26 Apr 2024, 09:38:39 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-दुर्गेश गौर
आर्थिक मामलों के जानकार


चिकित्सा विज्ञान में रक्त का शोधन कई  बीमारियों को ठीक करने का कारगर उपाय है, क्योंकि रक्त शरीर का वह घटक है, जिस पर शरीर की अन्य सभी गतिविधियां निर्भर करती हैं, वैसे ही किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की भूमिका होती है। जो वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य मानक, लेन-देन, तरलता एवं जमा के रूप में कई आर्थिक गतिविधियों का निर्वाह करती है। अत: अगर अर्थव्यवस्था में मुद्रा की भूमिका एवं व्यवस्था में सुधार किया जाए तो यह कई आर्थिक समस्याओं का एकल समाधान साबित हो सकता है, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में 1000 और 500 के नोटों को चलन से बाहर करने पर देखा जा रहा है। नई नकदी को पुन: लोगों की पहुंच में लाना एक जटिल प्रक्रिया है। इससे आजकल आमजन को दो -चार होना पड़ रहा है व पूरे देशभर में वित्तीय प्रतिष्ठानों के आसपास कतारों में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है, परंतु इस तात्कालिक अफरातफरी के कई दूरगामी सुपरिणाम भी होंगे, जो देश को  वैश्विक उठापटक के इस दौर में एक अलग पहचान देते हुए उसे विकास की दिशा में अधिक साधन संपन्न बनाएंगे।

इस क्रम में सर्वप्रथम मुद्रा प्रबंधन के सर्वोच्च संस्थान भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर सरकार की विमुद्रीकरण योजना को समझना होगा। आरबीआई की मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा, ब्याज दरों के रूप में उसके मूल्य एवं विदेशी लेन-देन का नियमन करती है, परंतु गत वर्षों में खासकर 2009 से 14 के बीच हमने पाया कि आरबीआई की मौद्रिक नीति खासी प्रभावहीन प्रतीत हुई है। जहां एक ओर आरबीआई  नकद आरक्षित अनुपात  एवं ब्याज दरों को  बढ़ाकर नकदी के प्रसार को काबू में करते हुए महंगाई घटाने का प्रयास करता रहा, वहीं परिणामस्वरूप  महंगाई उच्च स्तर पर कायम रही। इस दौरान जीडीपी वृद्धि दर में अप्रत्याशित कमी देखी गई।

इस दशा में बहुधा आरबीआई की  मौद्रिक नीति प्रभावहीन हो जाती है, क्योंकि बाजार में व्याप्त कालाधन जिसका कोई लेखा-जोखा वित्तीय व्यवस्था में नहीं होता, ब्याज दरें एवं नकद आरक्षित अनुपात बढ़ाए जाने के बाद भी पहले की तरह ही गैरकानूनी तरीके से अर्थव्यवस्था में व्याप्त रहता है। विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं के साथ शेयर, कमोडिटी व रियल एस्टेट कीमतों को बढ़ाए रखता है, परंतु अब कुल नकदी में 85 प्रतिशत का भाग रखने वाले 1000, 500 के नोटों का चलन से बाहर हो जाना आरबीआई के बिना कुछ किए ही मौद्रिक नीति की एक बड़ी सफलता होगी। अर्थव्यवस्था में बिना हिसाब के उपलब्ध लगभग 30 लाख करोड़ रुपयों के ऊपर यह एक कुठाराघात साबित होगा। इस बीच या तो यह छिपी रकम, 90 प्रतिशत तक फाइन अथवा आयकर विभाग की कठिन जांच के बाद 31 मार्च तक बैंकों में होगी या फिर आरबीआई द्वारा बाकी बची हुई नकदी को निरस्त करके अपनी बैलेंस शीट में नकद संपत्ति के रूप में दर्ज कर लिया जाएगा।  इस कदम के बाद आरबीआई की मौद्रिक नीति उचित नियमन एवं पूर्ण प्रभाव के साथ लागू की जा सकेगी।

अब बात करते हैं घाटे में बनने वाले सरकारी बजट व योजनागत खर्च पर नोटबंदी के होने वाले प्रभावों की। यहां गौरतलब है कि इस वित्तीय वर्ष में हमारा राजकोषीय घाटा 3.9 प्रतिशत अनुमानित है। जिस पर वन रैक वन पेंशन व सातवे वेतनमान जैसी मदों का दबाव है। उच्चऋण जीडीपी अनुपात के साथ ब्याज तथा सब्सिडी खर्च सदैव से हमारे बजट पर एक भार की तरह रहा है। इन सभी खर्चों के साथ पूंजीगत खर्च बढ़ाकर देश की अधोसंरचना, सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा विकास करना असंभव जैसा कार्य है, परंतु पुराने बड़े नोटों का विमुद्रीकरण सरकारी बजट एवं सरकारी वित पोषण के लिए एक जैकपॉट की तरह होगा। एक ओर तो सरकार को अघोषित आय पर 90 प्रतिशत तक टैक्स वसूलने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर चलन से बाहर हो जाने वाली छुपी हुई नकदी भी विमुद्रीकरण के बाद आरबीआई द्वारा सरकार के खाते में ही जानी है। अत: सरकार  को प्रत्यक्ष कर लाभ के साथ मिलने वाली अतिरिक्त आय विभिन्न बजटीय जटिलताओं के बीच संजीवनी बूटी की तरह होगी।

अमीरों के छुपे हुऐ धन से प्राप्त यह भाग देश में गरीबी उन्मूलन की योजनाओं के साथ एक सच्चा समाजवाद साबित होगा। इस तरह सरकार अतिरिक्त बजटीय खर्च बढ़ाकर देश में विकास को तेजी दे सकती है, जो देशी विदेशी निवेशकों के बीच भरोसे का संचार कर देश में निवेश की वृद्धि के साथ रोजगारों के सृजन व  पूंजीबाजारों में गति का कारक होगा। इन परिवर्तनों का असर निकट भविष्य में देश की क्रेडिट रेटिंग में सुधार के रूप में भी देखा जा सकता है।

यहां एक अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक घटक, राष्ट्रीय बचत का जिक्र करना भी लाजिमी होगा। जिसका क्रम गत वर्षों में घटत की ओर रहा है, वहीं इसके विपरीत ऊंची बचत के साथ, नीची ब्याज दरों पर उच्च निवेश वाला माहौल आर्थिक विकास की कुंजी होता है। अत: काले धन पर सरकार की मार के चलते बैंकों में बचत का बढ़ना लंबे अरसे तक ब्याज दरों में घटत के साथ एक मजबूत आर्थिक विकास चक्र का निर्माण करेगा।  

ऊपर जिक्र किए गए विभिन्न आर्थिक प्रभावों के अलावा जाली नोटों की जटिल समस्या, जो बैंकों में जमा के साथ पूरी अर्थव्यवस्था में व्याप्त है,  अब काफी हद तक काबू में आ पाएगी। इसके लिए मोदी और उनकी टीम जुटी हुई है, जिनमें वित्त मंत्री अरुण जेटली और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शामिल हैं। फिलहाल कश्मीर में लंबी उथल-पुथल के बाद कानून व्यवस्था का सुधरना काले धन पर प्रहार के एक अन्य पहलू से अवगत कराता है, वहीं ड्रग्स माफिया, गैरकानूनी हथियारों, सोने व पशुओं के तस्करों समेत कई अनधिकृत आर्थिक एवं अनार्थिक गतिविधियों पर सरकार का यह कदम कई मर्जों के एक इलाज की तरह साबित होगा।

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