26 Apr 2024, 12:51:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-कैलाश विजयवर्गीय
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हजार-पांच सौ के नोट बंद करने के खिलाफ विरोधी दलों के विरोध-प्रदर्शनों को जनता का समर्थन नहीं मिला रहा है। यह अलग बात है कि आम लोगों की दिक्कतों के बहाने कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, वामपंथी दल, राष्ट्रीय जनता दल, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस समेत कई दलों ने विरोध जताने के लिए मार्च निकाले। वामदलों ने तो भारत बंद का नारा दिया था। नोटबंदी के खिलाफ भारत बंद करने का दावा करने वाले तो पश्चिम बंगाल में ही बंद नहीं करा पाए। बंद के दिन पश्चिम बंगाल में सभी कारखानों और दफ्तरों में कामकाज हुआ, बाजार खुले और लोग आम दिनों की तरह अपने काम पर गए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी तो नोटबंदी के बहाने ऐसे जता रही है जैसे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के खिलाफ उन्हें कोई बड़ा हथियार मिल गया हो।

ममता बनर्जी पूरे देश में केंद्र सरकार के खिलाफ रैलियां कर रही हैं। जिन दलों के सहारे वह अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाना चाहती हैं, उन दलों ने उनके मंच की शोभा बनने से इंकार कर दिया। सच तो यही है कि जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार, बीजू जनता के नेता और ओडिशा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक, अन्नाद्रमुक की नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता का साथ भी ममता को इस मुद्दे पर नहीं मिला। कांग्रेस तो इस मुद्दे पर रोजाना अपना रवैया बदलती रही। पहले कांग्रेस ने नोटबंदी का समर्थन किया तो बाद में लगातार विरोध का आलाप गाती रही। कांग्रेस के नेताओं को तो समझ ही नहीं आ रहा है कि दूसरे सर्जिकल स्ट्राइक का जवाब कैसे दें। पहले सर्जिकल स्ट्राइल पर भ्रमित प्रतिक्रिया देने की तरह नोटबंदी को लेकर भी कांग्रेस के नेता दिग्भ्रमित लग रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और आम आदमी पार्टी के संयोजक तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नोटबंदी पर विलाप तो जनता को भी समझ में आ रहा है। बसपा की कमरों में भरी माया अब केवल कागज बन कर रह गई है। विरोधी दलों के भारत बंद से जदयू तो पूरी तरह अलग ही नहीं रही बल्कि नीतीश कुमार ने नोटबंदी का खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने बेनामी संपत्ति के खिलाफ भी प्रधानमंत्री के बयान की प्रशंसा की है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रधानमंत्री को सत्ता से बेदखल करने का ऐलान करने वाली ममता को अपने ही राज्य में विपक्षी दलों का साथ नहीं मिला। ममता ने कहा है कि मैं यह शपथ लेती हूं कि मैं मरूं या जिंदा रहूं, लेकिन पीएम मोदी को भारतीय राजनीति से हटाकर दम लूंगी। प्रधानमंत्री आवास के बाहर भी प्रदर्शन करने का ऐलान करते हुए ममता ने कहा है कि अगर नोटबंदी का फैसला वापस नहीं लिया जाता है तो वह मोदी को सत्ता से हटा देंगी। कम से कम मुख्यमंत्री के पद बैठे किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के खिलाफ इस तरह बोलना तो शोभा नहीं देता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी पर विपक्षी दलों को निशाने पर लेने के बाद तो कई नेताओं की बोलती बंद हो गई थी। यह तो सभी जानते हैं कि 80 फीसदी से ज्यादा आम लोग नकदी की किल्लत से परेशानी के बावजूद प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर रहे हैं। दरअसल नेताओं की परेशानी के कारण तो उनके अपने कुछ निजी कारण हैं। रही बात भारत बंद को समर्थन मिलने की तो हर जगह बाजार खुले रहे, वाहन चलते रहे और लोगों ने विरोधी दलों के नारों को पूरी तरह नकार दिया। इसी कारण नोटबंदी के खिलाफ बंगाल बंद के फैसले को वाममोर्चा ने गलत करार दिया है। मोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस को भारत बंद का ऐलान करने का अब बहुत मलाल हो रहा है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने विमान बोस के इस बयान पर कह रहे हैं कि यह अच्छी बात है कि वाममोर्चा को यह बात समझ में आई कि जनता बंद और हड़ताल से तंग आ चुकी है। वाम मोर्चा तो समझ गया पर तृणमूल कांग्रेस के नेता कब समझेंगे कि देश नोटबंदी के साथ है, विरोध में नहीं। ममता बनर्जी की रैलियां जनता को तो छोड़िए विपक्ष को ही एकजुट नहीं कर पा रही हैं। कांग्रेस और वामपंथी दलों ने तो पहले ममता बनर्जी को अपनी दीदी मानने से ही इंकार कर दिया है। ऐसे में एकला ही चलना पड़ेगा ममता बनर्जी को। अब देखिए, कांग्रेसी नेताओं की नासमझी के नजारे। जब से नोटबंदी हुई है, रोजाना बयानबाजी तो बदलती रही है साथ ही यह भी भूल गए क्या आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा नेताओं को नोटबंदी के फैसले के बारे पता था और उससे पहले कई जिलों में जमीन खरीदी गई है। एक तरफ कह रहे हैं कि भाजपा नेताओं को प्रधानमंत्री के फैसले के बारे में पता था, दूसरी तरफ संसद में आरोप लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी विश्वास में नहीं लिया। कम से कम कांग्रेस के नेताओं को काले धन से जमीन खरीदने का आरोप लगाने से पहले यह तो तय कर लेना चाहिए था कि जब प्रधानमंत्री पर वित्त मंत्री से भी चर्चा न करने का आरोप लगा रहे हैं तो फिर भाजपा नेताओं को नोटबंदी के फैसले के बारे में कैसे पता होगा। दरअसल, लगातार चुनावी झटकों के कारण कांग्रेस के नेता दिल बहलाने को फिजूल आरोप लगा रहे हैं।

