27 Apr 2024, 01:11:54 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

जब से करंसी का विप्लव हुआ है तब से समाज का प्रत्येक वर्ग किसी न किसी प्रतिक्रिया से अवश्य गुजरा है। सब ने इस संघर्ष में भाग लिया है। इसमें महिलाओं को भी किस प्रकार भागीदारी करनी पड़ी है उससे कोई अंजान नहीं है। प्रत्येक परिवार की महिलाओं ने अपने सहयोग व योगदान का एक बहुत बड़ा हिस्सा स्वयं वहन किया है।

हम सब जानते हंै कि करंसी बदलाने के लिए बैंकों के आगे लंबी-लंबी लाइन लगी रहीं। इन लाइनों में अच्छी-खासी संख्या महिलाओं की भी रही। यदि घर के पुरुष लाइन में थे तो महिलाओं ने भी साथ में खड़े होकर अपनी भागीदारी दर्ज कराई। महिलाओं के लिए केवल सुबह-सवेरे से लाइन में खड़े होने का काम नहीं था घर की जिम्मेदारी भी उन पर थी। इसमें कोई कमी नहीं थी। उन्हें परिवार के लिए खाना भी तैयार करना था। बच्चों को तैयार करके स्कूल भी भेजना था। उनके व घर के पुरुष के लिए टिफिन भी बनाकर साथ देना था। जिन घरों में सुबह पानी आता है और दिनभर उसी पानी पर निर्भर रहना होता है तो उसे भी जल्दी-जल्दी उठकर भरकर रखना पड़ा। घर में उन्होंने जरा भी अव्यवस्था नहीं आने दी और सारे काम निपटाकर करंसी बदलवाने के लिए लाइन में भी खड़ी रहीं। न तो उनके माथे पर शिकन आई और न ही इस स्थिति से चिढ़कर उन्होंने आपा खोया। बहुत शांति से लाइन में लगकर उन्होंने अपनी बारी आने की प्रतीक्षा की। लाइन में लगने के दौरान उन्होंने देर-सवेर की कोई शिकायत नहीं की और न ही वह अपने किसी दुर्व्यवहार के कारण सुर्खियों में आईं। दिनभर लाइन में लगने के बाद जब कभी-कभी शाम होने तक वह घर लौटी तो पुन: घर के कामों को उसी शक्ति व जोश से पूरा किया। कई बार तो उन्हें अगले दिन भी लाइन में लगना था वह उसी उत्साह से दोबारा वहां जाकर खड़ी हो गईं। उन्होंने न तो अपने घर की जिम्मेदारी की अनदेखी की और न ही इस अचानक उठ खड़ी होने वाली समस्या को निपटाने में कोई तूफान मचाया।

यह एक ऐसे परिवर्तन का सामना करना था, जिसके लिए पूर्व में तैयारी करने का कोई समय नहीं मिला था। महिलाओं ने इस स्थिति का निपटारा अपनी सूझ-ाूझ और सहनशक्ति से किया। 500 और 1000 के नोट बंदी करने में जो भी और जिन भी पक्षों पर विचार किया गया होगा पर इसके सकारात्मक पक्ष में घर परिवारों की महिलाओं के सक्रिय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। यह उनकी तरफ से भारत की प्रशासकीय व्यवस्था के यज्ञ में कुछ समिधां डालने जैसा था, जिससे कि यज्ञ सफल हो जाए।

भारतीय समाज की महिलाएं समय आने पर किसी चुनौती का सामना करने पर गजब के धैर्य व सहनशीलता का परिचय देती हैं। इसमें उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों और बच्चों की देखभाल की एक क्षण भी उपेक्षा नहीं करतीं। वह इसके लिए किसी की मदद लिए जाने की अपेक्षा भी नहीं करतीं। यह समय तो बीत जाएगा और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा, पर अचानक आई इस उथल-पुथल में महिलाओं ने जिस दृढ़ता व आत्मविश्वास का परिचय दिया उसके लिए वह प्रशंसा की पात्र तो बनी ही हैं, साथ ही उन्हें विशेष धन्यवाद देने की भी जरूरत है। पूर्व से लेकर पश्चिम तक तथा उत्तर से लेकर दक्षिण तक की महिलाओं में एक ही गुण प्रमुखता से सर्वोपरि रहा और वह था उनका धैर्य।

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