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बदलते दौर में डाकघर का बैंक हो जाना...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 8 2016 10:26AM | Updated Date: Jun 8 2016 10:26AM
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-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


भारत में डाकघरों का इतिहास बहुत पुराना है। अंग्रेजों के शासनकाल में सन् 1766 में लार्ड-1 लाइव द्वारा प्रथम डाक व्यवस्था देश में स्थापित की गई थी। 1774 में वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में प्रथम डाकघर स्थापित किया था। इसके बाद मद्रास और बंबई में डाकघर बने, हालांकि अंतराल बहुत लंबा रहा। 1863 में जाकर रेल डाक सेवा शुरू की गई। मनीआर्डर सेवा तो 1880 में शुरू हुई। आजादी के बाद तो डाकघरों का जाल बिछाया गया। डाकिए हर किसी के लिए महत्वपूर्ण हो गए। परिवार और अन्य परिजनों की कुशलक्षेम का पता डाक से लगता था।
                       

‘डाकिया डाक लाया, डाकिया डाक लाया
खुशी का पैगाम, कभी खबर दर्दनाक लाया।’

समय के साथ-साथ डाक सेवाएं जनता के लिए काफी लाभदायक रहीं। कई योजनाएं शुरू हुईं। भारतीय डाक प्रणाली दुनिया की विश्वसनीय और बेहतर डाक प्रणाली में अव्वल स्थान पर रही। कोई वक्त था जब हर साल डाकघर देशभर में 900 करोड़ चिट्ठियां दरवाजे-दरवाजे तक पहुंचाते थे। 1854 में डाक तार विभाग अस्तित्व में आया। दोनों विभाग जनकल्याण को ध्यान में रखकर चलाए गए। तब लाभ कमाना उद्देश्य नहीं था। 1914 के प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में दोनों विभागों को मिला दिया गया। भारत संयुक्त परिवारों और छोटी आमदनी वाले लोगों का देश रहा, जहां लोगों को छोटी रकमों की सूरत में लाखों रुपए भेजने पड़ते थे। इस काम में डाकघर काफी मददगार साबित हुए। डाकघर बचत खाता, पांच वर्षीय डाकघर आवर्ती जमा खाता, डाकघर मासिक आय योजना, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र जैसी विभिन्न योजनाएं शुरू की गईं।

भारत में दूरसंचार क्रांति और बैंकिंग क्षेत्र के विकास के चलते डाकघर पुराने पड़ने लगे। डाक वितरण के समानांतर कूरियर सेवाएं शुरू हुईं। कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन ने पूरा माहौल ही बदल डाला। डाकघरों का महत्व कम होने लगा। तार सेवाएं बंद कर दी गईं, क्योंकि हर हाथ में मोबाइल फोन आने के बाद इस सेवा की जरूरत ही नहीं रह गई थी। डाकघरों की इमारतें भी जर्जर होती गईं, किसी ने डाकघरों की ओर अधिक ध्यान ही नहीं दिया। बदलते दौर के साथ कदमताल करते हुए यह जरूरी था कि डाक विभाग को भी हाईटेक बनाया जाए। महानगरों और शहरों में डाकघरों को कम्प्यूटरीकृत किया गया, लेकिन ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में सेवा में कोई सुधार नहीं हुआ।

नरेंद्र मोदी सरकार ने अब भारतीय डाक सेवाओं के विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए तथा लोगों को इससे जोड़ने के लिए बहुत ही अच्छा फैसला किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डाकघरों को बैंकों की तरह चलाने का फैसला किया है। सरकार ने डाक भुगतान बैंक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। भारत में 1.54 लाख डाकघर हैं। देश में डाक भुगतान बैंक की 650 शाखाओं को स्थापित किया जाएगा, जिन्हें ग्रामीण डाकघरों से जोड़ा जाएगा। इन बैंकों को पेशेवर तरीके से चलाया जाएगा। इसमें विभिन्न सरकारी विभागों का भी प्रतिनिधित्व होगा, जिसमें डाक विभाग, व्यय विभाग, आर्थिक सेवा विभाग आदि शामिल होंगे।

केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो शहरी डाकघरों में डाकियों को आईपैड और स्मार्टफोन देने की योजना पर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है। डाकघरों का कोर बैंकिंग नेटवर्क तो भारतीय स्टेट बैंक से भी बड़ा है। सरकार ने इनका सदुपयोग करने और स्वरूप बदलने का फैसला किया है तो यह एक अच्छी पहल है। डाकियों के दिन फिरेंगे। अब आपको पैसा निकालने के लिए एटीएम नहीं जाना होगा। साथ ही बैंक में पैसा जमा कराने के लिए ब्रांच के चक्कर भी नहीं काटने पड़ेंगे। जल्द ही लोगों को घर पर ही पैसा निकालने और जमा करने की सुविधा मिल सकती है। इसके लिए माइक्रो एटीएम आपके घर आएगा। इसके लिए अकाउंट किसी भी बैंक में हो सकता है। डाक विभाग इस सेवा की भी शुरुआत करेगा। डाकघरों के बैंकों में तब्दील हो जाने पर भुगतान सेवाएं देने के साथ-साथ एक ग्राहक से अधिकतम एक लाख रुपए तक की जमा राशि भी प्राप्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं ये इंटरनेट बैंकिंग, धन हस्तांतरण सुविधा, बीमा और म्युच्अल फंड की बिक्री भी कर सकेंगे। पहले डाकघरों को पेमेंट बैंकों में तब्दील करने के लिए तीन वर्ष का समय रखा गया था, लेकिन प्रधानमंत्री ने इसे एक वर्ष में करने का फैसला किया। ये बैंक अब मार्च 2017 तक आॅपरेशनल हो जाएंगे। मोदी सरकार का यह कदम ऐसा है जो जनता को व्यापक सुविधाएं प्रदान करेगा और समय की बचत भी होगी। वास्तव में देश बदल रहा है। बदलेगा देश तो सोच भी बदलेगी।
 

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