- ओमप्रकाश मेहता
- विश्लेषक
नरेंद्र मोदी की सरकार का सात सौ तीस दिन (दो साल) का हनीमून पीरियड खत्म हो गया है, अब उनकी उस अग्नि परीक्षा की शुरुआत होगी, जिसके तहत उन्हें उन सपनों को साकार कर धरती पर उतारना होगा, जो उन्होंने दो साल पहले चुनावी दौर में देश के आम वोटर को दिखाए थे। अमूमन यह माना जाता है कि नई सरकार के नए प्रधानमंत्री को देश और सरकार को समझने तथा माहौल को अपने सांचे में ढालने के लिए दो साल का समय दिया जाता है, जिसे सरकार व नए प्रधानमंत्री के लिए हनीमून पीरियड कहा जाता है और अब मोदी का यह पीरियड खत्म होने जा रहा है। यद्यपि इन दो सालों में मोदी ने जनता को दिखाए रंगीन सपनों के बारे में चिंतन चाहे न किया हो? किंतु उन्होंने भारत सहित पूरे विश्व के देशों में यह अवश्य महसूस करवाया कि अब भारत में बदलाव आया है और इसने अपने विकास के मार्ग प्रशस्त कर लिए हैं?
सपनों के सौदागर नरेंद्र दामोदर दास मोदी एक ऐसे सौदागर हैं, जो वे रंगीन सपने सिर्फ लोगों को बेचते ही नहीं है, बल्कि स्वयं भी देखते हैं। पिछले दो सालों में मोदी ने सिर्फ अपने सपनों को साकार करने की चिंता ही की जिसके तहत उन्होंने अपनी विश्वविजयी एक सौ सत्रह करोड़ी विदेश यात्राओं के दौरान भारत के विकास से संबंधित विभिन्न देशों से समझौते किए। अब उन समझौतों को कार्यरूप में परिणित कितने अंशों में किया जाता है, यह तो बाद की बात है, किंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी ने अपने सपनों को साकार करने के माध्यम से भारत में विदेशी विकास का बीज बोने का अवश्य प्रयास किया। साथ ही पड़ोसी देशों से भी संबंध माधुर्यपूर्ण बनाने के प्रयास भी किए।
मोदी की इस दृष्टि से भी तारीफ की जाएगी कि उन्होंने भारत के लिए कुछ नई विकासशील योजनाएं लागू करने का दु:साहस किया, जिनमें स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया और मुद्रा जैसी योजनाएं शामिल हैं, जिनके प्रचार-प्रसार पर ही करीब छह सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए और इसमें सबसे अधिक पांच सौ पांच करोड़ स्वच्छ भारत अभियान पर खर्च किया गया। इसके साथ ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, स्किल इंडिया, मैक इन इंडिया, इंद्रधनुष, मुद्रा, पीएम फसल बीमा योजना आदि के प्रचार-प्रसार पर भी साढ़े तीन सौ करोड़ से अधिक खर्च किया गया, किंतु एक हजार करोड़ से अधिक पैसा इन योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर खर्च करने के बावजूद ये योजनाएं मैदान में तो कहीं नजर नहीं आती? यदि इस गंभीर विषय पर गंभीरता से चिंतन किया जाए कि एक हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी मोदी की ये महत्वकांक्षी योजनाएं मैदान में नजर क्यों नहीं आती? पिछले दो सालों में जनता इनसे लाभान्वित क्यों नहीं हुई? तो इसका एक मात्र कारण अफसर और नौकरशाही है, जिनके कंधों पर इन योजनाओं को मूर्तरूप देकर जन-जन तक पहुंचाने का भार था। भारत की नौकरशाही एक ऐसी कौम है, जो आज तक किसी की भी सगी नहीं हो पाई, किसी भी सरकार की सफलता या असफलता का सूत्र इसी नाफरमान नौकरशाही के हाथों में होता है। सरकारी पैसे के दुरुपयोग या भ्रष्टाचार के लिए वास्तव