तुअर दाल की कीमतों में कमी नहीं आने के बीच एसोचैम द्वारा चावल के दामों में भी उछाल आने की आशंका जताने से परेशान नागरिकों को महाराष्ट्र सरकार की एक योजना राहत प्रदान करने वाली है। राज्य सरकार 16 जिलों में तुअर उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाएगी, जिसके अंतर्गत लाभार्थी किसानों को तुअर बीज तथा दवा छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेयर 1500 रु. की मदद दी जाएगी। राज्य सरकार ने दिवाली के पहले सौ रु. किलो की दर से तुअर दाल उपलब्ध कराने का दावा किया था, किंतु हकीकत यह है कि तुअर दाल के भाव आज भी आसमान छू रहे हैं। इस समस्या के आगे भी जल्दी सुलझने के संकेत नहीं हैं क्योंकि इस साल राज्यभर में कुल 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तुअर बुआई का लक्ष्य सरकार द्वारा रखा गया था, जबकि अक्तूबर माह तक राज्य में केवल 4.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही तुअर की बुआई किए जाने की जानकारी सामने आई है।
उधर उद्योग मंडल एसोचैम की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि आगामी महीनों में चावल की कीमतों में उबाल आ सकता है। दाल और चावल दोनों ही गरीबों से लेकर अमीरों तक सबके लिए बुनियादी खाद्य पदार्थ हैं। बाकी वस्तुओं के महंगे होने पर उनके इस्तेमाल में कटौती की भी जा सकती है, किंतु दाल-चावल में कैसे कटौती की जाए? इसके बिना तो पेट ही नहीं भरेगा। दरअसल जिस तरह से कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा की गई है, यह उसी का नतीजा लगता है। आज हालत ऐसी हो गई है कि कोई भी खेती नहीं करना चाहता, क्योंकि वह फायदे का सौदा नहीं रह गया है. किसानों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. शायद इसी संकट को भांपते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे प्रमुख क्षेत्र बताते हुए उत्पादन बढ.ाने के लिए खेतों तक तकनीक को लाए जाने की अपील की है। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलना और उन्हें अपनी पैदावार को बेचने के लिए उचित बाजार मिलना भी बेहद जरूरी है जिससे यह क्षेत्र भी मुनाफा कमाने वाला क्षेत्र बन सके।
हरित क्रांति के पहले हमारे देश में कई तरह की दालें हुआ करती थी, और हम दाल के प्रमुख उत्पादक देश थे। इसके बावजूद हमारी कृषि नीतियों में दाल उत्पादन पर जोर नहीं रहा। नतीजतन हरित क्रांति के दौर में खाद्य तेल और दालों का आयात तेजी से बढ़ा। जो परंपरागत मिश्रित खेती पद्धती और फसल चक्र थे, उसे हरित क्रांति ने बुरी तरह नुकसान पहुंचाया। इससे भी दलहन व तिलहन की उपलब्धता बहुत कम हो गई। राष्ट्रपति की यह नसीहत हालात की गंभीरता को सही तरीके से बयां करती है। कारण जो भी रहे हों, कृषि क्षेत्र लगातार घाटे का सौदा बनता गया है और इसीलिए युवा पीढ़ी इससे मुंह मोड़ती गई है। लेकिन अन्य क्षेत्रों में हम कितनी भी तरक्की कर लें, पेट तो सबका अनाज से ही भरेगा! इसलिए कृषि क्षेत्र पर ध्यान देना जरूरी है। वैज्ञानिक प्रगति का समुचित लाभ कृषि क्षेत्र को मिलेगा तभी आए दिन पैदा होने वाला खाद्यान्न संकट दूर हो सकेगा।