एक गर्म दोपहरी के दिन एक किसान बांसों के झुरमुट में बनी हुई जेन गुरु की कुटिया के पास रुका। उसने गुरु को एक वृक्ष के नीचे बैठे देखा। किसान ने चिंतित स्वर में जेन गुरु से कहा, खेती की हालत बहुत बुरी है। मुझे डर है कि इस साल गुजारा नहीं होगा। तुम्हें चाहिए कि तुम पत्थरों को पानी दो, जेन गुरु ने कहा। किसान ने जेन गुरु से पूछा कि इस बात का क्या अर्थ है। कुछ समझ में नहीं आया। गुरु किसान की बात पर थोड़ा हंसे और कुछ देर तक किसान की तरफ देखते रहे। फिर जेन गुरु ने कहा, एक कहानी सुनो।
किसान सुनने के अंदाज में पसर कर बैठ गया। इसके बाद गुरु ने उसे जो कहानी सुनाई, उसका सार यह था, कोई किसान किसी जेन गुरु की कुटिया के पास से गुजरा और उसने देखा कि गुरु एक बाल्टी में पानी ले जा रहे थे। किसान ने उनसे पूछा कि वे पानी कहां ले जा रहे हैं। गुरु ने किसान को बताया कि वे पत्थरों को पानी देते हैं, ताकि एक दिन उन पर वृक्ष उगें। किसान को बहुत आश्चर्य हुआ और वह आदर प्रदर्शित करते हुए झटपट वहां से मुस्कराते हुए चला गया। जेन गुरु प्रतिदिन पत्थरों को पानी देते रहे और कुछ दिनों में पत्थरों पर काई उग आई।
काई में बीज आ गिरे और अंकुरित हो गए। क्या यह कहानी सच है, किसान ने कौतूहल से पूछा। किसान के सवाल में आशा और प्रतीक्षा के साथ जिज्ञासा के स्वर भी झलक रहे थे। जेन गुरु ने उस वृक्ष की ओर इशारा किया, जिसके नीचे वह बैठे थे। किसान भी वहीं बैठकर उस कहानी पर मनन करने लगा। उसे लगा, सींचते रहने से पत्थरों पर भी कुछ उगाया और हरा-भरा किया जा सकता है, तो बारिश की क्या चिंता करना। उसके चेहरे पर शांति और सांत्वना के भाव झलकने लगे थे।