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कुर्बानी से क्यों बच रहे भड़काने वाले

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 6 2016 10:43AM | Updated Date: Aug 6 2016 10:43AM
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-कैलाश विजयवर्गीय
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।


हिजबुल मुजहिदीन के चीफ कमांडर सैय्यद सलाहुद्दीन से एक पाकिस्तानी पत्रकार के एक सवाल का जवाब नहीं दिया गया। पत्रकार का सवाल था कि आपके बच्चे जिहाद के रास्ते पर क्यों नहीं चल रहे हैं? इस सवाल का जवाब बेशक सलाहुद्दीन ने नहीं दिया पर यह बात काबिले-तारीफ है कि पाकिस्तान के एक पत्रकार ने खूंखार आतंकवादी से यह सवाल पूछकर उन तमाम आतंकवादी सरगनाओं को भी सवाल के घेरे में खड़ा कर दिया है, जिनके बच्चे पढ़-लिख कर विदेशों में या पाकिस्तान में सरकारी नौकरी कर रहे हैं। आखिर ये आतंकवादी सरगना दूसरों के बच्चों को ही जिहादी बनने के लिए क्यों उकसाते हैं। अगर जिहाद ही रास्ता है तो अपने बच्चों को क्यों नहीं हथियार थमाते हैं?

इसी तरह का सवाल मानवाधिकार कार्यकर्ता जुनैद ने किया है। जुनैद जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापकों में से एक हाशिम कुरैशी का बेटा है। जुनैद नीदरलैंड में मानवाधिकार के लिए सक्रिय है। जुनैद ने हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहानवानी की मौत के बाद कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर कहा था कि कश्मीरी नौजवान अलगाववादियों से पूछें कि अगर जिहाद और कश्मीर की आजादी के लिए बंदूक उठाना जरूरी है तो फिर वे क्यों अपने बच्चों को बंदूक नहीं थमाते। अलगाववादी नेताओं के बच्चे मलेशिया, कनाडा और अमेरिका में हैं। कुछ कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के बच्चे दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं और कुछ नौकरी भी कर रहे हैं। वैसे देखा जाए तो यह एक अच्छी शुरूआत है कि आतंकवादी या अलगाववादी नेताओं के दोहरे रवैए पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल भी उनके बीच के लोग उठा रहे हैं। इसी तरह का सवाल आॅल इंडिया वुमन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने भी उठाया है। शाइस्ता को लेकर उलेमाओं में नाराजगी भी रहती है। शाइस्ता ने भारत के मौलानाओं के दोहरे चरित्र को लेकर सवाल उठाए हैं। शाइस्ता की बात में दम है कि भारत के मौलाना अपने बच्चों को तो अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं और कौम के बच्चों को मदरसों में भेजने की सलाह देते हैं।

शाइस्ता ने औरतों की गैरबराबरी का मुद्दा भी उठाया है। उसने यह मांग भी उठाई है कि मुस्लिम लड़कियों को भी कांवेंट स्कूलों में पढ़ने का मौका मिलना चाहिए। शाइस्ता ने ही 15 साल पहले महिलाओं के लिए अलग मस्जिद बनाई थी। इस बार ईद पर महिलाओं ने पहली बार ईदगाह में नमाज भी अता की। यह भारत के मुस्लिम समाज में आ रहे बदलाव का संकेत है।

हाल ही में पाकिस्तान और आतंकवादी नेताओं के दोहरे रवैए का खुलासा भी मीडिया ने किया है। एक तरफ तो पाकिस्तान में भारतीय दूतावास में काम करने वाले बच्चों को बाहर पढ़ाई करने के लिए जाना जोखिम भरा हो गया है। भारत सरकार ने बाकायदा भारतीय दूतावास के कर्मचारियों को पाकिस्तान के स्कूलों में पढ़ाई से मना किया है। इसकी वजह सुरक्षा को खतरा बताया गया है। दूसरी तरफ पाकिस्तान में भारत विरोधी आतंकवादियों के बच्चों के लिए कॉलेजों में कोटा तय करने का खुलासा हुआ है। इस योजना के पीछे हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ कमांडर सैय्यद सलाहुद्दीन का दिमाग बताया गया है। जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों के परिजनों को वजीफा देने के इंतजाम भी किए गए हैं। सलाहुद्दीन की सलाह पर ही मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज में दाखिला दिया जाता है। यह सब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए किया जाता है। अपने बच्चों को जिहाद से दूर रखने वाले सैयद सलाउद्दीन के चार बेटे और दो बेटियां हैं। यह जानकारी सामने आई है कि उसके चारों बेटे सरकारी नौकरी में हैं। सलाहुद्दीन का एक बेटा सईद मुईद श्रीनगर में एक सरकारी विभाग में आईटी इंजीनियर है। इस साल फरवरी में पांपोर हमले में सुरक्षा बलों ने उसे सुरिक्षत बचाया था, जिसके बेटे को भारतीय सुरक्षा बलों ने सुरक्षित बचाया। वहीं सलाहुद्दीन भारत के खिलाफ आतंकवादी तैयार कर रहा है।

