19 Mar 2024, 10:59:03 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

उस बड़ी बहन के लिए यह रास्ता कितना कठिन और दुर्गम था। पर, वह पैदल 100 किलोमीटर चलकर न्यायालय के दरवाजे पर पहुंची वह भी केवल इसलिए कि उसकी छोेटी बहन को न्याय मिल सके। अब पूरी बात करते हैं। ओडिशा के कंधमाल जिले में दूर एक गांव स्थित है। उसमें जानकी पारिचा नाम की एक महिला बेहद गरीबी में रह रही है। कुछ वर्ष पहले उस गांव के पास वाले गांव के रसूखदार और बिगड़ैलों ने उसकी छोटी बहन के साथ जो अभी मात्र 16 वर्ष की थी सामूहिक बलात्कार किया और उसकी हत्या भी कर दी। जानकी को न मालूम किसने परामर्श दिया कि वह पुलिस थाने जाए और इसकी रिपोर्ट करे और न्यायालय तक अपनी बात पहुंचाए। पुलिस ने केस बना कर न्यायालय में याचिका लगा दी। इसके विस्तार के बारे में समाचार में तो कुछ नहीं बताया गया पर, इतना जरूर बताया गया है कि काफी दिन बीत जाने के बाद उसे न्यायालय से एक आदेश आया कि वह अपराधियों के विरुद्ध और इस घटना के लिए गवाही देने कोर्ट में आए। यह भी पता नहीं कि किसने उसे परामर्श दिया होगा कि वह अपनी बहन के साथ हुए दुर्दान्त व्यवहार के लिए गवाही देने कोर्ट में जरूर जाए। उसने अपनी बहन को न्याय दिलवाने के लिए कोर्ट जाना मंजूर कर लिया। पर, उसके सुदूर के गांव से कोर्ट बहुत लंबी दूरी पर था। उसे 100 किलोमीटर से भी अधिक रास्ता तय करना था। वहां तक  बस तो जाती थी पर, बस में 250 रुपए किराया जाने का और इतने ही रुपए का वापिस लौटने का भी था, जिसे वह कतई वहन नहीं कर सकती थी, उसने अपनी बड़ी लड़की और उससे छोटे बेटे के साथ पैदल कोर्ट जाने के लिए निश्चय कर लिया। उनके पैरों में जूते चप्पल भी नहीं थे। वह बहन नंगे पैर यह दुर्गम रास्ता तय करने के लिए निकल पड़ी कि शायद उसकी गवाही से उसकी बहन को न्याय मिल सके। सौ किलोमीटर का रास्ता उसने पैदल चला और तब उसे बीच रास्ते में एक सहायक मिल गया। उसने उसकी परेशानी समझी और कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचा दिया। जब वह कोर्ट पहुंची तब वकीलों को उसका यह पैदल चलने का लंबा सफर पता चला। उनमें से एक वकील ने उसका केस बिना फ ीस लिए लड़ने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं वहां उपस्थित कुछ लोगों ने उसकी सहायता के लिए धन राशि देने का निश्चय किया। और इस तरह उसके लिए 5000 हजार रुपए इकठ्ठे हो गए जो उसे दे दिए और यह तय किया गया कि जब भी जानकी को उपस्थित होने के लिए कोर्ट आॅर्डर मिलेगा तो कोई न कोई वकील या अन्य उसे अपने वाहन से कोर्ट लाने की व्यवस्था करेगा।

बहुत ही आश्चर्यजनक है हमारी यह दुनिया। जहां एक ओर दुर्दान्त अपराधी ऐसा निकृष्ट कर्म करते हैं तो दूसरी ओर सहायता करने वालों के मन में कितनी करुणा और संवेदनाएं भरी हुई हैं कि जानकी का कष्ट और उसकी स्थिति को जानकर तुरंत उसकी सहायता कर दी। जानकी का पैदल 100 किलोमीटर का सफर कहीं मन को आहत कर देता है कि आज भी सुदूर गांवों में रहने वाले कहीं आने-जाने के लिए इतनी भी राशि खर्च करने में सक्षम नहीं हैं। परमल की पोटली बांधकर उसे फांकते हुए सौ किलोमीटर का जानकी का यह सफर व्यथित कर देता है कि आज भी इस चकाचौंध वाले थोड़े से माहौल में वह अंधेरा भी मौजूद है जो बहुत घना और व्यापक है। बस एक आशा की किरण यह दिखाई दी है कि मानवीय संवेदनाएं जीवित हैं। तभी तो वकीलों और वहां उपस्थित लोगों ने जानकी के इस कष्ट और पीड़ा को समझा और उसे इस दुर्गम व कठिन रास्ते पर भविष्य में चलने से बचाने का भरपूर प्रयास किया। उन वकीलों को धन्यवाद जो एक महिला को न्याय दिलवाने में इतने समर्पित व सहायक हो गए। जानकी का नाम किसने रखा होगा? वह भी सीता (जानकी की तरह) न्याय पाने के लिए दुर्गम रास्ते पर पैदल चल पड़ी।

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