-वीना नागपाल
सरोगेसी पर बनाए गए नए कानून और उस पर आधारित नियमों को लागू करने की स्थिति पर बहुत चर्चा हो रही है। इसमें पक्ष तथा विपक्ष के मत शामिल हैं, जो कि बहुत स्वाभाविक हैं।
दरअसल काफी समय से सरोगेसी अर्थात किराए की कोख लेने और महिला द्वारा उसे देने की बात पर कई सवाल उठ रहे थे। भारत में तो समाज में आर्थिक स्थिति को लेकर कई कमियां और मजबूरियां मौजूद हैं और इसी के कारण वंचित महिलाएं अपनी कोख किराए पर देती हैं। नि:संतान दंपत्ति जो कई अन्य चिकित्सकीय जांचों और उपचार के बाद भी जब संतान नहीं प्राप्त कर पाते हैं तो वह अब इस नई चिकित्सकीय तकनीक का लाभ उठकर किसी महिला की कोख किराए पर अर्थात उस महिला को पर्याप्त धन चुका कर उससे संतान प्राप्त करते हैं। ऐसी संतान पूर्णता उस परिवार के जींस और अंश प्राप्त करती है, जिसे कि अपने ही अंश के मिलान से किसी दूसरी महिला की कोख में रोपित किया गया है उसमें इस प्रकार गर्भ धारण करने वाली महिला का कोई भी अंश उस भ्रूण में नहीं आता। भारत में विशेषकर गुजरात के आणंद में सरोगेसी का एक बड़ा बाजार बन गया। वहां कई महिलाओं ने अपनी कोख को किराए पर दी, जिसमें देश और अधिकांशत: विदेशी दंपत्ति भी शामिल थे। अब तो यह भी होने लगा है कि विवाह न करने वाले, पर पिता बनने की चाहत रखने वाले भी किराए की कोख लेने लगे हैं जैसा कि अभिनेता तुषार कपूर ने अभी किया है और अपने इस व्यवहार का खूब ढिंढोरा पीटा है। अभिनेता शाहरुख की पहले ही दो संतान हैं पर, शायद उन्हें एक और संतान की ख्वाहिश होगी और उनकी पत्नी गौरी पता नहीं किन कारणों से मां नहीं बन रही होंगी या बनना नहीं चाहती होंगी इसलिए उन्होंने भी सरोगेसी से तीसरी संतान प्राप्त की और अब शाहरुख उसके साथ बहुत फोटो खिंचवाकर व उसके ऊपर बहुत चुटकी भरे प्यारे कमेंट्स कर उन्हें सोशल मीडिया पर कई बार अपलोड करते रहते हैं। अभिनेता आमिर खान की दूसरी पत्नी किरण राव मां नहीं बन पार्इं इसलिए उन्होंने भी सरोगेसी का सहारा लिया। विदेशी दंपत्ति तो बहुत बड़ी संख्या में भारत आकर किराए पर कोख लेते हैं। इस पर भी रिसर्च की जाना चाहिए।
दरअसल किराए पर कोख देना एक व्यापार बन चुका है जिसका नियमन होना आवश्यक है। इसके लिए बहुत बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि नि:संतान दंपत्तियों के लिए यह वरदान है और दूसरा कमजोर आर्थिक स्थिति वाली महिलाओं को अच्छी-खासी धन राशि मिल जाती है जिससे कि वह थोड़ी सुधरी हुई आर्थिक स्थिति में आ जाती हैं। यह तर्क मान लिया कि ऐसी महिलाओं की इससे आर्थिक सहायता हो जाती है पर, यह बताएं कि जिस महिला की पहले से ही आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी उसका शारीरिक स्वास्थ्य तो निर्बल ही होगा। उसकी अपनी शारीरिक अवस्था कैसे ठीक हो सकती है जिसका परिवार आर्थिक विकटता से जूझ रहा हो। कहने को तो क्लिनिक खोले हुए डॉक्टर्स यह कहते हैं कि वह सरोगेट मदर की पूरी जांच करते हैं और तभी गर्भ धारण करवाते हैं, परंतु आप और मैं दोनों जानते हैं कि जो डॉक्टर अब व्यवसायी हो गए हैं वह इसमें कितने प्रिकॉशंस लेते होंगे? दूसरा गर्भ धारण के बाद उस महिला के खान-पान, दवा और निरंतर होने वाले चेकअप्स का कितना ध्यान रखा जाता होगा? क्या यह उसकी सामान्य सेहत से खिलवाड़ नहीं है? इससे भी बढ़कर सत्य यह है कि प्रसव के बाद से कितनी देखभाल की जरूरत होती है और उसे कितने पोषण व पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है-इसका ध्यान कोई नहीं रखता और बच्चा प्राप्त करने, एक मुश्त धन राशि देने के बाद कोई क्यों ध्यान रखेगा? सरोगेसी भी महिलाओं का शारीरिक शोषण है और उसकी कमजोर आर्थिक स्थिति से लाभ लेने जैसा ही है। कानून के अंतर्गत जो नियम बनाए गए हैं वह महिला हितैषी ही हैं। नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख मिले इसमें उनके संबंध क्यों न आगे आएं और दूसरी ओर महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जाएं ताकि उन्हें अपनी कोख व अन्य किसी शारीरिक शोषण के लिए बाध्य न होना पड़े।
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