-वीना नागपाल
अपने संबंधों के कारण उत्पन्न तनाव के कारण माता-पिता यह नहीं समझ पाते हैं कि उनके बच्चों पर कितना मनोवैज्ञानिक दबाव बन जाता है। जिस भी विवाद के कारण माता-पिता में बहस की शुरुआत होती है वह बढ़ते-बढ़ते सामान्य व्यवहार को पीछे छोड़कर ऐसी भाषा पर आ जाती है जिसे सभ्य तो कतई नहीं कहा जा सकता। यहां तक कि एक-दूसरे के परिवारों में आरोपों की झड़ी के साथ-साथ लांछन लगाने भी प्रारंभ हो जाते हैं। आवाजें कहां तक जा रही हैं इसका भी कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
आजकल माता-पिता अपने-अपने अहम के कारण सारी हदें पार कर जाते हैं ऐसे में वह यह भी याद नहीं रखते कि उनके बच्चों पर इस माहौल का क्या असर हो रहा है? जाहिर है कि इसका सकारात्मक प्रभाव तो नहीं होता पर, नकारात्मक प्रभाव भी इतना अधिक पड़ता है कि बच्चे भी अपने सामान्य व्यवहार को भूल जाते हैं। कई बार घरों में बहुत समय तक माता-पिता दोनों में अबोले की स्थिति बनी रहती है। मन ही मन बच्चे इसे पसंद नहीं करते। इस दबे-दबे से माहौल के कारण वह स्वयं भी चुप रहने लगते हैं। उनकी यह चुप्पी बहुत खतरनाक होती है। इसमें वह केवल अपने विचारों से संघर्ष करते रहते हैं, क्योंकि घर में तो उन्हें वातावरण इतना सहज नहीं लगता कि वह मां या पिता किसी से भी अपने स्वयं की चिताएं तथा कठिनाइयां डिस्कस कर सकें। स्कूल में क्या हुआ? किस सहपाठी की बात उन्हें बुरी लगी? या किस टीचर के व्यवहार से वह आहत हुए या फिर यह भी तो हो सकता है कि उन्हें अपना कौन सा साथी बहुत प्रिय लगने लगा है, आदि-आदि बहुत अनेक बातें होती हैं जो वह अपने पैरेंट्स के साथ बांटना चाहते हैं और कई बार उनसे इस सिलसिले में परामर्श भी लेना चाहते हैं, परंतु घर के चुप्पी भरे वातावरण को देखकर उन्हें ऐसा करने का साहस ही नहीं होता।
यह घुटन उन्हें बहुत भारी पड़ती है। वह धीरे-धीरे स्वयं भी कटु व्यवहार पर उतारू हो जाते हैं। स्कूल में उनका व्यवहार चिड़चिड़ा और बहुत जल्दी क्रोध में आने वाला बन जाता है। वह अपने किसी साथी तथा सहपाठी की साधारण बात भी सहन नहीं कर पाते हंै, तुरंत मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। जब उनकी शिकायत माता-पिता तक पहुंचती है तो वह अपने व्यवहार का विश्लेषण करने के स्थान पर बच्चे को ही धमकाना प्रारंभ कर देते हैं और इस प्रकार एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है जिसके घेरे में आकर बच्चा और अधिक दुर्व्यवहार करने लगता है या हिंसात्मक हो उठता है। यहां तक कि उसकी असफलताएं जब बढ़ाने लगती हैं तब वह और भी अधिक उग्र हो उठता है। जिस उम्र में उसे प्यार व दुलार की सबसे अधिक जरूरत होती है उसमें वह दो वयस्कों के बीच ऐसा अप्रिय व्यवहार देखकर सहन नहीं कर पाता और इससे उपजे क्रोध को ही वह अपना स्थायी भाव मान कर उसी के अनुसार व्यवहार करने लगता है।
ऐसे बच्चे बड़े होकर भी अपने क्रोध और उससे उपजी हिंसा पर काबू नहीं रख पाते हैं। यदि बहुत उग्र न भी हुए तब भी वह किसी के साथ अपनत्व और आत्मीयता का व्यवहार नहीं कर पाते हैं। यहां तक कि वह भावावेश में आत्महत्या तक करने का कदम भी उठा लेते हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि पश्चिम में स्कूली बच्चों पर किए गए सर्वेक्षण से यह पता चला कि परिवारों में होने वाले विवाद बच्चों को मानसिक रूप से बिखेरकर रख देते हैं। पश्चिम की यह स्थिति अब हमारे परिवारों में भी देखने को मिल रही है। पूर्व भी इससे अछूता नहीं रहा। यदि पति-पत्नी विवाद की स्थिति में आत्महत्या करने की बार-बार धमकी देंगे तो बच्चे तो आत्महत्या करने में तथा हिंसात्मक व्यवहार करने से हिचकचाएंगे नहीं। बच्चों के लिए ही सही यदि एक झुक जाए तो क्या हर्ज है?
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