26 Apr 2024, 22:09:21 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-आर.के. सिन्हा
सांसद (राज्यसभा)

साल 1951 राजधानी के नेशनल स्टेडियम में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पहले एशियाई खेलों का उद्घाटन भाषण देते वक्त भारतीय खिलाड़ियों का आह्वान कर रहे थे कि पदक जीतने से अहम है खेल भावना। यानी पदक भले ही मिलें न मिलें, पर खेल भावना का ख्याल रखा जाए। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी रियो ओलिंपिक में भाग लेने वाले भारतीय दल के खिलाड़ियों से मिले। उन्होंने खिलाड़ियों को पदक जीतने की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने पहलवान योगेश्वर दत्त को गोल्ड मेडल जीतने के लिए कहा। पं. नेहरू और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाड़ियों से आह्वान में अंतर देखिए। अब भारतीय खिलाड़ी खेल भावना का मैदान में परिचय तो दें पर पदक भी जीतें। होना भी यही चाहिए। आप आखिर मैदान में जीतने जा रहे हैं या मात्र अपनी मौजूदगी को दर्ज करवाने मात्र के लिए आप किसी अहम खेल प्रतियोगिता में भाग लेते हैं? यह सवाल महत्वपूर्ण है।

एक बात और... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले कोई भी प्रधानमंत्री ओलिंपिक खेलों में भाग लेने के लिए जाने वाले भारतीय खिलाड़ियों से मिला भी नहीं है। ये साफ करता है कि अब देश खेलों को लेकर गंभीर है। खिलाड़ियों को सुविधाएं भी मिल रहा हैं। खिलाड़ी भी पदक जीतने की हरचंद कोशिश करने लगे हैं। मोटे तौर पर भारत की झोली में रियो में एक दर्जन के आसपास पदक आ सकते हैं। सायना नेहवाल को बैडमिंटन, जीतू राय को निशानेबाजी, मिश्रित युगल टेनिस (लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना), पुरुष हॉकी टीम, गोल्फ और कुश्ती में योगेश्वर को पदक मिल सकता है। इसके अलावा तीरंदाजी और एथलेटिक्स में भी हमें कुछ पदक मिल सकते हैं।

देश पुरुष हाकी में भी पदक की उम्मीद कर रहा है। ये भी सच है कि हमारी हॉकी टीम ने चैम्पियंस ट्राफी में भले ही इतिहास रच दिया हो, लेकिन; खिलाड़ियों को रियो ओलिंपिक में पोडियम स्थान हासिल करने के लिए काफी बेहतर प्रदर्शन करना होगा। उधर लय,ताल और गति का सुंदर मिश्रण ही हमें पदक दिलवा सकता है। ओलिंपिक में आस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन जैसी शक्तिशाली टीमें भी रहेंगी, लेकिन, अगर सरदार सिंह के नेतृत्व वाली टीम अपने पूरे जोश के साथ खेली तो हम गोल्ड मेडल तक जीत सकते हैं। देश ने 1980 के मास्को ओलंपिक खेलों के बाद हॉकी में गोल्ड मेडल नहीं जीता है। इस बार सारा देश हॉकी में गोल्ड मेडल की उम्मीद कर रहा है। ये भी सच है कि ओलंपिक खेलों में बाकी टीमें भी अपने प्रदर्शन के स्तर को वर्ष-दर-वर्ष और ऊपर ले जाती हैं। बेशक, भारतीय टीम अब दुनिया की शीर्ष टीमों को कड़ी टक्कर देने लगी है और अपने अच्छे दिन में किसी भी टीम को हरा सकती है। इसलिए रियो में कोई बड़ा उलटफेर हो सकता है। भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार ओलिंपिक खेलों में क्वालीफाई किया है। इस भारतीय महिला हॉकी टीम में  हरियाणा की कई बेटियां हैं। ज्यादातर का संबंध अंबाला से सटे शाहबाद-मारकंडा से है। यहां से लगातार भारतीय महिला हॉकी टीम को उम्दा खिलाड़ी मिल रही हैं। भारतीय महिला टीम की बहुत सारी उम्मीदें शाहबाद मारकंडा शहर की रानी रामपाल के प्रदर्शन पर टिकी होंगी। ओलिंपिक खेलों के क्वालिफाई मैचों में भी रानी ने कई गोल दागे थे। रानी रामपाल बेहद साधारण परिवार से हैं। रेलवे में कार्यरत हैं। वे सारे देश की बेटियों के लिए प्रेरणा हैं। अभी भी उसके पिता मजदूरी करके घर चलाते हैं।

