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महिला सशक्तिकरण में पुरुषों का भला

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 12 2016 11:49AM | Updated Date: Jul 12 2016 11:49AM
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-वीना नागपाल

संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व के देशों का ऐसा संघ है जो बनाया तो गया था देशों में परस्पर युद्धों को रोकने के लिए पर, इसमें विश्व की मानव सभ्यता की रक्षा, विकास व प्रगति के भी कई विभाग अस्तित्व में आ गए। इसमें विश्व की महिलाओं के सशक्तिकरण की बात को इतना महत्व दिया जाने लगा कि इसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों की नीति को कई देशों ने अपनी नीति का एक आवश्यक अंग माना है। इसे प्रतिष्ठा से जोड़कर भी देखा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि यदि महिलाओं का सशक्तिकरण होता है तो उस समाज के परिवारों की पुरुषों की स्थिति में भी बहुत अंतर आ जाता है। प्राय: परिवार को लेकर पुरुष ही नीतियां निर्धारित करते हैं। अब भी कई समाजों में महिलाओं को परिवार चलाने के बारे में विशेष रूप से पूछा नहीं जाता। उदाहरणार्थ महिलाओं से इस मामले में लगभग कोई सलाह नहीं ली जाती कि बच्चे कैसे स्कूलों में पढ़ेंगे तथा कहां तक पढ़ेंगे? बेटियों के मामले में तो और भी अधिक पूछा नहीं जाता। उनकी शिक्षा के बारे में तथा उनके विवाह को लेकर उनसे कोई परामर्श नहीं किया जाता और न ही कोई सलाह ली जाती है। कई बार तो मांएं नहीं चाहती कि उनकी बच्ची अशिक्षित रहे या अपनी पढ़ाई पूरी न करे, परंतु उसकी इस बात को सुनने का कोई प्रयास ही नहीं किया जाता। लगभग यही बात उनके विवाह को लेकर भी होती है। परिवार के पुरुष ने जिस भी उम्र में और जहां भी व जैसा भी उसका विवाह निश्चित कर दिया बस वही निर्णय पत्थर की लकीर हो जाता है। बेटों को लेकर भी परिवार के पुरुष निर्णायक की भूमिका ही निभाते रहते हैं। उनकी पढ़ाई भी जल्दी छुड़वाकर उन्हें काम-धंधे में लगाने की बात पर जोर दिया जाता है। कई बार मां ऐसा नहीं चाहती। वह तो बच्चों की पढ़ाई करवाकर उनका बेहतर भविष्य बनाना चाहती है पर उसकी सुनता ही कौन है?

यहां संयुक्त राष्ट्र ने अपना सर्वेक्षण कर एक और निष्कर्ष निकाला। यह पाया गया कि जहां महिलाएं सशक्त हुई हैं वहां घर-परिवारों में उनकी कही बात सुनी जाती है और पुरुष  भी उनकी कही गई बातों को वजनदार मानते हैं। महिला सशक्तिकरण से अभी तो यही बात उभरकर आई है कि उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता से उनकी स्थिति में पर्याप्त अंतर आ जाता है। उनके परामर्श व सलाह देने की अहमियत बढ़ती है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाएं अपने बेटों तथा भाइयों के जीवन में बेहतर सुधार ला पाती हैं। वह उनकी शिक्षा के लिए अच्छे अवसर दे पाती हैं। प्राय: महिलाएं अपने आर्थिक योगदान से परिवारों का माहौल बहुत बेहतर बना देती हैं। परिवार की कई आवश्यकताओं को पूरा कर देती हैं। इससे परिवार के पुरुषों का नजरिया भी बदलने लगता है और वह भी परिवार की नीतियों को लेकर उनके परामर्श को महत्व देते हैं। धीरे-धीरे वह सशक्त होती जाती हंै और परिवार उनके हितकारी परामर्श मानने लगता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने सर्वेक्षण में इस तथ्य को प्रमुखता दी कि यदि महिलाओं का सशक्तिकरण होता है तो परिवार के पुरुषों की स्थिति में भी इससे सुधार होता है। पुरुषों के महिला सशक्तिकरण के प्रति दृष्टिकोण को उदार बनाना अत्यंत आवश्यक है। यदि वह ऐसा करते हैं तो वह परिवार में जहां अकेले ही जूझते रहते हैं उसके स्थान पर उन्हें एक ऐसा साथी मिलता है जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों को बांट लेता है। बिल गेट्स की पत्नी मिलेंडा गेट्स का कहना है- मेरा विश्वास है कि यदि पुरुषों को महिला सशक्तिकरण का हिस्सेदार बनाया जाए तो बहुत लाभकारी परिणाम निकल सकते हैं। इसलिए अधिक से अधिक पुरुषों को इस कार्य में जोड़ा जाए। पुरुष इसमें सहयोगी बनेंगे इस पर मेरा पूरा विश्वास है, क्योंकि ऐसा होते हुए मैं देख पा रही हूं। वास्तव में बहुत आहिस्ता व चुपके से पुरुष राजनीतिक, सामाजिक और सामान्य स्तर भी महिला सशक्तिकरण के सहभागी हो रहे हैं। हमारा नजरिया और प्रयास भी यही होना चाहिए इसमें अधिक से अधिक पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
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