-वीना नागपाल
कुछ समय पहले तक ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि कोई महिला व पुरुष विवाह किए बगैर एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं। कुछ देर के लिए ठहरकर सोचें कि क्या इस तरह के संबंधों का कोई अस्तित्व भी था? क्या इन्हें समाज स्वीकार करता था? समाज की बात छोड़ भी दें तो क्या इन संबंधों को कोई खुलेआम व्यक्तिगत स्तर पर भी स्वीकारता था?
इस तरह के संबंधों का अस्तित्व ही नहीं था और यह तथ्य विश्व के सभी समाजों में मौजूद था। आज क्या हो रहा है? भारतीय समाज में ही लगभग रोज ऐसा जानने और समाचार के रूप में पढ़ने को मिल रहा है कि किसी महिला ने थाने में शिकायत की अथवा न्यायालय की शरण ली कि वह किसी के साथ इस अवधि तक रह रही थी पर, अब उसके पुरुष साथी (पति तो नहीं कहेंगे न) ने उसका साथ छोड़ दिया है और इस प्रकार उसका शोषण हुआ है और वह पीड़ित हुई है। कई समाचारों में तो यह बतलाया जाता है कि उस महिला ने यह भी कहा कि उसे विवाह करने का निरंतर आश्वासन दिया गया, इसलिए वह साथ रही पर, उससे विवाह नहीं किया गया और इस आधार पर न केवल उसका शारीरिक शोषण हुआ बल्कि ऐसे संबंध को उसके साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार की श्रेणी में रखा जाए और यह माना जाए कि उसके साथ धोखा हुआ है, उसके साथ विश्वासघात हुआ है। कई बार ऐसे संबंधों से बच्चे भी हो जाते हैं और तब उस महिला की स्थिति और भी विकट हो जाती है। आजकल इस तरह विवाह किए बिना साथ-साथ रहने वाले संबंधों को बहुत खूबसूरत नाम दिया गया है- लिव-इन-रिलेशनशिप परंतु यह नाम चाहे इन संंबंधों के लिए सही भी लगता है और खूबसूरत भी पर, यह किसी महिला के लिए बदसूरत ही लगता है। इस प्रकार के संबंधों में महिलाओं का शोषण सबसे अधिक होता है। क्या हम आदिम युग में लौट रहे हैं, जब किसी पुरुष व महिला का संबंधबनाने में कोई उत्तरदायित्व का बोध नहीं था। पर, यदि यह बोध नहीं था तो महिलाओं के लिए ऐसा ही होता होगा। तब यह व्यवस्था कायम क्यों नहीं रही? क्यों मानव सभ्यता के विकास के चरण में विवाह संस्था अस्तित्व में आई? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर समाजशास्त्री बहुत विस्तार से देते हैं पर, सरल भाषा में और सीधे-सीधे कहें तो विवाह संस्था मनुष्य के स्वभाव के अनुकूल है और उससे मेल खाती है। मनुष्य की प्रकृति व स्वभाव एक-दूसरे से जुड़ने और स्थायी संंबंध बनाने के लिए बना है।
अन्य प्राणियों में यह भावना तथा इससे अपनी संवेदनाओं का भाव मौजूद नहीं है। मनुष्य स्वभाव न केवल भावनाओं से ओत-प्रोत है, बल्कि वह इसमें स्थायित्व भी चाहता है। विवाह संबंध एक महिला व पुरुष के बीच बनी संवेदनाओं और भावनाओं का केंद्रीयकरण है, जिसमें इस संबंध से उपजी संतान भी शामिल है। जिस विकास और प्रगति के सोपान में वैवाहिक संस्था अस्तित्व में आई आज उस पर आघात किया जा रहा है। उसका विध्वंस हो रहा है और उसमें सबसे अधिक दु:ख और पीड़ा महिलाओं के ही हिस्से में ही आ रही है। यदि महिलाएं इस शोषण से बचना चाहती हैं तो वह पुरुष की बदनीयत से उपजे इस नकारात्मक विचार से बचें। यह पुरुष का महिलाओं का शोषण करने का नया हथियार है। लिव-इन-रिलेशनशिप कुछ नहीं होता। वैवाहिक संस्था का अस्तित्व में रहना महिलाओं के लिए हितकारी है।
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