26 Apr 2024, 09:50:00 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-आर.के. सिन्हा
सांसद, राज्यसभा


कावेरी और महानदी के जल बंटवारे से लेकर एयरपोर्ट के नामकरण पर तमिलनाडु-कर्नाटक, ओडिशा, छतीसगढ़ जैसे राज्य लड़ रहे हैं। इनके विवाद कटु भी होते गए। पर इन विवादों से परे आजकल इनमें एक प्रतिस्पर्धा और भी चल रही है। वह है देसी-विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए। यकीन मानिए, यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा जारी रहने वाली है। इसको लेकर किसी को परेशानी भी नहीं होनी चाहिए। जो राज्य जितने ठोस कदम उठाएंगे, उतना ही उन्हें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और देश के अंदर से ही प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी मिलेगा।
दरअसल, अब अधिकतर  राज्य अपने को निवेश के लिए सबसे मुफीद जगह साबित करने की जी-तोड़ कोशिश करने में लगे हैं। राज्यों के बीच जारी यह पूरी कवायद ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस’ लिस्ट में ऊंचा स्थान पाने को लेकर है। यह सूची वर्ल्ड बैंक तैयार करता है। बीते दिनों  वर्ल्ड बैंक की टीम ने भारत के  राज्यों की रैंकिंग लिस्ट जारी की है। इससे पहले टीम ने बिजनेस करने में आसानी की दिशा में भारतीय राज्यों की तरफ से उठाए गए 100 कारगर उपायों का आकलन किया था। जब पिछले साल पहली बार रैकिंग लिस्ट जारी की गई थी, तब बिजनेस आसान करने में 98 पैमानों पर राज्यों का आकलन किया गया था। लेकिन, इस साल उनका आकलन 340 पैमानों पर किया गया है।

इस साल देश के नए राज्य तेलंगाना ने नंबर वन की कुर्सी हथिया ली है। तेलंगाना ने अपने पैदायशी प्रतिद्वंद्वी आंध्रप्रदेश को मामूली अंतर से पछाड़ दिया है। तो यह मत सोचिए कि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव मात्र लड़ते ही रहते हैं। इनके बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी चल रही है। इस सूची में गुजरात हमेशा की तरह अपनी बेहतर जगह बनाए रखता है। वर्ल्ड बैंक की रैंकिंग को अब अधिकतर राज्य बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। राज्यों ने कई विशेषज्ञ सलाहकारों को नियुक्त कर भी यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि बिजनेस आसान करने की दिशा में उठाए गए उनके कारगर कदम बेकार न जाएं। एक बात साफ है कि जिन राज्यों को बेहतर रैकिंग मिलेगी, वहां पर देश-विदेश से मोटा निवेश आएगा। जाहिर है, इससे उन राज्यों का चौमुखी विकास भी होगा।

इस बीच, भारत सरकार के डिपार्टमेंट आॅफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) भी हर साल एक सूची जारी करने लगा है, जो यह बताती है कि देश के कौन से राज्य बिजनेस करने के लिहाज से  उत्तम  हैं। इस पूरी कवायद के पीछे एकमात्र लक्ष्य राज्यों  के बीच निवेश और विकास को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है। इसके लिए डीआईपीपी राज्यों की रैंकिंग तय करने के लिए प्रत्येक राज्य को 285 प्रश्नों  वाली एक विस्तृत प्रश्नावली भेजती है। इसके पीछे डीआईपीपी का मुख्य उद्देश्य यह पता करना रहता है कि राज्यों में ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस’ से जुड़े विभिन्न कारक कितने प्रभावी ढंग से लागू हैं। इस प्रश्नावली में राज्यों में मौजूद औद्योगिक उपयोग की जमीन के लैंड बैंक की उपलब्धता, म्यूनिसिपल कार्यालय में लैंड रिकॉर्ड्स का कम्प्यूटरीकरण, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कमर्शियल विवाद के लिए ई-फाइलिंग की व्यवस्था, कानून व्यवस्था की स्थिति, कौशल विकास, परिवहन जल, विद्युत, कुशल कामगार, सरकारी कर्मचारियों की दक्षता जैसे आयाम शामिल किए गए हैं। जो राज्य निवेश करने की उत्सुक कंपनियों को तुरंत भूमि का अधिग्रहण करने में मदद करेंगे, पर्यावरण अनुमति दिलवाने में विलंब नहीं करेंगे, श्रम कानूनों का भ्रष्टाचार रहित अनुपालन करेंगे, इन्फ्रास्टक्चयर संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे और कर प्रणाली की प्रक्रिया को सरल और परेशानी मुक्त बनाएंगे, वहां पर तगड़ा निवेश होने लगेगा और जो यह सब सुनिश्चित नहीं करेंगे पिछड़ जाएंगे।

