26 Apr 2024, 20:05:13 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

शास्त्र कहते हैं कि ‘शिव: अभिषेक प्रिय:’। अर्थात् शिव को अभिषेक अति प्रिय है। ब्रह्म का विग्रह रूप ही शिव हैं। ‘रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्र:’ अर्थात जो सभी प्रकार के ‘रुत’ दुखों को विनष्ट कर देते हैं, वे ही रुद्र हैं। ईश्वर, शिव, रुद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। इन शिव की शक्ति शिवा हैं। इनमें सतोगुण जगत पालक विष्णु एवं रजोगुण सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं। श्वास वेद हैं। सूर्य-चंद्र नेत्र हैं। वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं। विशाल जटाओं में सभी नदियों, पर्वतों और तीर्थों का वास है, जहां सृष्टि के सभी ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या में लीन रहते हैं। वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मे ईश्वर शिव के श्वास से निकले हैं,

इसीलिए वेद मंत्रों द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी उनकी कृपा सहजता से प्राप्त कर लेता है। शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, ‘रुद्राष्टाध्यायी’ है, जिसमें आठ अध्यायों में कुल 176 मंत्र हैं। इन्हीं मंत्रों द्वारा रुद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है। रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों में सभी देवी-देवताओं की स्तुति समाहित है। तभी ‘रुद्राभिषेक’ से सारे देवी-देवताओं के अभिषेक का फल भी उसी क्षण मिल जाता है। रुद्राभिषेक में सृष्टि की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने की शक्ति है। इसलिए अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से रुद्राभिषेक करके मनोरथ पूर्ण किया जा सकता है। रुद्राभिषेक से ग्रह-गोचर अनुकूल होने लगते हैं और घर में सकारात्मकता आती है।

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