26 Apr 2024, 11:21:16 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


हिंदुस्तान की हर दर-ओ-दीवार पर लिखी रूस की पक्की दोस्ती की दास्तान को न अमेरिका से बढ़ती दोस्ती मिटा सकती है और न समाजवादी अर्थव्यवस्था से बाजार मूलक आर्थिक ढांचे में तरक्की की राह तय करने की कहानी। कठिन वक्त में रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया है और पूरी मर्दानगी के साथ पूरी दुनिया को दोस्ती के मायने समझाते हुए दिया है। उरी में नामुराद पाकिस्तान ने जो चंगेजी बहशियाना हरकत की है उसके जवाब में रूस ने एक बार फिर सबूत दिया है कि भारत से वह दोस्ती हर कीमत पर निभाएगा और पाकिस्तान को उसकी असलियत समझाते हुए निभाएगा। पाकिस्तान शोर मचाता घूम रहा था कि कल तक का भारत का सबसे बड़ा दोस्त रूस उसकी फौजों के साथ चीन समेत साझा सैनिक अभ्यास करने के लिए तैयार है।

बेशक इसकी तैयारियां भी हो गई थीं, मगर उरी पर हमले के बाद ही रूस ने ऐलान कर दिया कि वह पाकिस्तान के साथ यह काम नहीं करेगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस के इस कदम से भारत की इस आवाज को गूंजने में मदद मिलनी तय है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है। याद कीजिए 1971 का बांग्लादेश युद्ध जब भारत की जांबाज फौजों ने केवल 13 दिन में ही पाकिस्तान के 93 हजार फौजियों के हथियार अपने कदमों पर डलवा दिए थे और पाक फौज का जनरल नियाजी जमीन पर बैठकर हमारे लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा से अपनी जान-ओ-माल की भीख मांग रहा था तो उससे पहले अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां एटमी जंगी जहाजी बेड़ा तैनात कर दिया था।

इसके साथ ही हमें धमकी दी थी कि यदि भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान के इलाके में भी बढ़ना बंद नहीं किया तो एटमी जंग होने से कोई नहीं रोक सकता तो सोवियत संघ (अब के मुख्य रूस देश ) ने भी ऐलान कर दिया था कि अगर सातवें बेड़े से एक भी बंदूक चलने या धमाके की आवाज आई तो रूस की फौजें सातवें बेड़े को नेस्तनाबूद कर देंगी। रूस के इस ऐलान से अमेरिका के होश फाख्ता हो गए थे और उसने तब भारत-पाक के बीच युद्ध विराम की तजवीजें भिड़ानी शुरू कर दी थीं। इतना ही नहीं 1955 में सोवियत संघ के सबसे बड़े नेता ख्रुश्चेव ने 1948 के राष्ट्र संघ के कश्मीर के प्रस्ताव को बरतरफ करते हुए ऐलान कर दिया था कि कश्मीर का भारत में विधिवत विलय हो चुका है और यह भारतीय संघ का ही हिस्सा है।

यह ऐलान ख्रुश्चेव ने भारत की सरजमीं पर ही नई दिल्ली में किया था। भारत से दोस्ती निभाने का रूस का एक सच्चा और पुख्ता इतिहास है जिसकी पुन: गवाही रूस के ताजा कदम से मिल गई है। अत: कुछ आलोचकों की इस नुक्ताचीनी में ज्यादा वजन नहीं है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन से बेरुखी दिखाने की वजह से रूस हमारी जगह पाकिस्तान को तवज्जो दे रहा है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जो इजलास वेनेजुएला में दो दिन पहले ही हुआ है उसमें हमारे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने शिरकत की और पूरी शिद्दत के साथ ऐलान किया कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन और अमेरिका से भारत के सम्बन्धों में सुधार साथ-साथ चल सकते हैं इसमें कहीं भी अड़चन नहीं है। वैसे भी जब इस सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद को खत्म करने का प्रस्ताव रखा तो कुल 120 में से 119 देशों ने इसका समर्थन किया मगर असली सवाल यह भी है कि उस अमरीका का रुख पाकिस्तान के लिए क्या रहता है जिसकी ताकत पर अकड़ते हुए पाकिस्तान की फौजें कल तक हमें आंखें दिखाने की जुर्रत करती थी।

अगर पाकिस्तान का रक्षा मंत्री बेहिचक भारत के विरुद्ध एटमी हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी दे सकता है और इसकी फौजों का जनरल भी पहले ऐसी ही धमकियां देता रहा है तो परमाणु अप्रसार सन्धि के अलम्बरदार अमेरिका को यह सोचना ही होगा कि पाकिस्तान को उसने अभी तक जो भी मदद दी है वह एक आतंकवादी मुल्क के तौर पर अपना चेहरा बनाने वाले पाकिस्तान को ही दी है मगर हमें किसी भी तौर पर और किसी भी कीमत पर कश्मीर के बहाने अमरीका को चौधराहट करने की चाबी न देने का पुख्ता इन्तजाम भी बांध लेना होगा।

अमेरिका अगर परमाणु युद्ध के खतरों के प्रति संजीदा है तो सबसे पहले उसे पाकिस्तान के बेलगाम परमाणु हथियारों के खतरों के खिलाफ दुनिया की चौकसी बढ़ाने की तरफ बढ़ना होगा, क्योंकि एटमी हथियारों को चलाने की धमकी कोई जायज मुल्क किसी भी तौर पर नहीं दे सकता और जो ऐसा करता है वह दहशतगर्द मुल्क के सिवाय कुछ और नहीं हो सकता। इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि पाकिस्तान ने एक मुल्क के तौर पर दहशतगर्दी को अपनी नीति बना रखा है।

चीन को भी यह समझना होगा कि केवल उरी हमले की निंदा करना और इस पर चिंता करना ही काफी नहीं है, बल्कि भारत के साथ अपने प्राचीन सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संबंधों को देखते हुए एक दहशतगर्द मुल्क के साथ गले में हाथ डाल कर घूमना ज्यादा चिंताजनक और आत्मघाती साबित हो सकता है। भारत ने तिब्बत को उसका स्वायत्तशासी अंग स्वीकार करके अपनी सदाशयता का परिचय 2003 में ही दे दिया था।

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