-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक
भारत और ब्रिटेन के व्यापारिक संबंध तो यहां ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से शुरू हुए थे और फिर यह संबंध औपनिवेशिक गुलामी में बदल गए। भारत की गुलामी का इतिहास काफी कड़वा है। अंग्रेजों ने भारत को लूट-खसोट का अड्डा बना लिया था। देखते ही देखते अंग्रेजों का सूर्य ढलने लगा। जंगे आजादी के आंदोलन ने इतना जोर पकड़ा कि अनेक वीरों ने अपनी शहादतें दीं और अंतत: अंग्रेजों को भारत को आजाद करना पड़ा। हर भारतीय को स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास पता है लेकिन अब भूगोल, अर्थशास्त्र और राजनीति सब कुछ बदल चुका है। वर्तमान में भारत-ब्रिटेन संबंधों का नया अध्याय लिखा जा रहा है।
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे भारत का दौरा कर लौट चुकी हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान आतंकवाद पर भारतीय रुख का खुला समर्थन किया और साथ ही साइबर सुरक्षा और व्यापार बढ़ाने को लेकर दोनों देशों में सहमति बनी, उससे दोनों देशों के संबंधों में पहले से कहीं अधिक मजबूती आएगी। थेरेसा मे और प्रधानमंत्री ने एक स्वर से पाकिस्तान से 2008 में मुंबई हमले और 2016 में पठानकोट हमले के षड्यंत्रकारियों को न्याय के कठघरे में लाने की मांग की। जुलाई में प्रधानमंत्री बनने के बाद थेरेसा की यूरोप से बाहर पहली द्विपक्षीय यात्रा थी। भारत ने ब्रिटेन से शराब कारोबारी विजय माल्या, अगस्ता वेस्टलैंड हैलिकॉप्टर सौदे में कथित बिचौलिए क्रिस्टीन मिशेल सहित करीब 60 वांछित लोगों को प्रत्यर्पित करने को कहा ताकि उन्हें देश में न्याय की जद में लाया जा सके।
इस पर भी थेरेसा ने सकारात्मक जवाब दिया। उनकी यात्रा का मुख्य मकसद भारत से व्यापारिक सहयोग बढ़ाना था। दरअसल भारत को आर्थिक, तकनीकी, औद्योगिक विकास और शैक्षणिक क्षेत्र के लिए ब्रिटेन की जितनी मदद चाहिए उतनी ही ब्रिटेन को भी भारत से उतना ही सहयोग और सहायता चाहिए। वैश्विक मंदी का प्रभाव ब्रिटेन पर भी काफी पड़ा है और आर्थिक प्रगति में कई तरह की रुकावटें आ खड़ी हुई हैं। यूरोपीय संघ से अलग होने यानी ब्रैग्जिट के बाद ब्रिटेन के लिए यूरोप के बाजार आसानी से उपलब्ध होने वाले नहीं। ऐसी संभावनाएं ब्रैग्जिट के बाद से ही जताई जाने लगी थीं कि ब्रिटेन को अब भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत पड़ेगी। ब्रिटेन का पूरा जोर भारत में अपने उत्पादों को बेचकर यूरोपीय संघ से होने वाले घाटे को पूरा करने पर है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने यूरोप के बाहर के किसी भी देश की प्रथम यात्रा के लिए भारत को ही चुना। ब्रिटेन में लगभग 50 लाख से ज्यादा लघु एवं मध्यम उद्योग हैं जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
यह उद्योग तकनीकी क्रांति का पूरा लाभ उठा रहे हैं, लेकिन यूरोपीय संघ से बाहर आने के फैसले के बाद इन उद्योगों के अस्तित्व पर ही संकट गहराने लगा है। ऐसे में ब्रिटेन को भारत के बाजार से उम्मीदें हैं, वैसे एशियाई बाजार में उसके पास चीन के साथ सहयोग करने का विकल्प मौजूद है। व्यापार बढ़ाने के लिए कार्यसमूह गठित करने पर सहमति बन गई है। भारत में दो करोड़ से ज्यादा लघु एवं मध्यम उद्योग हैं, लेकिन इनमें नवीनतम प्रौद्योगिकी का अभाव है। भारत ब्रिटेन से इन इकाइयों के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी प्राप्त कर सकता है। ब्रिटेन ने एक बार फिर भारत की एनएसजी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए समर्थन किया है। थेरेसा के भारत यात्रा पर आने से पहले ब्रिटेन ने लगातार बढ़ती प्रवासियों की संख्या पर काबू पाने के लिए यूरोपीय संघ से बाहर के लोगों के लिए अपनी वीजा नीति में परिवर्तन की घोषणा की थी।
इससे खासतौर पर भारतीय आईटी पेशेवर प्रभावित होंगे। ब्रिटेन में 90 प्रतिशत वीजाओं पर भारतीय आईटी पेशेवर तैनात हैं। ब्रिटेन महसूस करता है कि जहां ब्रिटेन के कर्मचारियों को भारत में काम करके कौशल प्रशिक्षण एवं अनुभव हासिल करने का कोई लाभ नहीं मिला वहीं ब्रिटेन भारत के कर्मचारियों को श्रम बल में प्रशिक्षित करने और उनका कौशल बढ़ाने का काम कर रहा है। वीजा नियमों को कड़ा किए जाने के बाद ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले भारतीय छात्रों की संख्या आधी रह गई है।
प्रधानमंत्री ने यह मुद्दा भी उठाया। थेरेसा ने भारतीय उद्योगपतियों, व्यावसाइयों और कुशल भारतीयों के लिए तो वीजा नियमों को आसान करने का वादा किया लेकिन भारतीय विद्यार्थियों के लिए ढील देने का कोई संकेत नहीं दिया। समस्या यह भी है कि भारतीय छात्र वहां पढ़ने के लिए जाते हैं, लेकिन वे स्वदेश लौटना नहीं चाहते। भारतीयों के लिए वीजा नियमों को उदार बनाने का वादा पूरा होना उन भारतीयों की ब्रिटेन में वापसी की गति तथा संख्या पर निर्भर करता है। उम्मीद है कि वीजा का मसला भी सुलझ जाएगा। आज ब्रिटेन को भारत के सहयोग की जरूरत है और भारत हर सहयोग देने को तैयार है।