26 Apr 2024, 16:46:32 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-जावेद अनीस
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


यह वैश्वीकरण का दौर है, जहां पूंजी को दुनियाभर में विचरण करने की छूट है, लेकिन इससे बनाई गई संपदा पर कुछ लोगों का ही कब्जा है, जबकि इसकी कीमत राष्ट्रों की पूरी आबादी उठा रही है। फिलहाल बड़ा अजीब-सा त्रिकोण बना है- एक तरफ पूंजी का भूमंडलीकरण हुआ है तो दूसरी तरफ अभी भी राष्ट्र-राज्यों में बंटे हुए हैं। अब तो  दुनियाभर में अंधराष्ट्रवाद की नई बयार भी चली पड़ी है, इधर विभिन्न देशों के बीच और खुद उनके अंदर आर्थिक विषमता की खाई बढ़ती ही जा रही है। चर्चित फ्रांसीसी अर्थशास्त्री टॉमस पिकेट्टी अपनी किताब कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी में इसी बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे 1970 के दशक के बाद से आर्थिक विषमता लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले साल आॅक्सफैम ने यह अनुमान लगाया था कि 2016 तक दुनिया की आधी सम्पति पर एक प्रतिशत लोगों का कब्जा हो जाएगा।

इस साल आॅक्सफैम के रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के 62 सबसे अमीर व्यक्तियों  के पास इतनी दौलत है जितनी इस धरती पर मौजूद आबादी के आधे सबसे गरीब (तीन अरब लोगों ) लोगों के पास भी नहीं है। भारत में भी करीब एक प्रतिशत लोगों का  मुल्क की आधी दौलत पर कब्जा है। यकीनन असमानताएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। भारत जैसे देशों में जहां भुखमरी, बेरोजगारी, बेरोजगारी और कुपोषण की दर बहुत अधिक है, इसको लेकर शर्मिंदगी होना चाहिए, लेकिन इसके उलट खोखले विकास के कानफोड़ू नगमे बजाए जा रहे हैं, जिस पर हमसे झूमने की उम्मीद भी की जाती है, लेकिन बात सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। आज जब यूनिसेफ अपनी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगता है कि साल 2030 तक दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के 16.7 करोड़ बच्चे गरीबी की चपेट में होंगे, जिसमें 6.9 करोड़ बच्चे भूख और देखभाल की कमी से मौत का शिकार हो सकते हैं, तो किसी को हैरानी नहीं होती। इस वैश्विक व्यवस्था को चलाने वाली ताकतों के कानों पर भी इस खबर से जूं तक रेंगते हुए दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसा नहीं है कि यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में जिन वजहों से इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होने की संभावना जताई है उन्हें रोका नहीं जा सकता है, लेकिन समस्या उस व्यवस्था के जड़ में है जिसके बने रहने का तर्क ही ऐसा होने नहीं देगा।

28 जून 2016 को यूनिसेफ द्वारा 195 देशों में  जारी  स्टेट आॅफ द वर्ल्ड चिल्ड्रेन रिपोर्ट 2016 की थीम है- सभी बच्चों के लिए समान अवसर। रिपोर्ट में दुनियाभर में  बच्चों की स्थिति, असमानता के कारण उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के विश्लेषण के साथ इस बात की भी वकालत की गई है कि दुनिया को पिछले 25 वर्षों में हुई प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए सर्वाधिक गरीब बच्चों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह रिपोर्ट बताती है कि असमानताओं के कारण बच्चों का जीवन संकट में है, असमानता के केंद्र में आभाव और गरीबी है, जो काफी हद तक वैश्विक हैं, लेकिन इसके कई अन्य स्तर भी है, जैसे देश, समुदाय लिंग आदि जिसके आधार पर तय होता है कि बच्चों को जिंदा रहने, पढ़ने, सुरक्षित रहने, बीमारियों से बचाव और एक अच्छा जीवन जीने का अवसर मिलेगा या नही। एक तरफ मानवता मंगल ग्रह पर बसने के इरादे पाल रही है तो दूसरी तरफ  पूरी दुनिया में करीब 12.4 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। 1990 के मुकाबले मौजूदा दौर में पांच साल से कम उम्र के गरीब बच्चों की मौतों का आंकड़ा दोगुना हो गया है जिसकी मुख्य वजह  कुपोषण है। इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी 14 सालों में 75 करोड़ लड़कियां कम उम्र में ब्याह दी जाएंगी। रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र तथा दक्षिण एशिया में रहने वाले बच्चों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। अगर सुधार की यही रफ्तार रही तो एसजीडी लक्ष्यों के तहत 2030 तक शिशु मृत्युदर को प्रति 1000 जीवित बच्चों पर 12 तक लाने का जो लक्ष्य रखा गया था, उसे पूरा करने में दक्षिण एशियाई देश 2049 और सब-सहारा अफ्रीकी देश आधी सदी तक का वक्त लगा देंगे।

