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नारी के प्रति मातृत्व भाव लाना ही सच्चा पुरुषार्थ

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 3 2015 5:28PM | Updated Date: Apr 3 2015 5:28PM
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यह बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद की चर्चा दुनियाभर में फैल चुकी थी। उनके विचारों को लेकर हर जगह विचार-विमर्श चल रहा था। उन्हें एक आदर्श के रूप में स्थापित होता देख एक विदेशी महिला बहुत प्रभावित हुई। उसने स्वामी विवेकानंद से विवाह करने का मन बना लिया। बस, इसके बाद वह हरदम उन्हीं के बारे में सोचती रहती। संयोग से एक दिन स्वामी विवेकानंद एक सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे तो उसने उनसे मिलने की ठान ली। वह किसी तरह उसी स्थान पर जा पहुंची जहां सम्मेलन हो रहा था।
 
 
महिला स्वामीजी के समीप जाकर निर्भीकता से बोली, 'स्वामीजी, मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं।' स्वामी विवेकानंद ने उससे पूछा, 'क्यों, विवाह तुम आखिर मुझसे ही क्यों करना चाहती हो? क्या तुम यह नहीं जानती कि मैं तो एक संन्यासी हूं?' महिला ने पूरी विनम्रता से कहा, 'देखिए, बात ये है कि मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजमय पुत्र चाहती हूं और वह तो तभी संभव होगा, जब आप मुझसे विवाह करेंगे।'
 
 
यह सुनकर स्वामी विवेकानंद ने उत्तर दिया, 'देखो, हमारी शादी तो संभव नहीं है, परंतु एक उपाय अवश्य है।' महिला बोली, 'कैसा उपाय?' स्वामी विवेकानंद बोले, 'आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं और आप मेरी मां बन जाएं। आपको मेरे जैसा पुत्र मिल जाएगा।' विवेकानंद की यह बात सुनकर विदेशी महिला उनके चरणों पर गिर पड़ी और बोली, 'स्वामीजी, सचमुच आप साक्षात ईश्वर के रूप हैं।' इसे कहते हैं पुरुष और ये होता है पुरुषार्थ। सच्चा पुरुषार्थ तभी होता है जब पुरुष नारी के प्रति अपने मन में पुत्र जैसा भाव ला सके और उसमें मातृत्व की भावना उत्पन्न कर सके।
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