27 Apr 2024, 09:33:20 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

पता नहीं क्यों भाषा व शब्दों के चयन को लेकर कुछ तो ऐसा विचार नहीं किया जाता कि यह किस संदर्भ में प्रयुक्त किए जा रहे हैं। कई बार ऐसे समाचार आते हैं कि घर में मामूली विवाद हुआ और पत्नी या पति ने फांसी का फंदा चूम लिया। यह भी समाचार सुनने और पढ़ने को मिलता है कि किसी युवक व युवती ने किसी भी कारण से अथवा किशोर/किशोरी ने परीक्षा में असफल होने पर फांसी का फंदा चूम लिया।

यह दुर्घटनाएं जीवन की असफलताओं से संबंधित हैं। इस तरह लोग तनाव व पराजित भाव के कारण फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं। वह कोई भगतसिंह, सुखदेव या राजगुरु नहीं हैं जो किसी महान उदे्श्य के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लेते हैं और शहीद कहलाते हैं। ऐसे शहीद किसी अवसाद, तनाव व जीवन के संघर्षों का सामना न कर पाने के कारण नहीं बल्कि वीरता, शौर्य और साहस के भाव के कारण फांसी का फंदा चूम लेते हैं। उनके लिए वास्तव में फांसी का फंदा चूमना एक महान बलिदान व त्याग का कार्य रहा। यहां तक कि उन्हें यह दृढ़ विश्वास था कि उनके फांसी का फंदा चूमने का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और हजारों युवक-युवतियों के लिए देश पर मर मिटने की प्रेरणा देगा और ऐसा हुआ भी। यह कैसा व्यवहार है जो केवल एक परीक्षा परिणाम के कारण आत्महत्या करने का विचार मन पर हावी होता चला जाता है। गृहस्थ जीवन के संघर्षों तथा सामंजस्य स्थापित न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या करने का चुनाव कर लेते हैं। क्या इनके लिए फांसी का फंदा चूमने के शब्दों का प्रयोग करना ठीक होगा? यह तो एक प्रकार की कायरता व पराजित भाव है, जो इतनी कुंठा से भर देता है कि वह फांसी का फंदा लगा लेते हैं। ऐसा करने वाले केवल अपने बारे में ही निरंतर सोचते रहते हैं। उनका मनोविज्ञान केवल इस विचार पर केंद्रित रहता है कि उन्हें क्यों असफलता मिली? उनके जीवन में ही क्या कोई दु:ख व संघर्ष आया? उन्हें प्रेम में क्यों निराशा मिली? ऐसे आत्महत्या करने वाले डरपोक और निराश व्यक्ति होते हैं जो स्वयं को समाप्त कर अपने दु:खों से तो छुटकारा पाने का यह रास्ता ढूंढ़ते हैं पर, इतने स्वार्थी होते हैं कि वह अपने मरण से कितनों को दु:ख पहुंचाएंगे, क्या इसका अंदाजा वह लगा पाते हैं। अपनी इस असामयिक मृत्यु से वह अपने परिवार वालों को समाज का सामने सामना करना के लिए कितना अनुत्तरित प्रश्नों का ढेर छोड़ जाते हैं, क्या इसका आकलन वह कर पाते हैं। आत्महत्या करना कितनी बड़ी कायरता है इसका अंदाजा  इन्हें नहीं होता। ऐसे करने वालों को फांसी का फंदा चूमने वाले कहना इस तरह के कार्य का महिमा मंडन है, जो किसी भी तरह से ध्वनित नहीं होना चाहिए। मेरा रंग दे बसंती चोला माय...। गाते हुए व हंसते हुए फांसी का फंदा चूमने वाले उन महान देश भक्तों के हिस्से में ही ‘‘फांसी का फंदा चूमने’’ का प्रयोग करने वाले वाक्य को सुरक्षित रहने दें। जीवन से मामूली बातों के लिए निराश व हताश होने वाले का अवसाद ग्रस्त कायरों के लिए फांसी लगाने की बात का भाषा व शब्दों से महिमा मंडन करना अनुचित है। ये तो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने न तो अपने जीवन का कोई लक्ष्य बनाया है और न ही कोई उदे्दश्य निर्धारित किया।

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