-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों पंजाब के बठिंडा में एक रैली को संबोधित करते हुए यह कहकर कि सिंधु जल की एक-एक बंूद को पाकिस्तान जाने से रोका जाएगा और यह पानी पंजाब के किसानों को मिलेगा, पाकिस्तान को संकेत दे दिया है कि भारत सिंधु जल संधि को तोड़ सकता है। सतलुज-यमुना संपर्क नहर के पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा में संग्राम छिड़ा हुआ है। इस संग्राम में राजस्थान और दिल्ली प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए जरूरी था कि वह पानी के मसले पर बोलें।
वास्तव में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद से ही केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को जवाब देने की रणनीति के तहत सिंधु नदी के जल पर विकल्पों को आजमाना शुरू कर दिया था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर जल संधि पर समीक्षा के लिए अहम बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने कड़ा रुख दिखाते हुए कहा था कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते। इसी बैठक में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों की फिर से समीक्षा करने को कहा था। सरकार का विचार है कि तुलबुल परियोजना को शुरू किया जा सकता है ताकि पाकिस्तान को ज्यादा पानी लेने से रोका जा सके।
पाकिस्तान का एक बड़ा इलाका सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर, 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्टÑपति जनरल अयूब खान ने इस समझौते पर मुहर लगाई थी। संधि के मुताबिक भारत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, सतलुज, व्यास और रावी नदी का पानी देगा। मौजूदा समय में इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी व्यर्थ चला जाता है। अगर भारत ने इन नदियों का पानी पाकिस्तान को देना बंद कर दिया तो पाकिस्तान की कृषि भूमि सूख जाएगी और जल आधारित उद्योग धंधे चौपट हो जाएंगे, क्योंकि पाकिस्तान की आधी से ज्यादा खेती इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है।
सिंधु जल संधि के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हुए। दोनों देशों के बीच पहली जंग 1965 में हुई। 1971 में बंगलादेश की आजादी की जंग हुई और 1999 में कारगिल युद्ध हुआ। तब से लेकर आज तक पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कई बार भारत को दहलाया। 2001 में भारतीय संसद पर हमला, 2008 में 26/11 आतंकी हमला, गुरदासपुर के दीनानगर में पुलिस स्टेशन पर आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले समेत कई बड़े आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तानी आतंकवादियों का हाथ रहा। इस सबके बावजूद सिंधु जल संधि बदस्तूर जारी रही। हालांकि 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस संधि को खत्म करने की मांग जरूर उठी थी, लेकिन भारत ने जीयो और जीने दो के सिद्धांत का पालन किया, लेकिन पाकिस्तान द्वारा भारत को एक हजार घाव देने की नीति पर चलने के कारण उसे पूरी दुनिया से अलग-थलग खड़ा करने की रणनीति पर विचार किया जाने लगा है। इस बात पर विचार किया जा रहा है कि उसे कैसे सबक सिखाया जाए। भारत ने 1960 में यह सोचकर पाकिस्तान से संधि पर हस्ताक्षर किए थे कि उसे जल के बदले में शांति मिलेगी, लेकिन संधि के अमल के पांच साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया।
वास्तव में पानी का मसला पंजाब के लिए बहुत संवेदनशील और जज्बाती है। पंजाब का कहना है कि उसके खुद के पास पानी नहीं, राज्य के अधिकांश खंडों में भूमिगत जल स्तर काफी गिर गया है, इसलिए पंजाब, हरियाणा व अन्य राज्यों को पानी दे ही नहीं सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना लिंक नहर निर्माण के मामले में हरियाणा के पक्ष में फैसला देते हुए कहा है कि पंजाब को दूसरे राज्यों से हुआ जल समझौता एकतरफा रद्द करने का अधिकार नहीं है। क्षेत्रीय और जल विवाद के चलते अकालियों के कपूरी मोर्चा के दौरान हुई हिंसा के बाद आंदोलन खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों के हाथों में चला गया था और पंजाब ने आतंकवाद के काले दिनों को देखा था।
लोगों की नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे पर लगी थीं और उन्होंने पंजाब में जलसंकट के समाधान हेतु सिंधु नदी के व्यर्थ हो रहे पानी को पंजाब को देने की बात कही है। क्या भारत इस समझौते को रद्द कर सकता है या नहीं? इस पर विशेषज्ञों में मतभेद हैं लेकिन भारत सरकार का कहना है कि कोई भी संधि दोनों पक्षों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास पर टिकी होती है, लेकिन अगर पाकिस्तान भारत को तबाह करने के लिए लगातार साजिशें रच रहा है तो फिर भारत को सद्भावना दिखाने की कोई जरूरत नहीं। इस संधि से तो भारत को ही नुकसान हो रहा है।
ऐसी संधि का लाभ क्या है। अगर भारत संधि को रद्द करता है तो हो सकता है कि वैश्विक स्तर पर उसकी आलोचना हो लेकिन भारत इतना तो कर सकता है कि वह पश्चिमी नदियों के पानी का भंडारण शुरू कर दे। संधि के तहत इसकी इजाजत है और भारत 36 लाख एकड़ फीट का इस्तेमाल कर सकता है। सरकार को ऐसी रणनीति बनानी चाहिए कि सिंधु की बूंद-बूंद की बचत की जाए और उस पानी से पंजाब और जम्मू-कश्मीर की कृषि भूमि में हरियाली लाई जाए।
सिंधु नदी जल समझौते को लेकर पाकिस्तान यह दावा कर रहा है कि भारत को ऐसा करने का अधिकार नहीं। सिंधु बेसिन समेत सभी नदियों का स्रोत भारत में है। पाकिस्तान यदि भारत में आतंकवादी हिंसा बंद नहीं करता तो भारत को अपनी रक्षा के लिए सिंधु नदी का पानी रोकने का पूरा अधिकार है। प्रधानमंत्री के शब्दों से समझौता टूटने की आशंका पैदा हो गई है। भारत का जनमानस चाहता है कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ऐसा किया जाना चाहिए। खून और पानी साथ न बहें, इसके लिए मोदी सरकार को कड़े कदम उठाने ही होंगे।