27 Apr 2024, 09:45:00 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

मोबाइल को लेकर पंचायतों अथवा विभिन्न समाजों द्वारा जब-तब आपत्तियां उठाई जाती हैं विशेषकर युवतियों और लड़कियों पर ही मोबाइल को लेकर पाबंदी लगाने की बात की जाती है। जैसे कि समाज में जो कुछ भी बुरा हो रहा है वह केवल इसलिए की लड़कियां मोबाइल यूज करती हैं और उन पर बातें करती हैं। हैरत की बात तो यह है कि लड़कों के मोबाइल यूज करने को लेकर कभी आपत्ति नहीं उठाई जाती। यह तो बहुत एक तरफा नजरिया है। लड़कियों के मोबाइल यूज करने को लेकर ही क्या सारी बुराइयां समाज में पनप रही हैं और यदि वह मोबाइल पर बातें नहीं करेंगी और उनसे मोबाइल छीन लिए जाएंगे तो समाज एकदम स्वच्छ व पवित्र हो जाएगा। समाज में कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटेगी और दुर्व्यवहार की व अशिष्टता पेश आने वाली घटनाएं एकाएक बंद हो जाएंगी।

आप और हम यह भली प्रकार जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। लड़कियां मोबाइल पर यदि बात करती हैं तो जरूरी नहीं कि वह बिगड़ी हुई हो जाएंगी और अपने चरित्र को भूल जाएंगी। यह सरासर उन पर अविश्वास करने जैसा है। यदि परिवार को अपनी बेटी को दिए संस्कारों पर भरोसा है तो कोई कारण नहीं है कि वह मोबाइल यूज न करें या उनसे मोबाइल छीनने की बात की जाए। बल्कि वह इसका सदुपयोग कर अपने परिवार को अपने देर-सवेर होने और यहां तक कि इस बात की जानकारी भी देगी वह उस समय कहां पर है? यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि बेटी का अपने माता-पिता तथा परिवार से एक विश्वास का रिश्ता है। उसका उनसे संवाद होता है और वह अपने परिवार से हर बात शेअर करती है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि पैरेंट्स का अपनी बेटी से एक प्रकार की मित्रता का भी संबंध है। जब परिवारों में ऐसा माहौल मौजूद होता है तो कोई कारण नहीं है कि घर की बेटी अपने माता-पिता का विश्वास तोड़े। इसमें मोबाइल यूज करने की बात पर पाबंदी लगाने की कोई बात नहीं आती। दरअसल पंचायतें तथा समाज अकारण ही ऐसे कारण ढूंढ़ने लगते हैं जो केवल सतही होते हैं बल्कि उनसे समाज की बुराई हटने या मिटने का कोई ठोस उपाय भी नहीं होता। उनकी सारी चिंता लड़कियों पर ही तरह-तरह की रोक लगाने से शुरू होती है और वहीं पर जाकर खत्म होती है। पता नहीं लड़के इस दायरे से बाहर क्यों रखे जाते हैं। पाबंदियों की सारी बेड़ियां लड़कियों और युवतियों को पहनाने से समाज में होने वाली बुरी दुर्घटनाएं रुक नहीं जाएंगी। सदियों से यही तो होता आ रहा है कि लड़कियों को चाहर दीवारी में कैद कर दो बुराई खत्म हो जाएगी। इसके जितने अमानवीय नतीजे समाज में महिलाओं ने भुगते हैं वह आज भी हमें पीड़ा पहुंचाते हैं, जबकि बुराई वहीं की वहीं मौजूद रही। परिवारों के संस्कार और उनके द्वारा सिखाए गए मूल्य यदि मजबूत होंगे तो कोई कारण नहीं कि इस तरह मोबाइल रखने पर लड़कियों पर पाबंदी लगाई जाए। दायरे में लड़कियां और लड़के दोनों ही आते हैं।

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