दरअसल, अब दुनिया लड़-मरकर आगे नहीं बढ़ेगी। अब आर्थिक विकास के सहारे ही आगे बढ़ा जा सकेगा। भारत 2015 में चीन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों  को  भी पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे आकर्षक देश बन गया, एफडीआई को आकर्षित करने के मापदंड पर। लंदन से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अखबार दि फाइनेंशियल टाइम्स ने आंकड़ों के हवाले से कहा है कि  भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 31 अरब डॉलर हुआ, जबकि चीन में 28 और अमेरिका में 27 अरब डॉलर ही  रहा। यानी भारत में आने वाला निवेश विभिन्न राज्यों में ही तो जा रहा है। अच्छी बात यह  है कि अब अपने देश के अनेक बहुत राज्यों में इस तरह की होड़ शुरू हो चुकी है। बिहार, उत्तरप्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर राज्य ही अपवाद माने जाएंगे।

क्या यह  भी अब किसी को बताने की जरूरत है कि तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, कनार्टक, हरियाणा समेत बहुत से राज्यों की सूरत आईटी, टेलीकॉम और आटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों ने बदलकर रख दी? इन क्षेत्रों की कंपनियों ने अनेक राज्यों में खरबों रुपए का निवेश किया। लाखों नौजवानों को रोजगार दिया। जाहिर है, इतने भारी-भरकम निवेश ने इन राज्यों की जनता को सुखी जीवन देने में मदद की, पर अफसोस होता है कि जहां तमाम राज्य अपने यहां पर निवेश लाने को लेकर कसकर मेहनत कर रहे हैं, अपने को बदल रहे हैं, वहीं बिहार पहले की तरह से अजगर की रफ्तार से चल रहा है। देश में 1991 के बाद शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद हर स्तर पर सकारात्मक बदलाव देखने में आए, पर बिहार को गुजरे 25 सालों से राज करने वालों ने विकास के नाम पर सिर्फ शिलान्यास भर किए। उनसे जरा पूछ लीजिए कि उन्होंने राज्य के औद्योगिक विकास के लिए क्या किया? उन्होंने किसानों के ज्वलंत मसलों को किस तरह से दूर किया? कितने रोजगार पैदा किए? सच्चाई यह है कि गुजरे 25 सालों के दौरान बिहार में औद्योगिक या कृषि क्षेत्र का रत्तीभर भी विकास नहीं हुआ।

लालू-राबड़ी-नीतीश राज में बिहार में नए उद्यमियों को अपने यहां निवेश के लिए कभी बुलाने की जहमत नहीं उठाई गई। इसके साथ ही पहले से चलने वाले उद्योगों के मसलों को हल करने के लिए कोई सिंगल विंडो सिस्टम भी नहीं स्थापित किया। निवेश आने की जगह उद्यमियों का पलायन हुआ। बिहार में अपना कारोबार स्थापित करने वाले उद्योगों के लिए भूमि आवंटन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं गई। राज्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर नाम की कोई चीज लालू-राबड़ी-नीतीश के दौर में विकसित नहीं की गई। आज बिहार में बिजली-पानी की आपूर्ति की कोई व्यवस्था पक्की नहीं है। सड़कें खस्ताहाल हैं। जिस सड़क के लिए नीतीश विकास पुरुष कहे जाते हैं वहां की सड़क देख लें तो फिर विकास नाम से आपको चिढ़ होने लगेगी। सीधी सी बात यह है कि अब राज्यों को अपनी आपसी कटुता को भुलाकर साथ-साथ मिलकर या अपने स्वयं के स्तर पर निवेश आकर्षित करना ही होगा। बिना निवेश के वे अपने राज्यों का विकास किसी भी सूरत में नहीं कर पाएंगे। अब तो उनकी आंखें खुल जानी चाहिए।

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