रियो में हमारे करीब 100 एथलीट 13 खेल टीमें प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगी। उम्मीद है इस बार भी भारतीय खिलाड़ी करीब एक दर्जन तक पदक देश के लिए जीतेंगे। इनमें कई गोल्ड मेडल भी होंगे। यानी रियो में तिरंगा लहराता रहेगा और राष्ट्रगान भी कई बार सुनने को मिलेगा। लगातार सातवीं बार ओलपिंक खेलों में भाग ले रहे लिएंडर पेस- रोहन बोपन्ना टेनिस के युगल मुकाबलों में भारत को पदक दिलवाने की क्षमता रखते हैं। पेस पहले भी ओलंपिक खेलों में पदक जीत चुके हैं। कुछ दिन पहले खबरें आने लगीं थी कि बोपन्ना ने ओलिंपिक खेलों में पेस के साथ खेलने से मना कर दिया है। बहरहाल, अब सारा मामला शांत हो गया है। हालांकि टीम की घोषणा के पहले खिलाड़ियों के बीच विवाद खुलकर सामने आया और बोपन्ना ने साकेत मायनेनी के साथ खेलने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन भारतीय टेनिस संघ ने बोपन्ना की मांग खारिज कर दी थी। लिएंडर पेस ने कुछ समय पहले ही फ्रेंच ओपन का मिक्स डबल्स खिताब अपने नाम किया था और वो अच्छे फॉर्म में नजर आ रहे हैं। वे भारत के महानत खिलाड़ियों में से एक हैं। संयोग देखिए कि उनके पिता विक पेस ने 1972 के म्युनिख ओलिंपिक खेलों में भारत की हॉकी टीम की नुमाइंदगी की थी। पेस भारत की ओर से 1996 के अटलांटा ओलिंपिक में कांस्य पदक जीत चुके हैं।

लगातार दो ओलिंपिक खेलों में भारत को कुश्ती के मुकाबलों में पदक दिलवाने वाले सुशील कुमार की इस बार कमी खलेगी। वे रियो में भाग नहीं ले पा रहे हैं। उनके परम मित्र योगेश्वर दत्त चाहते हैं कि वे रियो में गोल्ड जीत लें। वे सोने के साथ अपने ओलिंपिक सफर का अंत चाहते हैं। मोदी से मिलने के बाद उन्होंने कहा कि वह अपने इस आखिरी मुकाबले को यादगार बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। पिछले लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता योगेश्वर रियो डि जनेरियो में 65 किग्रा भार वर्ग में भाग लेंगे। योगेश्वर दत्त ने एक साक्षात्कार में कहा कियह मेरा चौथा और आखिरी ओलिंपिक होगा और इसलिए मैं स्वर्ण पदक जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं। हरियाणा का रहने वाला यह 33 वर्षीय पहलवान जानता है कि लोगों ने उनसे क्या उम्मीद लगा रखी है। 74 किलोग्राम वर्ग में भाग लेने वाले नरसिंह यादव से शायद इस बार ओलंपिक में सबसे ज्यादा उम्मीद हैं। नरसिंह यादव ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम किया था। वे मूल रूप से बनारस से हैं। अब महाराष्ट्र में बस गए हैं।

एशियाई खेलों के स्वर्ण विजेता निशानेबाज जीतू राय ने फिर से लय हासिल कर ली है। उन्होंने अजरबेजान की राजधानी बाकू में पिछले विश्व कप में एअर पिस्टल में रजत पदक जीता था। इसलिए उनसे पदक की उम्मीद है।  साइना नेहवाल पर भी रियो ओलिंपिक में बड़ी उम्मीद लगी रहेगी। इसी तरह विकास कृष्णन 75 भार वर्ग के मुक्केबाज के मुकाबलों में रियो ओलिंपिक में हिस्सा लेंगे। विकास कृष्णन ने साल 2011 में अजरबैजान में हुई विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। विकास ने साल 2014 के इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता था। लंबे समय से उनकी नजर ओलिंपिक में पदक जीतने पर है।

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