में सत्ताधारी नेता उतने दोषी नहीं होते, जितने कि सरकार को सही अर्थों में चलाने वाले ये अफसर? जरूरी नहीं कि जिन अफसरों की दाढ़ में भ्रष्टाचार का खून लग चुका हो, वे अफसर किसी ईमानदार प्रधानमंत्री की सरकार को सफलता के मार्ग पर चलने दें? आज मोदी सरकार ने पूर्व सरकारों के दौरान जमकर भ्रष्टाचार किया और करवाया, उन्हें मोदी जैसा ईमानदार, समर्पित और मेहनती प्रधानमंत्री अच्छा नहीं लग रहा हो और उन्होंने अपने पूर्व आकाओं से कोई गुप्त समझौता कर लिया हो? अब मोदी की प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि वे ऐसे अफसरों को चुन-चुन कर बाहर करें और फिर देश की जनता को दिखाए सपनों को साकार स्वरूप देने का अभियान शुरू करें। सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो मोदी के साथ यह भी है कि उनके दुश्मन सिर्फ मंत्रालय या संसद की प्रतिपक्षी दीर्घा में ही नहीं है, बल्कि उनके अगल-बगल में भी हैं, क्योंकि उन्हीं की पार्टी के कई नेताओं, सांसदों व पार्टी पदाधिकारियों को मोदी की सफलता गले नहीं उतर पा रही है। ये कभी हिंदुत्व का मुद्दा उठा लेते हैं तो कभी दलित या मुसलमानों का और तो और महामहिम राष्ट्रपति तक ऐसे सत्तारूढ़ तत्वों के शिकार होकर बदनामी झेल चुके हैं। कुछ इसी तरह के पिछले दो दर्जन महीनों में तीन दर्जन से अधिक विवाद पैदा किए गए, जिनमें से कुछ स्वयं मोदी के नाम भी हैं।
खैर इसे छोड़िए, अमूमन हर सरकार के साथ ऐसा होता आया है, किंतु आज देश की सबसे बड़ी चिंता महंगाई, सूखा, आतंकवाद और राष्ट्र की असुरक्षित सीमाएं हैं। जहां तक महंगाई का सवाल है आज आम गरीब दाल-रोटी खाकर प्रभु के गुन गाने लायक नहीं रहा है, क्योंकि उसकी थाली के दाल की कटौरी खाली है। यह तो हुई गरीब अर्थात निम्न वर्ग की बात, अब यदि हम मध्यम वर्ग की बात करें तो उसके लिए अपना स्टेटस बनाए रखना काफी मंहगा पड़ने लगा है। अर्थात निम्न और मध्यम दोनों ही वर्गों के देशवासी काफी दु:खी और चिंतामग्न हैं, किंतु यदि हम उच्च वर्ग की बात करें तो वह सर्वोच्च की श्रेणी प्राप्त करने जा रहा है, अर्थात इस धनी वर्ग ने काला बाजारी, भ्रष्टाचार और चमचागिरी करके और अधिक ऊंचाई प्राप्त की है।
आज इन सब तथ्यों का बखान करने का मतलब यही है कि मोदी अब विदेश और विदेशियों की चिंता छोड़ हमारे अपने देशी लोगों की चिंता समझने और उसे दूर करने का प्रयास करें, और प्रयास ही नहीं वे देशवासियों की जीवन-मरण की चिंताओं को खत्म करने का कार्य अपनी प्राथमिक सूची में डालें। तभी मोदी के आगामी तीन साल देश के लिए सार्थक सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही देश की सीमाओं की रक्षा, पड़ोसियों की गुस्ताखियों का मुंहतोड़ जवाब और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की चुनौतियों से सक्षम मुकाबले के भी शार्टकॅट रास्ते खोजे जाना चाहिए। देश की जनता पूर्ववर्ती एक दशक पुरानी सरकार के कर्मों से तंग आ चुकी थी? इसलिए अब अगले एक हजार दिनों (तीन साल) में मोदी को जनता की कसौटी पर सौ टंच खरा उतरने का भरसक प्रयास करना होगा, और वहीं प्रयास स्वयं मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के भविष्य के लिए स्वर्णिम भी हो सकेगा।