-वीना नागपाल
केरल राज्य के एक स्कूल ने अपने यहां की छात्राओं को एक आदेश जारी किया कि स्कूल में आने वाली छात्राएं दो चोटियां बना कर ही स्कूल आएं। अन्य किसी प्रकार के बाल बना कर स्कूल आने पर उन्हें दंडित किया जाएगा। तब इसके विरुद्ध स्कूल की एक छात्रा के बाल सुरक्षा व उनके अधिकारों के संरक्षण वाले कमीशन में शिकायत कर दी कि यह बाल अधिकारों का हनन है और स्कूल प्रबंधन द्वारा ऐसा आदेश जारी करने से उन्हे कितनी असुविधा होती है- इसका ध्यान नहीं रखा गया। लड़कियों अर्थात छात्राओं को स्कूल आने से पहले दो चोटियां कस कर बनाने में बहुत समय लग जाता है जिसके कारण वह स्कूल देर से न पहुंचने की चिंता में बहुत हड़बड़ी में रहती हैं और उन्हें कई अस्त-व्यस्ताओं का सामना करना पड़ता है। वह जब सिर धोतीं हैं तो उन्हे गीले-गीले बालों की चोटियां बनाना पड़ती हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। गीले बालों को बांधने से बदबू तो आती ही है, जुएं भी पड़ जाते हैं। सिर गीला होने से उन्हें सर्दी का भी शिकार होना पड़ता है। उनके गीले-गीले बाल सुधारने में टूटते भी बहुत हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह लड़कियों की प्रति बहुत ही भदेभाव भरा व्यवहार है।
बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण कमीशन ने उस छात्रा की इन शिकायतों का गंभीरता से संज्ञान लिया और कहा कि स्कूल अधिकारियों को ऐसा आदेश देते समय लड़कियों के गीले बालों से चोटी बनाने से उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए था। इससे उन्हें न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक कष्ट भी होता है और यह बाल अधिकारों के हनन की श्रेणी में आता है। उनके स्वास्थ्य के साथ इस तरह खिलवाड़ नहीं की जा सकती। स्कूल अधिकारी केवल इतना भर देखें कि छात्राएं भली प्रकार बालों को संवार कर स्कूल में आएं जिससे कि स्कूल का अनुशासन बना रहे। छोटे व लंबे बालों वाली छात्राएं अपने बालों को ठीक प्रकार से संवारे परंतु बालों को केवल दो चोटियों में बांधकर आने का आदेश लादा नहीं जाए। ऐसा भी एक समय था कि जब लड़कियां दो चोटी बनाती थीं तो उन्हें बहुत फैशनवाली समझा जाता था। उनके मन में बहुत चाहत होती थी कि वह दो चोटियां बनाएं और उनमें रिबन लाएं। पंजाब में तो इस तरह के गीत ही बन गए थे - माएं मेरीये नीं, मैंनु बड़ा चाह दो गुंटां (चोटियां) कर मेरीयां...। परंतु मांएं भी ऐसी होती थीं कि कस कर एक चोटी गूंथ देती थीं। किसी लड़की की हिम्मत नहीं होती थी कि दो चोटियां पीठ पर लटका ले। पिताजी और भाई की निगाहें खंूख्वार हो उठती थीं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक एक चोटी ही बनाई जाती थी।
आज स्कूल में यह निर्देश दिए जा रहे हैं कि लड़कियां साफ-सुथरी मांग निकाल कर और बालों को दो भागों में बांट कर दो चोटियां बनाकर फैशन करने अन्तर्गत नहीं आतीं। सवाल तो यह उठता है कि लड़कियों पर वेशभूषा से लेकर बाल बनाने तक तरह-तरह के अनुशासन लादे जाते हैं। उन्हें अपनी इच्छा से तैयार हाने की कोई छूट नहीं है। हम इस तथ्य को भली-भांति समझते हैं कि स्कूल के माहौल लहराते हुए - बल खाते हुए और माथे पर लटकते हुए बालों में आने की छूट नहीं दी जा सकती। स्कूली जीवन का एक अपना अनुशासन तो होता है पर, छोटे-कटे और संवार कर रखे बालों की छूट तो दी है जा सकती है। दो चोटियां बना कर आने का आदेश आवश्यक नहीं कि अनुशासन पालन की ग्यारंटी हो। इसलिए छात्राओं को स्कूल में हर प्रकार से साफ-स्वच्छ और बालों को संवार कर आने का आदेश अवश्य दिया जाए पर कोई भी हेयर बना कर आने की बंदिश न हो।
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