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Gagar Men Sagar

कहां हैं अखलाक की मौत पर बवाल करने वाले

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 7 2016 11:04AM | Updated Date: Jun 7 2016 11:04AM
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- आर.के. सिन्हा
 -लेखक राज्यसभा सदस्य हैं


पिछले साल 30 सितंबर को राजधानी से सटे नोएडा के बिसहाड़ा गांव में एक शख्स को अपने घर में गो-मांस रखने के आरोप में उग्र भीड़ ने मार डाला था। जाहिर है घर के फ्रिज में गो मांस उसने ऐसे ही तो रखा नहीं होगा, खाने के लिए ही रखा होगा। घटना के बाद तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता मृतक मोहम्मद अखलाक के घर पहुंचने लगे। वे उसके घर में जाकर संवेदना कम और सियासत ज्यादा करते नजर आ रहे थे।
अब उत्तरप्रदेश सरकार के मथुरा स्थित लैब के फोंरेसिक रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि भीड़ के शिकार हुए मोहम्मद अखलाक के घर से मिला मांस गोमांस ही था। फोरेंसिक रिपोर्ट के नतीजे आने के बाद अब उन सियासी रहनुमाओं से दो सवाल पूछने करने का मन कर रहा है, पहला क्या वह अखलाक की हत्या के बाद उसके घरवालों से संवेदना जाहिर करने के लिए बिसहाड़ा गांव पहुंचे थे। पहला, क्या वे अखलाक की मौत पर अफसोस जता रहे थे? अगर वे अफसोस जता रहे थे तो ठीक है। पर क्या वे इस क्रम में अखलाक के घर में रखे हुए गोमांस को सही ठहरा रहे थे? उत्तरप्रदेश में गो-मांस की बिक्री से लेकर इसके सेवन पर कानूनी रोक है। इसलिए ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अखलाक को अपने घर में गोमांस रखना चाहिए था या उसका सेवन करना चाहिए था?

अखलाक के घर तमाम नेताओं के साथ ही कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और असदउद्दीन ओवैसी से लेकर माकपा की वृंदा करात तक ने हाजिरी दी। यानी अखलाक की जघन्य हत्या के बाद उसके घर नेताओं का तांता लगा ही रहा। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्यमंत्री महेश शर्मा ने खुद अखलाक के घर जाकर कहा, यह हमारी संस्कृति पर धब्बा है और सभ्य समाज में इस तरह की घटनाओं का कोई स्थान नहीं है। अगर कोई कहता है कि यह पूर्व नियोजित था तो मैं इससे सहमत नहीं हूं। इसके बावजूद विपक्ष के नेताओं को तो मानो सरकार को घेरने का मौका मिल गया हो। कानून-व्यवस्था राज्य का दायित्व है। अखलाक के हिंदू मित्र ने जब पुलिस को फोन कियातब पुलिस तो आई नहीं जब उसकी मौत की सूचना दी गई तो तब पुलिस आई, यानी उस घटना को रोक पाने में उत्तर प्रदेश का पुलिस महकमा पूरी तरह फेल हुआ, लेकिन,धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने सारा दोष केंद्र सरकार पर डाल दिया और पूरे देश में असहिष्णुता का माहौल है, इसका नारा बुलंद कर दिया, जिसे वामपंथी मीडिया ने पुरजोर हवा देकर देशभर में फैलाने का काम कर दिया। अपने जहरीले बयानों के लिए बदनाम हो चुके ओवैसी ने अखलाक के कत्ल को पूर्व नियोजित हत्या बताया। ओवैसी ने तो यहां तक कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने गायिका आशा भोंसले के बेटे की मौत पर शोक जताया पर उन्हें अखलाक की मौत पर संवेदना व्यक्त करना सही नहीं लगा।  अब जरा देख लीजिए की ओवैसी किस तरह से लाशों पर सियासत करते हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी पीछे रहने वाले नहीं थे। उन्होंने गोवध और गोमांस खाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, मोदी इसी तरह के मुद्दों को उठाना चाहते हैं। सपा नेता और मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने अखलाक की हत्या के लिए महेश शर्मा का इस्तीफा तक मांग लिया। अब उन्हें कौन समझाए कि स्थानीय सांसद के हाथ में  कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी होती नहीं। तो फिर शिवपाल यादव क्यों महेश शर्मा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग कर रहे थे? यानी कुछ कथित नेता अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को फांसी पर लटकाने की भी मांग कर सकते हैं। अखलाक के मारे जाने से तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुल्तान अहमद को तो बैठे-बिठाए प्रधानमंत्री मोदी पर वार करने का मौका मिल गया। उन्होंने मोदी को कोसते हुए कहा कि वे देश में सांप्रदायिक घटनाओं पर बयान दें और संघ व इस तरह के संगठनों को सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने से रोकें। फिर वही सवाल की कि बिसाहाड़ा गांव उत्तरप्रदेश में है और वहां की कानून-व्यवस्था का मोदी की केंद्र सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। इसके बावजूद बयानवीर तृणमूल नेता मोदी को कोसने से बाज नहीं आए।

भले ही देश की जनता ने भाकपा को नकार दिया हो पर इसके महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने बयानवीर धर्म का निर्वाह किया। वे भी अखलाक की हत्या के लिए मोदी पर गरजते-बरसते रहे। रेड्डी साहब की तब जुबान सिल जाती है जब केरल और पश्चिम बंगाल में संघ के कार्यकर्ताओं को सरेराह उनकी पार्टी के लोग मार देते हैं। आठ-दस साल के बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता और उसके भी हाथ-पांव तोड़ दिए जाते हैं।  एक बात और... अखलाक के गांव में सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले नेता उस हिंदू परिवार से नहीं मिले जिसने अखलाक के परिवार को पनाह दी थी। बिसाड़ा में जब उग्र भीड़ अखलाक के घर को घेरे हुए थी तब पड़ोस में रहने वाले राणा परिवार ने अखलाक के परिवार की तीन महिलाओं, एक पुरुष और एक छोटे बच्चे को अपने घर में शरण देकर जान बचाई थी। यही नहीं, अखलाक के पड़ोस की शशि देवी और विष्णु राणा ने में रातभर पहरा दिया और भीड़ से अखलाक के परिवार की हिफाजत की।

क्या राहुल गांधी से लेकर केजरीवाल को इस हिंदू परिवार से नहीं मिलना चाहिए था? ये उस हिंदू परिवार से नहीं मिलेंगे, क्योंकि ये तुष्टिकरण की सियासत जो करते हैं। ये तमाम नेता अखलाक से नहीं बल्कि मुसलमानों को अपनी तरफ लुभाने के लिए बिसाड़ा पहुंचे थे। इनके असली चेहरे से अब देश वाकिफ हो चुका है। यदि अखिलेश में हिम्मत है तो वे बिसहाड़ा में गो कशी करने वाले गोमांस रखने वाले और गोमांस कर सेवन करने वाले लोगों की पहचान कर उन पर अपने ही राज्य में लागू कानून के तहत गिरफ्तार करें। जिन हिंदू निर्दोष नवयुवकों को बिना सबूत जेल में बंद कर रखा है उन्हें तत्काल रिहा करें, नहीं तो आने वाले चुनाव में जनता उन्हें इस सांप्रदायिकता और धर्म के आधार पर भेदभाव करने की सजा जरूर देगी।
 

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