तुम भी न... गजल लिखने वाली मशहूर शायर अमरीन हसीब अंबर बोलीं
- गौरीशंकर दुबे
जसविंदर सिंह द्वारा गाई गजल तुम भी न...की रचना करने वाली पाकिस्तानी शायर अमरीन हसीब अंबर ने कहा कि पाकिस्तान में शायरी के रैकेट नहीं चलते। पाकिस्तान में होने वाले मुशायरों में भारत की तरह शायरों को पैसा नहीं दिया जाता।
इंदौर लिटरेचल फेस्टिवल में भाग लेने आईं अमरीन ने कराची से ताल्लुक रखती हैं और उनके पिता सहा अंसारी देश के जाने माने शायर हैं। अमरीन ने स्कूली शिक्षा साइंस से की। कॉर्मस से स्नातक हैं और उर्दू में पीएचडी की। वे होम्योपैथी डॉक्टर भी हैं, लेकिन शायरी प्रैक्टिस की फुरसत नहीं देती। अमरीन पहली बार इंदौर आईं और इससे पहले चार बार भारत आ चुकी हैं। नईदिल्ली, जयपुर, उदयपुुर और पटना में वे पढ़ चुकी हैं। भारतीय संस्कृति से खासी प्रभावित अमरीन कहती हैं कि बस हमारे बीच एक दीवार का फर्क है, बाकी वही सब है वहां है, जो यहां है। भारत में दर्जनों भाषा हैं, तो पाकिस्तान में भी उर्दू इकलौती नहीं है। पाकिस्तानी की निहारी और जामा मस्जिद नईदिल्ली के रेस्टोरेंट में परोसी जाने वाली निहारी में रत्तीभर का फर्क नहीं है। मौसम का मिजाज भी लगभग समान है। अमरीन कहती हैं, अपने मुल्क को हर कोई अपने दिल की नजरों से देखता है, लेकिन भारत ने पिछले 15 साल में तीव्रतम गति से विकास किया है, चाहे वह सड़कों को लेकर हो, महंगी कारों को लेकर हो, लोगों के पहनावे को लेकर या शिक्षाय का खानपान को लेकर हो। अमरीन कहती हैं लॉलीवुड अभी पनप रहा है, इसलिए बॉलीवुड से उसकी तुलना नहीं की जा सकती। वहां भी बॉलीवुड लॉलीवुड पर भारी है। रफी साहब, लताजी, अमिताभ बच्चन, सलमान खान, अन्ना हजारे और सचिन तेंडुलकर सहित कला , राजनीति और खेल जगत की हस्तियों को वहां दिल की आंखों से देखा जाता है। अवाम सियासती बातों के फेर में नहीं आती, इसलिए बजरंगी भाईजान देखने के बाद हरेक पाकिस्तानी की आंख में आंसू थे।
अमरीन से बातचीत के संपादित अंश :
- शायर और शायरी का धर्म किसे कहेंगी...?
- जो लिखा जाए, वह इंसानियत की खातिर हो, क्योंकि एटम बम से कोई पाकिस्तान में मरे या भारत में, मरेगा तो इंसान ही।
- भारत में साहित्यकार अवॉर्ड वापस कर रहे हैं...?
- बहिष्कार का यह तरीका लेखकों को शोभा नहीं देता। अपना विरोध दर्ज कराने के लिए हमे अवॉर्ड की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए।
- शायरी कहां जा रही है...?
- सही दिशा में है, जैसा कि पीढ़ियों से चलता आ रहा है। जब हम युवा थे, तो कहा जाता था पढ़ते लिखते नहीं हो, लेकिन आज भी लाखों युवाओं का जुड़ाव इससे है, जो भविष्य को संभालेंगे। भारत और पाकिस्तान के युवाओं की तारीफ करना चाहिए कि वे साहस के साथ सच्चाई लिख रहे हैं।
- सच्चाई से लिखने के मायने...?
- मेरे पिता शायर सहा अंसारी ने सिखाया था कि अच्छा पढ़ो, तभी अच्छा लिख पाओगे। सौ लाइन पढ़ो तो एक लाइन लिखो। आज कई शायर फैशन, टेक्नोलॉजी और राजनीति से प्रेरित होकर लिख रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है, अच्छा लिखने के लिए दिल की आवाज सुनना जरूरी है। एटम बम बनाने वाले एक आदमी था और हम हैं कि उसके खिलाफ लिखने के बजाय मरने मारने पर उतारू हैं। हर देश ने क्यों होड़ से एटम बम बनाया...?
- मुनव्वर राना कहते हैं कि मां पर उनके द्वारा लिखे गए हजार शेर पर पाकिस्तान के ताबिश अब्बास का एक शेर भारी है...?
- राना साहब की अपनी राय है, लेकिन पाकिस्तान में मां को लेकर उनके द्वारा किया गया महिमा मंडन दिल से स्वीकार किया जाता है। यह भी सच है कि ताबिश का शेर -बहुत दिनों से मेरी मां सोई नहीं है ताबिश...एक बार मैंने कहा था मुझे डर लगता है...बच्चे -बच्चे की जुबां पर है।
- आचार्य रजनीश कह गए हैं कि कश्मीर समस्या हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि भारत पाकिस्तान की राजनीति का अस्तित्व ही उसपर टिका है...?
- वे सही कह गए हैं और अंग्रेज हमे लड़वा गए हैं। हम सब जानते समझते हैं, लेकिन लड़ना नहीं छोड़ेंगे।
- परवीन शाकिर के बारे में क्या कहेंगी...?
- उन्होंने औरत के जज्बात की नुमाइंदगी खालिस अंदाज में की है।
- पीयूष मिश्राजी की रचना ...ओ हुस्ना मेरी ये तो बता दो...भारत में जो कोई सुनता है, आंखे नम हो जाती हैं। क्या पाकिस्तान में भी यही हाल है...?
- हां, बिल्कुल। वो आंख भिगोने वाला गीत है।
तुम भी न...
ध्यान में आक बैठ गये हो तुम भी न...
मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी न...
इश्क ने यूं दोनों को हमआमेज किया...
अब तो तुम भी कह देते हो तुम भी न...
कर जाते हो कोई शरारत चुपके से...
चलो हटो तुम बहुत बहुत बुरे हो तुम भी न...
मांग रहे हो रूखसत मुझसे...
और खुद भी हाथ में हाथ लिए बैठो हो तुम भी न...
खुद ही कहो अब कैसे संवर सकती हूं मैं...
आईने में तुम भी होते हो तुम भी न...
दे जाते हो मुझको कितने रंग नए...
जैसे पहली बार मिले हो तुम भी न...