प्राणायाम परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है। सभी ऋषि-मुनि, योगी इसी के सहारे शरीर में मौजूद सात चक्रों को एक के बाद एक प्राप्त कर लेते हैं। इसकी तीन विधियां हैं। सर्वप्रथम पूरक है। इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक का दायां छेद बंद किया जाता है। उसके बाद बाएं छेद से वायु को अंदर खींचना होता है।इस प्रक्रिया के दौरान आपको अपनी नाभि में मौजूद नीलकमल दल के समान सांवले भगवान विष्णु का ध्यान करना है।
अपनी सांस रोके रखें। इसके बाद प्राणायाम की दूसरी विधि कुंभक है। फिर अनामिका उंगली और कनिष्ठिका उंगलियों से नाक के बाएं छेद को बंद करके सांस रोकें। इस दौरान हृदय के बीच कमल आसन पर विराजमान अरुण-गौर मिश्रित वर्ण के भगवान ब्रह्माजी का ध्यान करें। यहां ध्यान रखें कि अपनी सांस आपको रोके रखनी है। अंतिम और तीसरी विधि है रेचक। इसमें आपको अंगूठा हटा कर नाक के दाहिने छेद से वायु को धीरे-धीरे निकालना होगा। इसमें आपको शुद्ध स्फटिक के समान और मस्तक पर विराजमान सफेद रंग के भगवान शिव का ध्यान करना है। इन तीनों को मिला कर एक प्राणायाम होता है।
पूरक, कुंभक और रेचक करते समय जो मंत्र बोला जाता है, वह इस प्रकार है- ओम् भू: ओम् भुव: ओम् स्व: ओम् मह: ओम् जन: ओम् तप: ओम् सत्यम् ओम् तत्सवितुर्वरेण्यं भगरे देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। ओम् आपो ज्योति रसो अमृतं ब्रह्म भूभरुव: स्वरोम्॥ प्राणायाम की तीनों विधियों को करते समय इस मंत्र का कम से कम एक बार या तीन बार तो पाठ करना ही चाहिए। इनका अभ्यास हो जाए तो आप मंत्र का पाठ बढ़ा भी सकते हैं।