26 Apr 2024, 07:55:12 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अनीता वर्मा 
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार


21 वीं शताब्दी में एशिया का अभ्युदय एक नया वैश्विक वृद्धि केंद्र के रूप में हो रहा है चीन और जापान के साथ  भारत  भी इसका केंद्र है। भारत-जापान संबंध ऐसे में काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जब चीन भारत को प्रतिद्वंद्वी मानते हुए उसके विकास के मार्ग में विभिन्न प्रकार से रोड़ा अटकाने का प्रयास करता है। वर्तमान के वैश्विक युग में सतत विकास आंतकवाद, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ड्रग तस्करी आदि जैसे गंभीर मुद्दे से संपूर्ण विश्व जूझ रहा है। ऐसे में यदि एशिया की दो सुदृढ़ अर्थव्यवस्था वाले देशों के सकारात्मक सहयोग से एशिया क्षेत्र में उपजी समस्याओं से काफी हद तक निजात पाया जा सकता है।

वस्तुत: भारत-जापान संबंध काफी प्राचीन और प्रगाढ़ है। जापान भारत का महत्वपूर्ण विश्वसनीय और सहयोगी मित्र है। पिछले दो साल में जापान के साथ आर्थिक गतिविधि बढ़ी है और जापान के साथ संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ करने हेतु प्रधानमंत्री मोदी की तीन दिवसीय (10-12 नवंबर 2016) जापान यात्रा को देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की यह दूसरी यात्रा है। पहली यात्रा सितंबर 2014 में हुई थी। जापान की ओर से भी भारत के साथ निरंतर संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करने की कोशिश की जा रही है। इसी क्रम में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की दिसंबर 2015 की भारत यात्रा को देखा जा सकता है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने जापान के साथ संबधों को सुदृढ़ता प्रदान करने हेतु जापान की तीन दिवसीय यात्रा की। भारतीय प्रधानमंत्री का यह दूसरा दौरा है। भारत को दुनिया की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था बनाने की प्रतिबद्धता जताते हुए प्रधानमंत्री ने जापान के कारोबारियों को भारत में निवेश हेतु आमंत्रित किया। टोक्यो में भारत-जापान शीर्ष कारोबारियों की बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में निवेश से संबंधित सभी समस्याओं को दूर किया जाएगा। भारत को विश्वसनीय नीतियों वाला देश बताया। भारत में जीएसटी पारित होने के पश्चात जापानी कारोबारी भी निवेश हेतु उत्सुक  हैं। यदि जापानी कारोबारी भारत में मेक इन इंडिया हेतु निवेश करते हैं तो  प्रधानमंत्री का जापान दौरा  निवेश और व्यापार को बढ़ाने हेतु मील का पत्थर साबित होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने वहां के सम्राट अकिहितो से मुलाकात कर विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की।  प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा बेहद सफल रही। जापान यात्रा के दौरान देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु भारत और जापान के मध्य  परस्पर सहयोग हेतु 11 नवंबर 2016 को कई  अहम समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। जैसे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्वक उपयोग हेतु असैन्य परमाणु समझौता, शहरी विकास, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, समुद्री सुरक्षा, कौशल विकास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान ,तकनीक अंतरिक्ष, टेक्सटाइल, परिवहन, खेल पर  सहयोग पर समझौते हुए तथा 12 नवंबर 2016 को ह्मोगो हाउस में गुजरात और ह्मोगो प्रांत के मध्य भी करार हुआ। जिससे संबंधों को नया आयाम मिलेगा।