-बालमुकुंद ओझा
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
देश में पिछले 60 वर्षों में नशे का प्रचलन अत्यधिक बढ़ा है। अमीर से गरीब और बच्चे से बुजुर्ग तक इस लत के शिकार हो रहे हैं। शराब के अतिरिक्त गांजा, अफीम और अन्य अनेक प्रकार के नशे अत्यधिक मात्रा में प्रचलित हो रहे हैं। शराब कानूनी रूप से प्रचलित है तो गांजा-अफीम आदि देश में प्रतिबंधित है और इनका क्रय-विक्रय चोरी छिपे होता है। वर्तमान में देश के 20 प्रतिशत राज्य नशे की गिरफ्त में है। इनमें पंजाब राज्य का नाम प्रमुखता से टॉप पर है। पंजाब के बाद मणिपुर और तमिलनाडु का नाम है। भारत सरकार ने यह जानकारी अधिकृत रूप से जारी की है, हालांकि भारत सरकार ने यह जानकारी 10 से 15 साल पुराने आंकड़ों के आधार पर दी है। तब से अब तक के हालात तो और अधिक भयावह हो गए हैं।
पंजाब के हालात इस समय सबसे खराब बताए जा रहे हैं। जहां सीमा पार से लगातार नशीले पदार्थों की तस्करी के समाचार सुर्खियों में हैं। पंजाब की युवा पीढ़ी नशे की सर्वाधिक शिकार है। पंजाब के हालात पर यदि शीघ्र गौर नहीं किया गया और नशे पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हरे-भरे पंजाब को नष्ट होने से कोई भी नहीं बचा पाएगा।
हमारे समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना और स्वीकार किया गया है। इनमें सर्वाधिक प्रचलन शराब का है। शराब सभी प्रकार की बुराइयों की जड़ है। शराब के सेवन से मानव के विवेक के साथ सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अंतर नहीं समझ पाता। शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ-साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है। शराबी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। बताया जाता है कि देश में 21.4 प्रतिशत लोग शराब के नशे के शिकार हैं। तीन प्रतिशत लोग भांग-गांजे का सेवन करते हैं। 0.7 प्रतिशत लोग अफीम और 3.6 प्रतिशत लोग प्रतिबंधित ड्रग्स लेते हैं। 0.1 प्रतिशत लोग इंजेक्शन के जरिए जानलेवा ड्रग्स के शिकार हैं।
एक सर्वे के अनुसार भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनके घरों में दो जून रोटी भी सुलभ नहीं है। जिन परिवारों के पास रोटी-कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं, उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमाकर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं। इन लोगों को अपने परिवार की चिंता नहीं है कि उनके पेट खाली हैं और बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग कहते हैं वे गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उनका यह तर्क कितना बेमानी है जब यह देखा जाता है कि उनका परिवार भूखे ही सो रहा है। एक स्वैच्छिक संगठन की रिपोर्ट में यह जाहिर किया गया है कि कुल पुरुषों की आबादी में से आधे से अधिक आबादी शराब तथा अन्य प्रकार के नशों में अपनी आय का आधे से अधिक पैसा नशे पर बहा देते हैं। कहा जा रहा है कि नशे का प्रचलन केवल आधुनिक समाज की देन नहीं है, अपितु प्राचीनकाल में भी इसका सेवन होता था। नशे के पक्षधर लोग रामायण और महाभारत काल के अनेक उदाहरण देते हैं। वहीं इसके विरोधियों का मानना है कि प्राचीनकाल में मदिरा का सेवन आसुरी प्रवृत्ति के लोग ही करते थे। इससे समाज में उस समय भी असुरक्षा, भय और घृणा का वातावरण उत्पन्न होता था। ऐसी आसुरी प्रवृत्ति के लोग मदिरा का सेवन करने के बाद खुले आम बुरे कार्यों को अंजाम देते थे।
देश में नशाखोरी में युवावर्ग सर्वाधिक शामिल है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवन शैली, परिवार का दबाब, परिवार के झगड़े, इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने, पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं। वर्ल्ड ड्रग्स की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत ड्रग्स का सबसे बड़ा बाजार है।
वर्ष 2009-11 में 1.4 अरब डॉलर के ड्रग्स का कारोबार हुआ। इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत नशे के कारोबार में किस हद तक लिप्त है। आजादी के बाद देश में शराब की खपत 60 से 80 गुना अधिक बढ़ी है। यह भी सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को एक बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है। मगर इस प्रकार की आय से हमारा सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। हम विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में शराब बंदी के लिए कई बार आंदोलन हुए, मगर सामाजिक, राजनीतिक चेतना के अभाव में सफलता नहीं मिली। राजस्थान में एक पूर्व विधायक को शराब बंदी आंदोलन में लंबे अनशन के बाद अपनी जान तक गंवानी पड़ी। सरकार को राजस्व प्राप्ति का यह मोह त्यागना होगा तभी समाज और देश मजबूत होगा और हम इस आसुरी प्रवृत्ति के सेवन से दूर होंगे।