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आखिर किसके लिए हैं सरकारी स्कूल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 26 2016 10:57AM | Updated Date: Jul 26 2016 10:57AM
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-सीमा पासी
वरिष्ठ पत्रकार


आप किसी कुम्हार के पास जाते हैं और कुछ मिट्टी देकर कहते हैं कि वो उससे एक घड़ा बनाए, जो पानी रखने के साथ-साथ शीतल जल भी प्रदान करे। कुछ दिन बाद जब आप उससे घड़ा लेने जाते हैं तो वो एक ऐसा पात्र बनाकर दे देता है, जिसमें पानी टिकता ही नहीं है और पानी के ठंडा होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ऐसे में क्या आप उस कुम्हार को उसकी मजदूरी देंगे, बिल्कुल नहीं, उल्टे आप उससे लड़ेंगे कि उसने आपकी कच्ची मिट्टी भी खराब कर दी, जिससे अब कोई नया बर्तन भी नहीं बनाया जा सकता।

हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है, गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजे जाते हैं, ताकि वो अच्छी शिक्षा प्राप्त करके योग्य और बेहतर इंसान बन सकें, अपने पैरों पर खड़े होकर घर-परिवार को सहारा दें, लेकिन क्या सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं, बिल्कुल नहीं। वर्तमान हालात में 10 प्रतिशत बच्चे भी इस लायक नहीं होते कि वे अपनी जिंदगी की लड़ाई बेहतर तरीके से लड़ सकें। कुछ बच्चे माता-पिता, घर-परिवार की मदद से रिश्वत या सिफारिश जैसे गैरकानूनी तरीके से किसी छोटी-मोटी नौकरी का जुगाड़ बिठा लेते हैं और कुछ यूं ही धक्के खाते हुए गैर-संगठित क्षेत्र में मजदूरी करने के लिए विवश होते हैं। नाममात्र बच्चे ही ऐसे होते हंै जो उच्च शिक्षा प्राप्त करके कुछ बेहतर कर पाते हैं।

आजकल एक नया रुझान दिखाई दे रहा है कि चपरासी, कुली, सफाई कर्मचारी और अन्य छोटे पदों की नौकरी के लिए एम.बी.ए., एम.ए., बी.टेक एवं पीएचडी जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त उम्मीदवार भी लाइन लगा कर खड़े हैं। अक्सर ऐसे हालातों के लिए देश में बढ़ रही बेरोजगारी को दोष दिया जाता है, लेकिन ये सच नहीं है, सच्चाई  ये है कि सरकारी नौकरी में बिना कुछ काम किए मुफ्त में पूरा वेतन मिलने की गारंटी मानी जाती है, जिसके कारण आज हर आदमी किसी भी तरीके से सरकारी नौकर बन जाने को आतुर हैं, इसका कारण यह भी है कि इस प्रकार की नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त बच्चे केवल नाम के ही डिग्रीधारी हैं, अपनी डिग्री के अनुसार उनमें योग्यता नहीं होती। बिहार ने सारे देश को बता दिया है कि कैसे डिग्री बेचने का व्यापार चल रहा है, ये अलग बात है कि यह काम पूरे देश में हो रहा है, बिहार में तो केवल ऐसा होता हुए पकड़ा गया है।

वास्तव में समस्या की जड़ वे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय हैं जहां से बच्चों के जीवन को खराब करने की शुरुआत होती है। यही वो जगह हैं जहां सुनियोजित तरीके से बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जाता है। हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था की जड़ ही खोखली हो चुकी है। अगर हम ध्यानपूर्वक अपनी शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि हमारी शिक्षा व्यवस्था अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। हमारी शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में छात्र है ही नहीं, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में है शैक्षणिक एंव गैर शैक्षणिक कर्मचारी, अफसर और नेता। जो शिक्षा व्यवस्था काम कर रही है उसका काम है शिक्षकों को रोजगार प्रदान करना, कर्मचारी और अफसरों को मोटा वेतन उपलब्ध करवाना और नेताओं को पैसे खाने का मौका देना, बेचारा छात्र तो कहीं है ही नहीं, वो क्या पढ़ता है, पढ़ने के बाद क्या करता है, इससे किसी को कोई मतलब नहीं है।

अब वो वक्त आ चुका है जब हम शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में छात्रों को लेकर आएं, क्योंकि अगर सरकारी स्कूल छात्रों का भला नहीं कर सकते तो उन सब पर ताला लगाना ही उचित है। 50,000 वेतन पाने वाला शिक्षक अगर अपने छात्रों को 5,000 वेतन पाने के लायक भी नहीं बना पाता तो ऐसे शिक्षक को नौकरी करने का क्या हक है? शिक्षकों के मन से सरकारी कर्मचारी होने की भावना को दूर करना आवश्यक है, उनका काम केवल हाजिरी लगाकर वेतन लेना नहीं है, क्योंकि उनकी गैरजिम्मेदारी देश का भविष्य बिगाड़ रही है। अगर आप सोचते हैं कि सारे शिक्षक ऐसे हैं तो आप गलत है। अधिकांश शिक्षक अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, लेकिन कुछ लोगों के कारण पूरी शिक्षा व्यवस्था की ऐसी हालत हो गई है। शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की जरूरत है।

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