ा रही हैं, तो संतों के साथ ही सामाजिक संस्थाएं सेवा के लिए आगे आई हैं। लाखों लोग अन्नक्षेत्र में प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं, तो हजारों लोग यहीं संत-महात्माओं के सान्निध्य में डेरा जमाए हुए हैं। सेवादार इन्हें सारी सुविधाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। जांच और प्राथमिक उपचार से लेकर आॅपरेशन थिएटर की व्यवस्थाएं भी यहां की गई हैं।
अन्न क्षेत्र बड़ा आधार
सिंहस्थ में आए तकरीबन सभी बड़े संत, महंत और सामाजिक संगठनों ने अपने प्रकल्प या कैंप में अन्न क्षेत्र (भंडारा और प्रसाद वितरण) की व्यवस्था की है। छोटे-छोटे प्रकल्पों में भी संतों, महंतों और श्रद्धालुओं को भोजन कराया जा रहा है। आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो छह जोन में सिंहस्थ में करीब 1200 कैंप में भोजन की व्यवस्था है। औसत हर कैंप में सुबह-शाम एक हजार लोगों को भोजन मिल रहा है, तो इसका मतलब यह है कि हर दिन 12 लाख लोगों के खाने की व्यवस्था तो इन कैंपों में ही हो चुकी है। मानें 30 दिन में 4.50 करोड़ लोग कैंप में प्रसाद पाएंगे।
श्रद्धालुओं का फायदा, पुण्य के साथ बचत भी
उज्जैन में खाने की सबसे सस्ती प्लेट 40 रुपए की है। उसकी और अन्न क्षेत्र में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता में जमीन-आसमान का अंतर भी है। 40 रुपए के हिसाब से ही जोड़ें तो 12 लाख लोग हर दिन छह करोड़ और पूरे सिंहस्थ में 144 करोड़ का खाना खाएंगे। यानी संतों के आशीर्वाद के साथ ही होटल के महंगे खाने से भी मुक्ति। उल्लेखनीय यह है कि संतों को जो राशन का सरकारी कोटा मिला है, उसमें अन्न क्षेत्र के लिए अनाज नहीं दिया गया है। अनाज सिर्फ आश्रम में रहने वाले स्थायी सदस्यों को ही दिया जा रहा है। हालांकि अन्न क्षेत्र के अन्न की व्यवस्था भी दानदाताओं ने ही की है।
ध्यान सेहत का भी
प्रखर परोपकारी मिशन की सहयोगी संस्था है सेवाधाम जो कि सिंहस्थ में आने वालों को न सिर्फ भोजन कराएगी, बल्कि यह भी ध्यान रखेगी कि उन्हें लू न लगे। इसके लिए हर दिन 10 क्विंटल केरी का पना वितरित किया जाएगा। इस अन्नक्षेत्र में गैस का इस्तेमाल नहीं होगा। यहां खाना चूल्हे और लकड़ी से बनेगा। कई स्थानों पर छाछ का वितरण हो रहा है। कुछ स्थानों पर पताशे बांटे जा रहे हैं।
आवास सुविधा
सिंहस्थ में पधारे तकरीबन हर बड़े संत-महंत ने सिंहस्थ में आने वाले अपने साधकों के ठहरने की व्यवस्था की है। किसी ने घास-फूस की कुटिया में लाइट-पंखे-कूलर की व्यवस्था कर दी है तो किसी की कुटिया में वीआईपी ट्रीटमेंट के मद्देनजर एसी और बाथरूम फिटिंग तक है। एसी और नॉन एसी टेंट और तम्बू भी तैयार हैं। वहीं बड़ी तादाद में प्लायवुड के कमरे बने हैं जो एसी व नॉन एसी हैं। मेला क्षेत्र में तकरीबन 20 हजार कुटिया और कमरे बनाए गए हैं। यहां 40 हजार से अधिक लोगों को ठहराया जा सकता है।
इतनी सारी व्यवस्था
प्रखर परोपकार मिशन ने 72 बेड का हॉस्पिटल बनाया। प्रभु प्रेमी संघ ने 10 बेड का हॉस्पिटल स्थापित किया है, इसमें ओम नम: शिवाय मिशन चार बेड लगाएगा। जांच और सलाइन चढ़ाने के साथ ही एम्बुलेंस तक की व्यवस्था भी होगी। ऐसी व्यवस्थाएं दो दर्जन कैंप में है। नारायण सेवा संस्थान विकलांगों को उपकरण वितरित करेगा। उपकरण देकर विकलांगों को शिप्रा स्नान कराने की जिम्मेदारी ली है स्वामी चिदानंद सरस्वती के परमार्थ निकेतन आश्रम ने। श्री पंच तेरह भाई त्यागी खालसे की योग चेतना विज्ञान धर्मार्थ सेवा संस्थान भी नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा दे रहा है।
चेंजिंग रूम तक बना दिए
सामाजिक और व्यावसायिक संस्थाओं ने नदी किनारे महिला और पुरुषों के लिए चेंजिंग रूम तक बना दिए हैं, ताकि कपड़े बदलने में किसी को असुविधा न हो।
जलसेवा की आई बाढ़
उज्जैन में सरकारी प्याऊ स्थापित किए गए हैं, वहीं सामाजिक संस्थाएं भी इसमें पीछे नहीं रहीं। श्री धाकड़ समाज सिंहस्थ प्याऊ समिति ने जल मंदिर, मप्र वैश्य कल्याण ट्रस्ट ने अमृत जल प्याऊ, अग्रवाल समाज सिंहस्थ समिति ने 500 से अधिक वॉटर हट बनाई हंै। मेला क्षेत्र और शहर में प्याऊ की संख्या 1000 से अधिक है। प्याऊ में आरओ का पानी मिल रहा है।
मजदूरों का पूरा ध्यान
इंदौर की सेवा भारती ने भी मैदान संभाल लिया है। सेवा भारती ने भूखी माता क्षेत्र में अपना प्रकल्प बनाया है, जहां स्वयं को सनातन धर्म से अलग मानने वाले वनवासियों और आदिवासियों को उज्जैन लाकर ठहराने, खिलाने-पिलाने और शिप्रा स्नान कराकर दोबारा घर तक छोड़ने की जिम्मेदारी संगठन ने ली है। रोटेशन में हर दिन 200 वनवासियों को लाया और घर छोड़ा जाएगा। सिंहस्थ में 6000 वनवासियों को शिप्रा स्नान कराने का संकल्प है। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण परिषद ने भी सिंहस्थ से 21 जिलों के वनवासियों को जोड़ा है।