27 Apr 2024, 00:51:49 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

आद्य शंकराचार्य ने कहा था- 'मोक्ष कारणं समग्रयां भक्तिरेव गरियसि।' अर्थात तमाम पथ और पद्धति में भक्ति का स्थान सर्वोच्च है। इसलिए एक आदमी बुद्धिजीवी हो सकता है और नहीं भी हो सकता। कोई व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में प्रतिष्ठित नहीं भी है, तो भी वह मुक्ति को प्राप्त कर सकता है, यदि उसमें भक्ति है। सच कहा जाए तो ज्ञान अथवा बौद्धिक प्रयास एक पथ है।

कर्म भी एक पथ है, लेकिन भक्ति एक पथ नहीं, लक्ष्य है। महान दार्शनिक के रूप में शंकराचार्य ने कहा है- एक भक्त क्या करेगा? दुर्जन की संगत छोड़ देनी होगी। दुर्जन कौन है? एक मनुष्य, जिसका संग अन्य लोगों के लिए अध:पतन का कारण है, उसे दुर्जन कहा जाता है। मान लो, तुम्हारे भीतर 15 डिग्री पुण्य है और दूसरे मनुष्य के अंदर 20 डिग्री पाप है। तो इसका तुलनात्मक परिणाम क्या होगा?

इसका तुलनात्मक परिणाम होगा पांच डिग्री पाप, जो तुम अर्जित करोगे। अत: वह व्यक्ति जिसका पाप 20 डिग्री है, वह तुम्हारे लिए दुर्जन है। यदि एक संत, जो 80 डिग्री पुण्य से युक्त है, उस बुरे आदमी के सम्पर्क में आता है, जिसमें 20 डिग्री पाप है तो वहां क्या होगा? तब वह बुरा आदमी एक अच्छा आदमी बन जाएगा।

लेकिन अगर तुम उस बुरे आदमी के सम्पर्क में आए तो तुम एक बुरे आदमी बन जाओगे, क्योंकि उसके दुगुर्णों की डिग्री तुम्हारे गुणों से बहुत अधिक है। इसलिए  दुर्जनों को संगति से बचना होगा। इसीलिए शंकराचार्य का निर्देश कि उन व्यक्तियों के संसर्ग से दूर रहो, जो दुर्जन हैं।
 

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