जिहाद के लिए उकसाने वाले कश्मीर के अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी के तीन बेटों और तीन बेटियों में एक भी आतंकी या अलगाववादी सियासत का हिस्सा नहीं है। ऐसे कट्टरपंथी नेताओं के बहकावे में कश्मीर के नौजवान हिंसा फैला रहे हैं। इस्लाम और जिहाद के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा देने वाले ये नेता कश्मीर में भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहे हैं। कश्मीर में गो-इंडिया गो-बैक जैसे नारे दीवारों पर लिखे जा रहे हैं। खुद सैयद अली शाह गिलानी को भी दीवारों पर ऐसे नारे लिखते देखा गया है। ऐसे ही नेताओं के जरिए पैसे देकर सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करने के लिए नौजवानों को उकसाया जा रहा है। जिहाद से अपनी औलाद को दूर रखने वाले गिलानी के पास भी इस बात का जवाब नहीं है, उसके बेटे-बेटियां ऐसी सियासत से दूर क्यों हैं? भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले गिलानी का बड़ा बेटा डॉ. नईम गिलानी लंबे समय तक पाकिस्तान में भी रहा। कुछ साल पहले वह भारत आया और फिर विदेश चला गया। गिलानी का दूसरा बेटा जहूर गिलानी अमेरिका में मजे से रह रहा है। छोटा बेटा नसीम गिलानी शेरे कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी संस्थान श्रीनगर में आराम से नौकरी कर रहा है। गिलानी की एक बेटी जेद्दा और एक दिल्ली में है। गिलानी के नाती भी नौकरी करने लगे हैं। एक नाती तो एयरलाइंस कंपनी में काम कर रहा है। केवल गिलानी ही नहीं कई हुर्रियत नेताओं का दोहरा रवैया लोगों के सामने आया है। पाकिस्तान समर्थक और कश्मीर में शरीयत लागू करने की वकालत करने वाली महिला अलगाववादी आसिया अंद्राबी ने खुद आतंकी कमांडर से शादी की थी। उसका खाविंद डॉ. कासिम फख्तु जेल में पर बड़ा बेटा बिन कासिम चार साल पहले गुपचुप तरीके से मलेशिया में अपनी मौसी के पास रहकर इस्लामिक यूनिवर्सिटी में सूचना प्रौद्योगिकी की पढ़ाई कर रहा है। आसिया के रिश्तेदार भी विदेशों में अच्छी नौकरी कर रहे हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, कट्टरपंथी नेता गुलाम नबी सुमजी, अशरफ सहराई, मास मूवमेंट की मुखिया फरीदा सहित कई अन्य कट्टरपंथी नेताओं के बेटे-बेटियां और रिश्तेदार सरकारी नौकरी कर रहे हैं या व्यवसाय में लगे हैं। इनमें कई तो सरकारी नौकरियों में हैं।

कश्मीर में पाकिस्तान का समर्थन करने वालों को इस सच्चाई से भी वाफिक होने की जरूरत है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की क्या हालत है? वहां पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ अब प्रदर्शन हो रहे हैं। कश्मीर के नौजवानों को हिंसा के रास्ते पर धकेलने वाले नेताओं को यह बताने की जरूरत है कि जिहाद से अपने बेटे-बेटियों को क्यों दूर रखा है। जिहाद के लिए अपने बच्चों के हाथ में हथियार क्यों नहीं थमाते हैं। इतने ही जिहाद के समर्थक हैं तो अपने बच्चों को भी कुर्बानी देना सिखाएं तब यह माना जाएगा कि ये नेता वास्तव में जिहाद के लिए काम कर रहे हैं। सच तो यही है कि ये लोग केवल विदेशी ताकतों की हाथों की कठपुतलियां हैं। विदेशी ताकतों के इशारे पर और लालच में देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नौजवानों को उकसा रहे हैं। यह बात मत भूलिए कि अब समय बदल रहा है और खुद मुस्लिम नौजवान सच्चाई जानकर हिंसा और नफरत के रास्ते से हटकर राष्ट्र की मुख्य धारा में आना चाहते हैं।

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