27 Apr 2024, 01:58:21 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के कामकाज में सुधार के लिए गठित जस्टिस लोढा समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा लागू किए जाने के आदेश के बाद बोर्ड में काफी हलचल मची हुई है। स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी से जुड़े विवादों के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही लोढा समिति का गठन किया गया था। शीर्ष न्यायालय ने समिति की जिन सिफारिशों को स्वीकार किया है, उनमें 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की बोर्ड से विदाई, मंत्री या किसी प्रशासनिक अधिकारी को बोर्ड से दूर रखना और बोर्ड में कैग के प्रतिनिधि को रखना शामिल है।

इस आदेश के बाद क्रिकेट बोर्ड में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है। यदि बदलाव होता है तो कई बड़े नेताओं पर इसकी गाज गिरना निश्चित है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड में सुधार संबंधी शीर्ष अदालत के फैसले की तीखी आलोचना की है। उन्होंने जस्टिस लोढा आयोग की सिफारिशों पर आधारित इन सुधारों को असंवैधानिक और गैर-कानूनी करार दिया है।

बीसीसीआई की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए सलाहकार नियुक्त किए गए जस्टिस काटजू ने तो लोढा समिति को ही अमान्य करार दे दिया। जस्टिस काटजू का कहना है कि शीर्ष अदालत का आदेश संविधान के सिद्धांतों की अवहेलना है। सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को दंडित करने के लिए एक कमेटी की सेवा आउटसोर्स की है। जस्टिस काटजू का तर्क है कि कानून बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है। यदि न्यायपालिका कानून बनाने लगे तो यह एक खतरनाक मिसाल बन जाएगी।

बीसीसीआई का संविधान तमिलनाडु सोसाइटी रेगुलेशन एक्ट के तहत तैयार किया गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट और लोढा समिति दोनों कानून के द्वारा बीसीसीआई को बदल नहीं सकते और आप संविधान बदलना चाहते हैं तो दो-तिहाई बहुमत से एक विशेष प्रस्ताव पारित करने की जरूरत होती है। केवल सोसाइटी ही नियमों को बदल सकती है। वित्तीय धांधली या प्रशासनिक गड़बड़ियों की शिकायत हो सकती है, ऐसे में रजिस्ट्रार आॅफ सोसाइटी को लिखना चाहिए। जस्टिस काटजू के तर्क अपनी जगह सही हो सकते हैं क्योंकि संविधान में हमारे पास विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका है और इन तीनों के बीच स्पष्ट रूप से काम का बंटवारा है।

यह भी तय है कि कोई भी अंग किसी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा। विश्व के सबसे मजबूत लोकतंत्र का दावा भी भारत इसी आधार पर करता है कि हमारे यहां तीनों अंगों ने अपनी-अपनी भूमिका का सक्रिय एवं उचित निर्वहन किया है, परंतु कभी-कभी न्यायपालिका और विधायिका में टकराव होता रहा है। न्यायपालिका का बढ़ता वर्चस्व और सक्रियता भी इन सबके बीच चर्चा का विषय रहती है।

न्यायपालिका को विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की समीक्षा का अधिकार है। न्यायपालिका की अतिसक्रियता तब दिखाई देती है जब विधायी व्यवस्था में खामी होती है या यूं कहें जब शासन व्यवस्था लोक कल्याणकारी राज्य को स्थापित करने में असफल होती है तो एक शून्य उभरता दिखाई देता है। इस शून्य को भरने का काम न्यायपालिका करती है।

जब देश में भ्रष्टाचार अपनी सभी सीमाएं लांघ देता है और विधायिका और कार्यपालिका भी इसे रोकने में नाकाम रहती हैं तो अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती है। इस अराजकता को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस बात पर गहन मंथन की जरूरत है कि आखिर चूक कहां हो रही है कि न्यायपालिका को सक्रिय होना पड़ रहा है।

भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड विश्व का सबसे धनी बोर्ड है, लेकिन जिस तरह से उसमें भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, मनमानी और सट्टेबाजी, स्पॉट फिक्सिंग के मामले सामने आए तो फिर तूफान तो उठना ही था। बोर्ड में अनेक राजनीतिज्ञ तो कई सालों से बैठे हैं और अपने रुतबे का सामाजिक और राजनीतिक लाभ उठा रहे हैं।

जिस तरह की वित्तीय अनियमितताएं और घोटाले सामने आए हैं, उनको लेकर विधायिका ने क्या किया? क्या ऐसी अराजक स्थिति को यथावत बनाए रखना जायज है? जब भी देश में बड़े घोटाले सामने आए तब विधायिका ने कोई खास भूमिका नहीं निभाई, तब अंतत: न्यायपालिका ने ही घोटालों का पदार्फाश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जस्टिस काटजू खुद सुप्रीम कोर्ट में जज रहे हैं, आज वह व्यवस्था से बाहर हैं तो यह अलग बात है। बीसीसीआई के कामकाज में पारदर्शिता की जरूरत है, अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुधारने के लिए कोई कदम उठाए हैं तो फिर सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं। लोढा समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने या नहीं करने का काम विधायिका पर छोड़ देना चाहिए, यह मुद्दा बहस का विषय हो सकता है लेकिन बीसीसीआई में सुधार वक्त की जरूरत है, इसे तो किया ही जाना चाहिए।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »