हमें अपने शहरी ट्रेफिक को सुधारने के लिए नए सिरे से सोचना होगा। होता यह है कि समस्याएं हमारी अपनी होती हैं और हल हम विदेशों से ढूंढते हैं। दिल्ली में पैसा है, पैसा है तो कारें हैं। कारें हैं तो ट्रेफिक जाम है, धुंआ है, प्रदूषण है। दिल्ली सरकार ने इस प्रदूषण को दूर करने के लिए 'सम-विषम हल' खोजा है। खोजा है कहना ठीक नहीं, विदेशों से आयातित किया है। सवाल बस एक है कि यदि दिल्ली के सभी लोग सोच लें कि हमें इस फामूर्ले पर अमल नहीं करना है, तो क्या होगा? क्या ट्रेफिक पुलिस लाखों कारों का चालान बना सकती है? क्या लाखों कारों को जब्त किया जा सकता है? फिलहाल तो दिल्ली वाले इसलिए साथ दे रहे हैं कि मीडिया उत्साह दिखा रहा है। बाद में जब मीडिया का उत्साह खत्म हो जाएगा, तब क्या होगा? जब लोगों को दिक्कत होना शुरू होगी, तब क्या होगा?
वे अमीर लोग जिनके पास सम संख्या की गाड़ी है, वे एक और गाड़ी खरीद लेंगे विषम संख्या वाली और जिनके पास विषम संख्या वाली गाड़ी है, वे सम संख्या वाली उठा लाएंगे, तब क्या करेंगे? धीरे-धीरे कारें फिर उतनी की उतनी हो जाएंगी। फिर नया कानून बनेगा कि जिसके पास एक कार है, वो दूसरी नहीं खरीद सकता। लोग अपने परिवार के अन्य व्यक्ति के नाम से कार खरीदेंगे। यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। हर अच्छी योजना का बंटाढार करने में हम बेमिसाल हैं, बे जोड़ हैं। कई देशों में ट्रेफिक सिगनल हटा लिए गए हैं।
बहुत अध्ययनों के बाद ऐसा किया गया है। अध्ययन बताता है कि जिन चौराहों पर ट्रेफिक सिगनल नही है, वहां जाम नहीं लगता। क्यों? क्योंकि लोग अपनी सुविधा के हिसाब से जगह बना लेते हैं और सुरक्षित निकल जाते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि जिस सड़क पर एक भी वाहन नहीं है, वहां देर तक हरी बत्ती जल रही है और जहां वाहनों की कतार लगी है, उधर लाल बत्ती है। अगर हमारे शहरों की बात की जाए, तो जितनी मेहनत ट्रेफिक पुलिस चौराहों पर करती है, उतनी अगर अतिक्रमण हटाने और रास्ते में दुकान लगाने वालों को पकड़ने में करे, तो आधी से ज्यादा समस्या हल हो सकती है। आॅड इवन फॉर्मूला अहमदाबाद में भी अपनाने की तैयारी हो रही है। मगर इसे अपनाने में जल्दबाजी न करते हुए इसे सब्र से देखा जाना जरूरी है। बहुत लोगों को इससे असुविधा भी हो रही होगी, जो आगे सामने आएगी।