वस्तुत: भारत जापान के मध्य परमाणु समझौता भारत हेतु मील का पत्थर है। भारत लंबे अरसे से स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति हेतु जापान का सहयोग चाहता था। इसी क्रम में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की दिसंबर 2015 में भारत यात्रा के दौरान असैन्य परमाणु समझौते को लेकर अटकलें तेज हो गई, लेकिन  उस समय कुछ तकनीकी पहलुओं के कारण समझौता नहीं हो सका। वैसे परमाणु समझौते को लेकर जापान के अंदर लंबे समय से हिचक रही है क्योंकि जापान परमाणु बम के भयावह रूप से परिचित है, लेकिन भारत का विश्व स्तर पर परमाणु ऊर्जा में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री के इस्तेमाल का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड के कारण  टोक्यो में प्रतिनिधिमंडल स्तर के वार्तालाप के पश्चात 11 नवंबर 2016 को दोनों देशों के मध्य असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते से भारत में जापानी कंपनियों के परमाणु रिएक्टर स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया। जापानी संसद के अनुमोदन के पश्चात यह समझौता प्रभावी होगा। भारत ने अमेरिका के साथ भी स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति हेतु असैन्य परमाणु समझौता किया था, लेकिन इस समझौते को व्यावहारिक धरातल पर उतरने में कठिनाई हो रही थी, क्योंकि भारत ने जिन अमेरिकी कंपनियों के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौता किया था, उनको भी जापान की कंपनियां ही तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराती थी। ऐसे में भारत-जापान के बीच असैन्य परमाणु सहयोग समझौता न होने के कारण धरातल पर उतरते नहीं दिखाई पड़ रहा था, लेकिन जापान के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौता होने के पश्चात  यह धरातल पर निश्चित ही दिखाई देगा। अर्थात   भारत  अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग समझौता और भारत जापान के बीच हुए असैन्य परमाणु सहयोग समझौता एक दूसरे के पूरक है। यह समझौता एक तरफ जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत द्वारा पेरिस एग्रीमेंट पर (2 अक्टूबर 2016)   किया गया हस्ताक्षर समझौते की सार्थकता को सिद्ध करता है, तो दूसरी तरफ भारत में गैर परंपरागत रूप से पर्यावरण अनुकूल विद्युत उत्पादन करने का मार्ग प्रशस्त करता है। ज्ञातव्य है कि  जापान-भारत का स्वाभाविक मित्र है। यही कारण है कि भारत द्वारा एनपीटी पर हस्ताक्षर नही करने के बावजूद भी जापान ने भारत पर भरोसा जताते हुए इस समझौते को अमली जामा पहनाने में भारत का सहयोग किया। साथ ही भारत द्वारा लंबे अरसे से एनएसजी और संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता के प्रयास में सहयोग करने की बात कही। प्रधानमंत्री का जापान दौरा बुलेट ट्रेन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण रहा। ज्ञात हो कि भारत में पहला हाई स्पीड ट्रेन कॉरिडोर का निर्माण अहमदाबाद और मुंबई के बीच होना है, जिसका लागत करीब नब्बे लाख करोड़ से एक लाख करोड़ के बीच आंका जा रहा है। इस पर जापान  के प्रधानमंत्री ने तत्परता दिखाते हुए प्रधानमंत्री मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस साल के अंत में अहमदाबाद और मुंबई हाई स्पीड रेलवे परियोजना के डिजाइन का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस परियोजना का शिलान्यास 2017 में  दोनों देशों के प्रधानमंत्री कर सकते हैं।

जापानी प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में हाई स्पीड बुलेट ट्रे न का निर्माण 2018 में शुरू हो जाएगा और 2023 में बुलेट ट्रेन का सौगात भारत को मिल जाएगा। इसके लिए तकनीक हस्तांतरण और कार्यबल का गठन किया जाएगा, जिसमें दोनों देशों के प्रतिनिधि शामिल होगे। दोनों देशों के नेताओं ने हाई स्पीड तकनीक, प्रचालन और रखरखाव पर योजनाबद्ध तरीके से काम करने पर सहमति जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने टोक्यो से कोबे तक बुलेट ट्रेन से यात्रा की। वे कावासाकी भारी उद्योग केंद्र भी गए। जहां बुलेट ट्रेन के इंजन, बोगी, उच्च गति रेल पहिए का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त चीन की आपत्तियों के बावजूद दक्षिण चीन सागर पर दोनों नेताओं ने बातचीत की।

आतंकवाद के मुद्दे पर भारतीय प्रधानमंत्री का कहना है कि आतंकवाद की त्रासदी विशेष कर सीमा पार आंतकवाद से निपटने हेतु भारत-जापान एक हैं। इस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा ऐतिहासिक रही। 

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »