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परमाणु क्षेत्र में बढ़ रहा भारत का रुतबा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 9 2016 10:36AM | Updated Date: Jun 9 2016 10:36AM
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-पार्थ उपाध्याय
विश्लेषक


परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने के भारत के प्रयास में कई उम्मीदें नजर आ रही हैं। असल में भारत का परमाणु कार्यक्रम रक्षात्मक संरचना से कहीं ज्यादा देश की आर्थिक तरक्की से जुड़ा हुआ मामला है। भारत यदि परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों की फेहरिस्त में शामिल होता है तो हम आसानी से यूरेनियम जैसे पदार्थों को प्राप्त कर अपनी ऊर्जा क्षमता को बढ़ा सकेंगे। 48 देशों वाले एनएसजी में वे सभी देश शामिल हैं, जो परमाणु हथियार बनाने वाले सह उत्पाद यूरेनियम और थोरियम का उत्पादन या व्यापार करते हैं। इन देशों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक परमाणु अप्रसार संधि पर भी हस्ताक्षर किया है, जिससे यह परमाणु हथियार निशस्त्रीकरण  को बढ़ावा देने के साथ इनके परमाणु प्रतिष्ठान एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी संगठन परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में आते हैं। एनएसजी का सदस्य होने का किसी देश को एक सबसे बड़ा फायदा आर्थिक तरक्की की रीढ़ ऊर्जा जरूरतों की भरपाई के रूप में होता है। एनएसजी का सदस्य होने पर आधुनिक परमाणु तकनीकी और ईधन आसानी से उपलब्ध हो जाता है  और भारत जिसका बेसब्री से इंतजार कर रहा है।

हमारे देश में औद्योगिक रुग्णता का एक कारण पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा आपूर्ति में कमी को भी माना जाता है। भारत अपनी कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 55 प्रतिशत भाग कोयले से उत्पादित करता है जो कि पर्यावरणीय प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। भारत ने 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मलेन में अपनी प्रतिबद्धता प्रस्तुत की है कि वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कटौती करेगा। अब ऐसे में यदि भारत पर्यावरण संरक्षण और विकास दोनों मोर्चे पर आगे बढ़ना चाहता है तो उसे ऊर्जा उत्पादन की आधुनिक और कम प्रदूषण वाली तकनीकी को हासिल करना होगा। इसी लिहाज से एनएसजी की सदस्यता को और अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दरअसल एनएसजी अब भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा का भी प्रश्न बनता जा रहा है। भारत में मोदी सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मोदी विदेशी मोर्चे पर भारत की एक मजबूत साख स्थापित करने के पक्ष में रहते हैं, ऐसे में यदि भारत एनएसजी का सदस्य बनता है तो यह प्रधानमंत्री मोदी और भारत दोनों की ही खनक बढ़ाएगा।

एनएसजी सदस्यता की आसान होती राह में अभी कुछ रोड़े बाकी हैं। एनएसजी के सभी सदस्य देशों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। यह संधि परमाणु निशस्त्रीकरण की ओर बढ़ने का प्रयास करती है, लेकिन भारत इस संधि का हिस्सा नहीं है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व राजदूत वेंकटेश वर्मा ने एक मीटिंग के दौरान कहा था कि भारत सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण, एवं प्रामाणीकृत परमाणु निरस्त्रीकरण की अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है, लेकिन परमाणु संपन्न देश होने के नाते भारत के अप्रसार संधि में शामिल होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि इसके लिए भारत को अपने परमाणु हथियारों को एकतरफा त्यागने की जरूरत होगी। भारत का यह रुख आगे भी रहेगा, ऐसे में यद्यपि स्विट्जरलैंड और अमेरिका भारत की सदस्यता का समर्थन कर भी देते हैं तो चीन भारत को विशेष छूट देकर एनएसजी में आने का समर्थन क्यों देगा? दरअसल जहां तक चीन के विरोध का सवाल है तो चीन सैद्धांतिक रूप से भारत को एनएसजी का सदस्य बनाए जाने का विरोध नहीं करता। उसका कहना है कि किसी भी नए सदस्य को एनएसजी में शामिल करने के लिए एक सर्वमान्य नियम बने। हमें एक बात यह भी याद रखना चाहिए कि एनएसजी की सदस्यता हेतु पाकिस्तान ने भी आवेदन किया है और चीन ये कह रहा है कि पाकिस्तान को भी एनएसजी का मेंबर बनाया जाना चाहिए। यहां एक पेंच भारत-अमेरिका, पाकिस्तान, चीन के बीच फंस सकता है क्योंकि चीन पाकिस्तान हितैषी है।

एनएसजी के उदय का इतिहास देखें तो इसका जन्म ही 1975 में भारत द्वारा प्रारंभ 1974 के परमाणु कार्यक्रम के विरोध और जवाब में हुआ था, लेकिन आज अमेरिका ही एनएसजी में भारत को अपवादिक रूप से सदस्यता देने की पैरोकारी कर रहा है। इसका एक बड़ा कारण भारत की शांतिपूर्ण परमाणु नीति और बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड है।

भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका सहित पांच देशों की यात्रा सफल मानी जा रही है, लेकिन हमें यह बात बिल्कुल ईमानदारी के साथ स्वीकार करनी चाहिए कि भारत एक कुशल नेतृत्व के साथ अपने ट्रैक रिकॉर्ड का भी फायदा मिल रहा है जिसमें पूर्ववर्ती नेतृत्व के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। एनएसजी में भारत के प्रवेश को परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का एक सफल अग्रिम चरण माना जा सकता है, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमें एक मजबूत वैश्विक शक्ति का कतार में खड़ा करेगा।  लेकिन यहां परमाणु क्षेत्र में भारत की बढ़ती खनक हमें आर्थिक मोर्चे पर अधिक लाभ दिलाएगी जो कि मोदी सरकार का एक प्रमुख लक्ष्य भी रहता है। चुनौती और संभावना के बीच उम्मीद है कि आने वाला समय भारत के लिए बेहतर रहेगा।
 

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