-वीना नागपाल
गणपतिजी विदा हो गए। अगले बरस जल्दी आएं- का अर्थ है कि यह आने वाला समय सुख-शांति व आनंद से बीते पता ही न चले कि ‘बरस’ बीत भी गया। दु:ख और अवसाद और बुरी घटनाओं से भरा समय काटे नहीं कटता और बहुत लंबा लगता है। पर, खुशी से और सकारात्मक घटनाओं का समय कब बीत गया पता ही नहीं चलता। इसलिए ही गणपतिजी को विदा करते समय कहते हैं कि वर्ष बीतने का पता न चले और और गणेशजी की स्थापना का समय देखते ही देखते आा जाए। बोलिए-गणपति बप्पा मोर्या।
गणेशजी की स्थापना के उन दिनों सुबह-शाम दोनों समय पूरे भक्ति भाव से आरती की जाती है। जब भी आरती में यह स्वर गंूजता है ‘‘बांझन को पुत्र देत...’’। तो न जाने क्यों इन शब्दों पर आवाज रुकने लगती है। पहली बात तो यह कि किसी महिला को बांझ कहना उसे कितना त्रस्त करता है और पीड़ा पहुंचाता है। महिलाओं के नि:संतान होने के कई कारण होते हैं। अब तो चिकित्सकीय विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है। इन कारणों में से एक कारण के लिए पुरुष उत्तरदायाी होता है पर, (जिसके लिए हो सकता है पुरुष दोषी हो) उसे बांझ कह दिया जाता है और उसके साथ अत्यंत कठोर व कटु व्यवहार किया जाता है। कई बार तो यह अपमान यहां तक बढ़ जाता है कि संतान प्राप्त महिलाएं अपने बच्चों तक को उनके पास फटकने नहीं देतीं। यह कैसा व्यवहार है? प्रकृति के दोष के कारण यदि महिला मां नहीं बन पाई तो उसे इस प्रकार अपमानित किया जाए। हम धन्यवाद देते हैं आज के इतने विकसित चिकित्सकीय विज्ञान को जिसमें आज इतनी सुविधाएं और उपचार मौजूद हो गए हैं कि अब महिला नि:संतान नहीं रहती। उसे इस प्रकार के यातना भरे संबोधनों से पुकारा जाना अब लगभग शेष नहीं रहा है।
दूसरा आरती में यह भी गान किया जाता है कि पुत्र देत यह सीधा-सीधा पुत्र के जन्म को पूर्णता मानता है और यह मांगा जाता है कि परिवार में पुत्र का ही आगमन हो। यदि पुत्र नहीं हुआ तो, गणपतिजी यही हाथ जोड़कर आपसे विनती है कि पुत्र प्राप्ति ही हो। यह नहीं माना गया या मांगा जा रहा है कि यदि परिवार में संतान नहीं है तो उस परिवार में संतान का आगमन हो। फिर चाहे वह पुत्री हो या पुत्र क्या फर्क पड़ता है। पुत्री का आगमन भी उतना ही सुखदायी है जितना की पुत्र का परंतु गणेशजी से केवल यह वरदान नहीं मांगा जाता कि संतान प्राप्ति हो बल्कि यह वरदान मांगा जाता है कि संतान हो तो वह पुत्र ही हो। कई अन्य धार्मिक आस्थाएं भी हैं जिनमें पुत्र की प्राप्ति का ही विशेष आग्रह किया गया है। ऐसे यज्ञ करने की चर्चाएं हंै, जिसमें पुत्र जन्म का आशीर्वाद मांगा जाता है। केवल संतान प्राप्त करने से संतुष्टि नहीं होती। पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद पर ही विशेष आग्रह रहता है। आरती के शब्दों द्वारा जो गायन किया जाता है, उसमें कुछ शब्द अगर परिवर्तित कर दिए जाएं तो आज के संदर्भ में व आधुनिक समय के अनुसार वह न केवल सकारात्मक लगेंगे बल्कि उनकी गूंज भी बहुत शुभ होगी।
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