-वीना नागपाल
नव दंपत्तियों के रिश्तों के बिखरने की घटनाओं ने समाज को चिंता में डाल दिया है। पढे-लिखे और उम्र के हिसाब से ही समझदारी की आयु में पहुंच चुके दंपत्ति भी जैसे परिपक्वता नहीं दिखाते हैं और कई बार बहुत सामान्य और साधारण लगने वाली बातों को लेकर एक दूसरे से इतनी दूरी बना लेते हैं कि अलग होने की नौबत आ जाती है। विवाह के पूर्व अति निकटता और प्रिय संबंध बनाए जाने के बावजूद जैसे ही विवाह होता है कि एक-दूसरे के साथ रहने पर परस्पर ऐसी कमियां और कमजोरियां दिखने लगती हैं यह तय हो जाता है कि अब एक -दूसरे के साथ रहना कतई मुमकिन नहीं है और बेहतर यही होगा कि संबंध विच्छेद कर लिया जाए। माता-पिता द्वारा निर्धारित विवाह संबंधों में जन्मपत्री मिलान और विवाह के लिए किए गए सारे ताम-झाम के बावजूद विवाह चल नहीं पाते।
प्राय: यह कहा जाता है कि संयुक्त परिवार दूर हो रहे हैं इसलिए वैवाहिक संबंध चल नहीं पा रहे हैं। एकल परिवार में दोंनो पति-पत्नी होते हैं और संतान होती है पर, उन पर परिवार के बुजुर्गों का साया नहीं होता, इसलिए वह मुक्त और स्वछंद होकर एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं। बात इतनी बढ़ जाती है कि अलग होने की नौबत आ जाती है। वह परिवार से अलग रहने के कारण अपनी मर्जी और इच्छा से परिवार चलाना चाहते हैं और इसमें दोनों के अहं टकराते रहते हैं, परंतु दोनों को समझाने वाला कोई नहीं होता और उन्हें अपने लड़ाई-झगड़े में किसी बुजुर्ग की उपस्थिति का कोई लिहाज भी नहीं होता।
आजकल वैवाहिक रिश्तों की दरार में परिवारों के बुजुर्ग भी भागीदारी कर रहे हैं। कई परिवारों में बुजुर्ग लेने-देने के मामलों और विशेषकर देहज को लेकर अप्रिय बातें करते हैं और बहुत त्रस्त करते हैं। पहले के बुजुर्ग देहज की मांग और इससे जुड़ी किसी भी मांग को बहुत ओछी मनोवृति मानते हैं परंतु आजकल इसे लेकर परिवार के बड़े-बूढ़े ही इतनी अप्रियता निर्मित कर देते हंै कि वधुओं का जीना कठिन हो जाता है। उनका उनके पति के साथ रहना तो दूर की बात है यहां तक कि उसे शारीरिक रूप से भी प्रताड़ित किया जाता है। परिवारों में बुुजुर्गों (माता-पिता) का यह रोल तो नहीं होना चाहिए कि वह केवल दहेज के लोभ के कारण संबंधों को चलने न दें। बात-बात पर ताने कसना और वधू के माता-पिता के प्रति अप्रिय बातें कहना बुजुर्ग आजकल अपना अधिकार समझने लगे हैं। अच्छे-खासे पढ़े-लिखे व संपन्न परिवारों में भी बहुओं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जाता है कि वह रोज-रोज के विवाद से परेशान होकर पति और परिवार से अलग होने का फैसला ले ही लेती हैं। यदि बहू कामकाजी है तो उसके लिए परेशानियां और भी बढ़ जाती हैं। उससे यह आशा की जाती है कि वह परंपरावादी और पुरानी चली आ रही रूढ़ियों की तरह घर का काम करे और सास-ससुर की सेवा में जुटी रहे। इस तरह के दबाव सहन करना असंभव होता है तब नव दंपत्तियों अथवा दंपत्तियों में विवाद होता है पर, घर के बुजुर्ग इसे सुलझाने की या स्वयं बदलने की कोई कोशिश नहीं करते। आजकल वधू पक्ष के बुजुर्ग भी कुछ इसी प्रकार व्यवहार करते हैं। वह छोटी-छोटी बातों को तूल देकर उन्हें अपने स्वाभिमान का प्रश्न बना लेते हैं और बेटी के परिवार में टकराव की स्थिति टालने का परामर्श नहीं देते। इन टूटते रिश्तों में आपसी समझ बढ़ाने साथ-साथ परिवारों के बुजुर्गों को भी इसमें अहम रोल निभाना होगा।
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