भारत के संदर्भ में बात करें तो इस रिपोर्ट में भारत में प्री-स्कूलिंग की समस्या पर ध्यान दिलाया गया है। अगर बच्चों को प्री-स्कूल की औपचारिक शिक्षा ना मिले तो स्कूल में उनके सीखने की क्षमता पर असर पड़ता है, लेकिन हमारे देश में तीन साल से छह साल की उम्र के कुल 7.4 करोड़ बच्चों में से करीब दो करोड़ बच्चे औपचारिक पढ़ाई शुरू करने से पहले प्री-स्कूल नहीं जा पाते, इनमें से ज्यादातर बच्चे गरीब एवं समाज के कमजोर वर्गों के हैं। सबसे बड़ी संख्या मुस्लिम समुदाय की है जिसके 34 फीसदी बच्चों को प्री-स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा नहीं मिल पाती है। जानकार बताते हैं कि हैं कि स्कूल शुरू होने से पहले की औपचारिक शिक्षा के बिना ही जो बच्चे प्राथमिक स्कूल में जाते हैं उनके बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की आशंका अधिक  होती है।

रिपोर्ट में भारत को चेताया गया है कि अगर सरकार बाल मृत्युदर के वर्तमान दर को कम करने में नाकाम रही तो 2030 तक भारत सवार्धिक बाल मृत्युदर वाले शीर्ष पांच देशों में शामिल हो जाएगा,  तब दुनिया भर में पांच साल तक के बच्चों की होने वाली कुल मौतों में 17 फीसदी बच्चे भारत के ही होंगे। शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में स्कूलों में नामांकन दर तकरीबन सौ फीसदी तक पहुंच गया है, जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। इसका श्रेय शिक्षा का अधिकार कानून को दिया जाना चाहिए, हालांकि देश के 61 लाख बच्चे अभी भी  शिक्षा की पहुंच से दूर हैं, जिसमें से 26 प्रतिशत यानी करीब 16 लाख बच्चे उत्तर प्रदेश के हैं। होना तो यह चाहिए था कि नामांकन का पहला चरण पूरा कर लेने के बाद इस बात पर जोर दिया जाता कि कैसे बच्चे को स्कूलों में टिकाकर उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाई जाए, इसके लिए सावर्जनिक शिक्षा में निवेश बढ़ाई जाती, लेकिन इसके बदले सावर्जनिक शिक्षा के क्षेत्र में बजट को लगातार घटाया जा रहा है।

शिक्षा के निजीकरण के जबरदस्त पैरवी हो रही है। बीते सालों में दुनिया ने प्रगति तो की है लेकिन यह न्याय संगत नहीं रही है, इसने असमानता के दायरे को बढ़ाते हुए इसे और जटिल बना दिया है। अपनी रिपोर्ट में यूनिसेफ ने दुनियाभर के देशों से बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की अपील करते हुए कहा है कि सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए अधिक अवसर प्रदान करने की जरूरत है। कॉरपोरेट सेक्टर व अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी कहा गया है कि अगर सामाजिक क्षेत्र में निवेश करते हुए गरीब परिवारों की मदद नहीं की गई तो आने वाले समय में तस्वीर बेहद भयानक हो सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए बच्चों को गरीबी से निजात दिलाकर शिक्षा मुहैया कराने की दिशा में प्रयास तेज करने की अपील की गई है।

भारत जैसे देशों को यह समझना होगा कि विकास का मतलब केवल जीडीपी में उछाल नहीं है, असली और टिकाऊ विकास तब होगा जब समाज के सभी वर्गों के बच्चों का सामान विकास हो और उन्हें बराबर का अवसर मिले। कम से कम हम एक ऐसा देश और समाज बन सकें जहां सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित माहौल मुहैया हो सके।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »