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निष्ठुर व्यवस्था, गिड़गिड़ाते मरीज

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 6 2016 11:01AM | Updated Date: Oct 6 2016 11:01AM
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-विवेक त्रिपाठी
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिला अस्पताल में बेटी की मौत के बाद लाश को घर ले जाने के लिए एक बाप डॉक्टरों से मदद के लिए गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। अंत में उसने सड़क के किनारे बेटी का शव रखकर भीख मांगी। भीख के पैसे से वो बेटी को घर ले गया और उसी पैसे से कफन खरीदकर दफनाया। इससे पता चलता है कि डॉक्टर मरीज के प्रति कितने संजीदा हैं। इस घटना ने पूरे सिस्टम को शर्मसार किया है। कुछ दिनों पहले ही कानपुर के हैलेट हॉस्पिटल में एक पिता अपने बीमार बच्चे को लेकर डॉक्टरों के चक्कर लगाता रहा, उस वक्त उसकी किसी ने नहीं सुनी और मासूम की मौत हो गई थी। लेकिन इस घटना से भी कोई सीख नहीं ली गई।

इंसानियत की मौत का ऐसा ही मामला मिर्जापुर जिले में सामने आया जहां अपनी प्रेग्नेंट बहू को बचाने के लिए 70 साल का ससुर उसे कंधों पर उठाकर कभी जिला अस्पताल तो कभी प्राइवेट हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा, लेकिन इमरजेंसी में डॉक्टरों की लापरवाही से महिला और उसके गर्भ में पल रहे शिशु दोनों की मौत हो गई। इस घटना के पहले दाना मांझी की तस्वीर ने पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी थी। करोड़ों रुपए स्वास्थ्य पर भले ही खर्च हो रहे हों, पर सच्चाई यही है कि आज भी गरीब आदमी को इलाज नहीं मिल पा रहा है। इसके उदाहरण पूरे देश में देखे जा सकते हैं। इन ज्यादातर केसों में मौतें एम्बुलेंस की कमी से हुई हैं। या तो किसी को एम्बुलेंस मिली नहीं या फिर वह देर से पहुंची है।

आकड़ों के अनुसार देश में एक लाख की आबादी पर केवल एक एम्बुलेंस है, जबकि सरकार कहती है कि उसकी कोशिश है कि 60 हजार की आबादी पर एक एम्बुलेंस उपलब्ध होनी चाहिए। दूसरी तरफ वर्ल्ड हेल्थ आॅर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार, 10 मिनट में एम्बुलेंस मरीज तक पहुंच जानी चाहिए, लेकिन हमारे यहां अधिकांश मामलों में तो 30 मिनट तक लग जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में किसी गंभीर रोड दुर्घटना  हो जाने पर केवल 11 से 49 प्रतिशत मरीज ही एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंच पाते हैं। पूरे देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य सरकारों द्वारा लगभग 34 हजार एम्बुलेंस चलाई जा रही हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि प्रति एक लाख की आबादी में मात्र एक बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) एम्बुलेंस उपलब्ध है। इसी तरह हर एक लाख की आबादी में एक एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एम्बुलेंस ही मौजूद है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में बहुत सी स्कीमें हैं, लेकिन वे स्कीमें सही तरीके से लागू नहीं हो पातीं। कई बार मरीज सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाता है, लेकिन परामर्श के बाद भी सही दवा नहीं मिलती। बहुत से गरीबों को अपने अधिकारों के बारे में नहीं पता है। जो मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं, उन्हें लंबी-लंबी कतारों में लगना पड़ता है और जब डॉक्टर से मुलाकात का समय मिलता है, तो ज्यादातर दवा वहां उपलब्ध नहीं होती। नेशनल सैंपल सर्वे आॅर्गेनाइजेशन एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी के पास न तो कोई सरकारी स्वास्थ्य योजना पहुंचती है और न ही कोई निजी बीमा। ऐसे में उन्हें बहुत से संकटों का सामना करना पड़ता है।

भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है। इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है। बड़ी आबादी के लिए महंगे और निजी अस्पतालों में इलाज कराना तो बहुत दूर की बात है, इतनी बड़ी आबादी के लिए भारत पहले से ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर सबसे कम खर्च करने वाला देश है।

देश में प्रति 893 व्यक्तियों पर महज एक डॉक्टर है। इनमें एलोपैथिक के अलावा आयुर्वेद, यूनानी और हौम्योपैथी के डॉक्टर भी शामिल हैं। आकड़ों के अनुसार फिलहाल देश में 9.59 लाख पंजीकृत एलौपैथिक डॉक्टर हैं। बाकी तीन विधाओं को मिला कर 6.77 लाख और डॉक्टर हैं। राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने भी बताया था कि  देश भर में चौदह लाख डॉक्टरों की कमी है और प्रतिवर्ष लगभग 5500 डॉक्टर ही तैयार हो पाते हैं। अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गरीबों को इलाज कैसे संभव है। सरकारों कों स्वास्थ्य नीति बनाते समय सुनिश्चित करना होगा कि इलाज के लिए भटकते मरीजों को सही समय पर सही उपचार मिल सके। इसके ठोस योजना बनाने की अवश्यकता है।

सरकार को ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना चाहिए। वहां आज भी इलाज का भयंकर अभाव है। डॉक्टर ग्रामीण इलाके में जाने के इच्छुक नहीं हैं। उन पर शिकंजा कसा जाना चाहिए। स्वास्थ्य बीमा सेवा का प्रसार ग्रामीण अंचलों में भी जरूरी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को मिलकर इस दिशा में आगे बढ़ना होगा, जिससे हर गरीब को इलाज संभव हो। लोगों को भी जागरूकता बढ़ानी होगी, जिससे वह अपने अधिकारों से वंचित न रह सके। अगर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है, तो देश की आबादी की सेहत के लिए भी सोचना पड़ेगा। केवल बेहतर नीतियां बनाने से ही काम नहीं चलेगा, उन्हें अमल में भी लाना होगा। गंदगी, मच्छर, अशुद्ध पेयजल के कारण अनेक बीमारियां होती हैं। वर्षा काल में प्राय: प्रतिवर्ष महामारी का रूप दिखाई देने लगता है। ऐसे में स्वास्थ्य  सुविधाओं की उपलब्धता के साथ ही पूर्व के बचाव प्रयास करने चाहिए। इसमें वार्ड नगर-निगम से लेकर प्रदेश व केंद्र सरकार को संयुक्त रणनीति बनाकर चलना होगा। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। स्थानीय संस्थाओं को फागिंग की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए। स्वास्थ्य और बचाव दोनों मोर्चों पर एक साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

लोककल्याणकारी शासन व्यवस्था में जिस प्रकार की स्वास्थ्य व्यवस्था होनी चाहिए, उसका ही भारत में अभाव है। सरकारी संस्थान अत्यधिक बोझ और संवेदनहीनता से बदहाल है, निजी संस्थानों में लूट का नेटवर्क चर्चा में रहता है। धनी और पहुंच वाले लोग इसमें रास्ता निकाल लेते हैं। सामान्य व्यक्ति धक्के खाता है। जाहिर है, स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यापक सुधार की आवश्यकता है।

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