-वीना नागपाल
पिछले दिनों एक सर्वेक्षण के नतीजों के समाचार लगभग सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए तो उन्होंने चौंका दिया। बड़े लंबे-चौडे और डिजाइनदार खांचों में बांटकर यह समाचार प्रकाशित हुआ है। समाचार यह था कि बाल विवाह करने वालों के बीच तलाक होने के आंकड़े बहुत अधिक रहे हैं। राज्यों के सर्वेक्षण में इस नतीजे पर पहुंचते हुए यह भी बताया गया था कि इस सूची में कौन सा राज्य टॉप पर है और उसके बाद किन राज्यों का नंबर सिलसिलेवार आता है। जाहिर है जिस राज्य में बाल विवाह का आंकड़ा सबसे ऊपर है वहां ऐसे तलाक होने की संख्या भी अधिक ही होगी।
बाल विवाह होना और उनमें बाद में तलाक हो जाने की बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। ऐसा तर्क प्राय: दिया जाता है कि बाल विवाह होने से दूसरे को परस्पर समझने के अवसर बढ़ जाते हैं और इस कारण उन्हें सामंजस्य स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होती। पर, यदि उन आंकड़ों को सही माना जाए तो बाल विवाह के पक्ष में दिया जाने वाला यह तर्क सही साबित नहीं हो रहा है। अब दूसरे तर्क की बात करते हैं। अपने बच्चों के बाल विवाह कराने वाले माता-पिता अपनी संतानों के विवाह की जिम्मेदारी को अपने ऊपर बहुत बड़ा बोझ मानते हैं और उनकी यह मंशा होती है कि जितनी जल्दी हो सके वह इस बोझ से मुक्त हो जाएं। यदि बाल विवाह के बाद संबंध विच्छेद हो रहे हैं तो इस जिम्मेदारी से मुक्ति कहां मिली। उल्टे या तो बेटी घर वापस लौटकर आ गई या फिर बेटे का घर-संसार ही नहीं बसा। यहां तक कि तलाक का मुकदमा ठोंकने का खर्च और अधिक बोझ बनकर सिर पर आ पड़ा। कहां तो बेटी-बेटे का बाल विवाह कर मुक्त होने का रास्ता ढंूढ रहे थे और कहां अब युवा बेटी घर में आकर बैठ गई और बेटा दोस्तों के साथ आवारा गर्दी करने लगा। बेटी का बोझ उठाने की नौबत जब परिवार पर उसके विवाह करने के बाद भी आ रही है तो परिवार उसे कैसे सहजता से उठा पाएगा? उसके विवाह का खर्च भी उठा लिया और बेटी के पास न तो इतनी शिक्षा है और न ही कोई हुनर कि वह स्वयं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके।
सर्वेक्षण वालों ने यह तो नहीं बताया कि किन कारणों से बाल-विवाह के बाद तलाक होने की संख्या बढ़ रही है पर, एक साधारण अंदाज यह लगाया जा सकता है कि युवा होने पर रुचियां व आकर्षण बदल सकते हैं। वह बालिका वधू शायद बहुत कमियों का भंडार लगे। बालिका वधू को भी अब युवती होने पर उस वर का व्यक्तित्व और व्यवहार दोनों ही पसंद न आएं। हो सकता है कि यह बाल वर युवा होने पर आर्थिक रूप से भी कमजोर साबित हो और उसके व्यक्तित्व में भी कई दुर्गुण शामिल हो जाए जिनके साथ सामंजस्य स्थापित करना अब उस युवा हो गई वधू के लिए सरल न हो। यह भी एक बहुत सशक्त कारण है कि आज लड़कियां भी सजग हो गई हैं और अपने बाल विवाह को मंजूर नहीं कर पा रही हैं और उससे बाहर आना चाहती हों।
बाल विवाह और तलाक की बात जितनी समझ पाना कठिन है उतना ही यह समझ पाना भी असंभव है कि माता-पिता अपने बच्चों के बाल विवाह करने के दुराग्रह को कब छोड़ेंगे? शासन तो इस दिशा में बहुत अधिक प्रयास कर ही रहा है सार्थक काम करने वाली ईमानदार स्वयं सेवी संस्थाएं यदि वास्तव में इस दिशा में कुछ करना चाहती हैं तो करें। बाल विवाह विवाह संस्था को मजबूत नहीं बनाते बल्कि उनसे दरारें बनने की संभावना अधिक हो रही है।