जमीन खरीदने का सच तो यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले साल ही फैसला किया था कि हर जिले में संगठन कार्यालय हो और उसी फैसले के तहत जमीनें खरीदी गईं। कांग्रेस के नेताओं को समझ ही नहीं आ रहा है कि कोई प्रधानमंत्री इस तरह कड़ा फैसला भी लागू कर सकता है। विरोध कर रहे दलों के नेताओं को तो कालेधन के खिलाफ प्रधानमंत्री की आगे की मुहिम से और झटका लगने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के सांसदों-विधायकों को अपने खातों की जानकारी देने का कहा है। भाजपा के सभी सांसदों-विधायकों को 8 नवंबर से 31 दिसंबर तक की खातों की जानकारी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को देनी है। क्या किसी और दल में इतनी ताकत और एकजुटता है। काले धन के खिलाफ बोलने वाले किसी दल के नेता में इतनी ताकत है कि वह अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों से खातों का हिसाब-किताब मांग सके। ऐसा केवल भाजपा में ही हो सकता है।

कांग्रेस की तो चुनावों में भी लगातार बुरी हालत हो रही है। अब तो कांग्रेस के अच्छे दिन आने की कोई उम्मीद भी नहीं है। अच्छे दिनों के कारण ही जनता लगातार भाजपा का समर्थन कर रही है। हाल ही हुए लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों में भाजपा को मध्य प्रदेश और असम में तो जीत मिली ही पश्चिम बंगाल में भी पार्टी दूसरे नंबर पर पहुंच गई। तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा और विधानसभा की सीटें तो जीती हैं पर दूसरे नंबर रही भाजपा के वोट बैंक में भारी बढ़त हुई है। वाममोर्चा तो तीसरे नंबर पहुंच गया। कूचबिहार लोकसभा सीट पर भाजपा का वोट 16.4 से बढ़कर 28.5 फीसदी हो गया है और तामलुक लोकसभा सीट पर भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में  6.4 फीसदी वोट मिंले थे और अब 15.25 फीसदी वोट मिले हैं। कांग्रेस की सभी जगह जमानत जब्त हो गई। यही वजह है ममता बनर्जी के विरोध की भी। भाजपा की बढ़त से ममता परेशान है। कांग्रेस के नेता अपने बुरे दिनों के कारण और परेशान हो रहे हैं। अगर देश नोटबंदी के खिलाफ होता तो महाराष्ट्र के पहले चरण के नगर परिषद के चुनावों में भाजपा 147 सीटों में से 57 पर जीत हासिल नहीं होती। नोटबंदी के बाद सभी दलों ने इसे मुद्दा बनाकर यहां चुनाव प्रचार किया था। अब यह तो तय हो गया है कि जनता नोटबंदी के खिलाफ नहीं है, केवल कुछ राजनीतिक दल अपने जमा नोटों को बचाने के लिए संसद और सड़क पर हल्ला मचा रहे हैं।

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