-वीना नागपाल
सिंहस्थ समाप्त हुआ। बहुत शुभ व सुखद संस्रमण लेकर तीर्थ यात्री गए। विश्वभर में ऐसा समागम अनूठा व विरल ही होगा, या यूं कहें कि अतुलनीय होगा, जहां इतने आध्यात्मिमक स्तर के साथ-साथ अटूट श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था का भी जुड़ाव होता है। श्रवण और दर्शन की ऐसी अनूठी निष्ठा सत्य में चमत्कृत करती है। सिंहस्थ के बारे में जितना कहा जाए कम है।
सिंहस्थ का वास्तविक संबंध तो जल से है। नदी के अविरल प्रवाह के किनारे ही तो यह कुंभ लगता है। कहते हैं देवताओं और असुरों ने जो एक-दूसरे पर विजय प्राप्त करने व अमृत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था उसमें से अमृत कलश भी निकला था, जो अमरत्व का स्त्रोत था। उस अमृत कलश को लेकर जो भागम-भाग मची उसी के फलस्वरूप उस अमृत कलश से छलककर जहां-जहां उस अमृत की बूंदें गिरीं वहीं कुंभ का आयोजन प्रति 12 वर्ष में होता है। उज्जैन में होने वाला यह कुंभ समागम सिंहस्थ है। अमृत कलश से जो बूंदें गिरीं वह भी तो अमृत के रूप में जल ही तो था। ऐसा लगता है हमारे ऋषि-मुनियों ने इस आख्यान द्वारा जल के महत्व को ही स्थापित किया था। वह अमृत की बूंदें भी तो नदियों की विशाल जल राशि वाले स्थानों पर ही गिरीं। ऐसे सुंदर भाव से उन्होंने जल को इतना अधिक महत्व दिया। अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने जल का सम्मान व आदर करना सिखाया, नदियों को पूजनीय बना दिया। उनकी जल राशि को साक्षी बनाकर सबको एकत्रित होना और परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करना सिखाया।
आज जब सूखे की बात होती है तो जल का महत्व समझ में आता है, जिसे पूजनीय बनाकर हमारी पौराणिक गाथाओं में वर्णन किया गया था, आज उसी अमृत कलश की बूंदों के लिए हम तरस रहे हैं। पता नहीं कितना श्रम किया जा रहा है कि थोड़ी सी मात्रा में ही सही पर कहीं जल मिल जाए, जो वास्तव में अमृत की भांति दुर्लभ हो गया है। उस अमृत की कुछ बूंदों के लिए पशु-पक्षी तक तरस रहे हैं। धरती में दरारें पड़ गई हैं, पेड़ तक ठूंठ बन कर रह गए हैं। उन सबको अमृत कलश से निकली व छिटकीं जल की बूंदों की तलाश है। सबके कंठों से अब एक ही पी-पी पपीहे की तरह पानी की बूंद पाने के लिए स्वर निकलते हैं। सिंहस्थ के इस मेले मेंं सबने मिलकर शिप्रा की जिस जल राशि में स्नान किया उसने एक ही संदेश दिया कि उस अमृत कलश को ढूंढ़ो व उसे प्राप्त करो, जिससे प्यासे कंठों की प्यास बुझ सके और मनुष्यों व पशु तथा पक्षियों आदि सभी प्राणियों के जीवन की रक्षा हो सके।
अमृत कलश का यह अमृत किस प्रकार मिलेगा। इसका एक ही उपाय है-वर्षा की एक-एक बूंद को सहेजें। हालांकि वर्षा भी अब कम होने लगी है और किसी-किसी स्थान पर तो आंखें आस में आसमान की तरफ देखती हैं, पर बादल घिरते और बरसते ही नहीं हैं। पर फिर भी जहां भी और जैसे भी संभव हो आकाश से मिलने वाले अमृत पर ही आशा टिकी है। दो ही उपाय हैं, एक तो इस अमृत के स्त्रोत अर्थात वृक्षों की रक्षा की जाए, उन्हें अधिक से अधिक रोपा जाए और फिर अमृत बरसाने वाली बूंदों को सहेजा जाए। इसमें महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बहुत जरूरी है, क्योंकि पानी के अभाव में उन्हें सबसे अधिक त्रास झेलना पड़ता है। महिलाएं किसी भी स्तर या किसी भी वर्ग की क्यों न हों, नगरों की हों या गांवों की वर्षा के जल को सहेजने का प्रत्येक प्रयास करें, यही सिंहस्थ के अमृत कलश की बूंदें हैं।