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एमटीसीआर में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 14 2016 10:16AM | Updated Date: Jun 14 2016 10:16AM
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- अवधेश कुमार
- विश्लेषक


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत का एमटीसीआर या मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था में प्रवेश अब औपचारिक मात्र रह गया है। वास्तव में यह एक बड़ी और ऐतिहासिक कूटनीतिक सफलता है। इसमें हम अमेरिका के सहयोग को नहीं भूल सकते। पिछले वर्ष जब भारत ने इसकी सदस्यता के लिए आवेदन दिया तो कई देशों ने इसका तीखा विरोध किया। कुछ देश आसानी से ऐसे महत्वपर्ण क्लबों का विस्तार नहीं करना चाहते, लेकिन भारत का अब तक का रिकॉर्ड तथा अमेरिका के साथ संयुक्त कूटनीति ने माहौल को बदल दिया। विरोध करने वालों के लिए औपचारिक विरोध की अंतिम तिथि 6 जून रख दी गई थी। ध्यान रखिए 7 जून को मोदी और बराक ओबामा की मुलाकात होनी थी। इसके मद्देनजर ही यह तिथि तय की गई थी। भारत एवं अमेरिका की इस संबंध में चलने वाली कूटनीति पर नजर रखने वालों को इसमें कोई संदेह नहीं था कि वर्षों की भारत की आकांक्षा पूरी होने का ऐतिहासिक क्षण आ गया है। मिसाइल बनाने और उनका परीक्षण करने में समर्थ राष्ट्र होने के बावजूद भारत के साथ रंगभेद की नीति का अंत होगा और हम उस क्लब में शामिल होंगे और यह हो गया। एमटीसीआर की सितंबर-अक्टूबर में होने वाली प्लेनरी में भारत की सदस्यता की घोषणा हो जाएगी। हालांकि सदस्यता की घोषणा के लिए किसी प्रकार की बैठक की आवश्यकता नहीं है। इसके अध्यक्ष रोनाल्ड वीज अगले महीने भारत के दौरे पर भी आ सकते हैं।

पहले यह समझें कि एमटीसीआर है क्या? इसकी स्थापना 1987 में हुई थी। इसमें आरंभ में केवल सात देश अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, जापान, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल थे। आज इस समूह में 34 सदस्य हैं। भारत 35वां होगा। यानी 29 वर्षों में इसकी संख्या पांच गुना बढ़ी है। इसका उद्देश्य नाम से ही स्पष्ट है बैलिस्टिक मिसाइल, इसकी तकनीक, सामग्री आदि के प्रसार या बेचने की सीमाएं तय करना है। यह मुख्य रूप से 500 किलोग्राम पेलोड ले जाने वाली और 300 किमी तक मार करने वाली मिसाइल और अनमैन्ड एरियल व्हीकल टेक्नोलॉजी (ड्रोन) के खरीदे-बेचे जाने पर नियंत्रण रखता है। जाहिर है, भारत को भी इस सीमा का पालन करना होगा। एमटीसीआर के अलावा तीन ऐसी नियंत्रण व्यवस्था है जिसमें भारत प्रवेश चाहता है और अमेरिका मजबूती से भारत का साथ दे रहा है। ये तीन है- न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी, आॅस्ट्रेलिया ग्रुप और वैसेनार अरेंजमेंट हैं। आॅस्ट्रेलिया ग्रुप रासायनिक हथियारोें और वैसेनार अरेंजमेंट छोटे हथियारों पर नियंत्रण संबंधी व्यवस्था है। इन सबकी सदस्यता मिल जाने के बाद भारत दुनिया में हर किस्म के हथियार और उसकी तकनीकों की बिक्री, हस्तांतरण, सहयोग के तौर पर देने आदि के नीति निर्धारण में भूमिका अदा कर पाएगा। एनएसजी का फैसला भी तुरंत होने वाला है। भारत का दावा एमटीसीआर की तरह ही इसलिए मजबूत है कि भारत ने कभी हथियारों के प्रसार में भूमिका नहीं निभाई और इसका रिकॉर्ड दुनिया के सामने है, किंतु हम यहां इनमें विस्तार से नहीं जाएंगे और एमटीसीआर पर ही केंद्रित रहेंगे।

हम यह देखें कि एमटीसीआर में शामिल होने का भारत के लिए क्या महत्व है। मूल महत्व तो यही है कि हमारे लिए मिसाइल रंगभेद के दौर का अंत हो गया। हम दुनिया के उन विशिष्ट 35 देशों में शामिल हो गए। इसके बाद 300 कि.मी. और 500 ग्राम की सीमा का घ्यान रखते हुए भारत दूसरे देशों को मिसाइल तकनीक दे सकेगा। भारत-रूस के साथ संयुक्त उद्यम में ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है। अब यह उन दूसरे देशों को बेच सकता है जिनका रिकॉर्ड अच्छा हो, जिनके द्वारा इसके दुरुपयोग करने की क्षमता नहीं है। इस प्रकार भारत एक अस्त्र निर्यातक देश हो सकता है। भारत को भी बेहतरीन तकनीक प्राप्त करने का द्वार खुल गया है। अब भारत को मिसाइल संबंधी उच्च तकनीकों की प्राप्ति के रास्ते कोई बाधा नहीं रही। अब भारत-अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोंस खरीद सकेगा। प्रिडेटर ड्रोंस मिसाइल तकनीक ने ही अफगानिस्तान में तालिबान के ठिकानों को तबाह किया था। जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए प्रीडेटर ड्रोंस अनमैन्ड एरियल व्हीकल  है। इन्हें जनरल एटॉमिक्स एमक्यू-1 प्रीडेटर भी कहा जाता है। भारत लंबे समय से इसके पाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन एमटीसीआर में नहीं होने के कारण अमेरिका के लिए इसे बेचना संभव नहीं था।

जैसा हम जानते हैं। यह एक परीक्षित अस्त्र है। सबसे पहले इसका उपयोग अमेरिका वायुसेना और सीआईए ने किया था।  नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन) की फौजों ने बोस्निया, सर्बिया, इराक, यमन, लीबिया में भी इनका प्रयोग किया था। प्रीडेटर के अद्यतन प्रारूप में हेलफायर मिसाइल के साथ कई अन्य हथियार भी लोड होते हैं।  प्रीडेटर में कैमरा और सेंसर्स भी लगे होते हैं जो इलाके की पूरी मैंपिंग में खासे मददगार होते हैं।

पाकिस्तान और चीन-भारत के एमटीसीआर में जाने से परेशान हैं तो यह अकारण नहीं है। पाकिस्तान को भय है कि भारत आतंकवादियों का ड्रोन से पीछा कर हमला कर सकता है। आतंकवादियों से संघर्ष में यह ज्यादा कामयाब होगा। अपने क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, समय आने पर आतंकवादियों के लिए सीमा पार भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।

आतंकवाद के खतरनाक विस्तार तथा दुनिया के अनेक क्षेत्रों में बढ़ते तनाव और अशांति के कारण अनेक देशों के अंदर मिसाइल पाने का विचार घर कर रहा है। संभव है उत्तर कोरिया की उद्दंडता ने उन्हें यह अहसास कराया हो कि अगर वह कर सकता है तो हम क्यों नहीं। इस विचार को रोकना होगा। भारत को इसमें अन्य देशों के साथ भूमिका निभानी होगी। साथ ही कुछ देशों को प्रक्षेपास्त्र और अंतरिक्ष यान विकसित करने की क्षमता को मान्यता भी देनी होगी। तो भारत को दोनों स्तरों पर भूमिका निभानी है।

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