-वीना नागपाल
किसानों द्वारा आत्महत्या करने के समाचार आए दिन छपते रहते हैं। बहुत दुख होता है जिस देश की पहचान ही कृषि प्रधान देश के रूप में होती थी आज उस देश का किसान अभावों से जूझता हुआ और अंत में पराजित होकर, असीम हताश में घिरकर आत्महत्या कर रहा है। इतनी दयनीय स्थिति तो कभी भी नहीं थी।
किसान परिवार निराशा में डूबे हुए हैं। न अपने खेतों को बचा पा रहे हैं और न ही अपने पशुओं को इस त्रासदी से मुक्त कर पा रहे हैं। इसलिए वह जीने की आशा को छोड़ कर मौत को गले लगा रहे हैं। इससे बड़ी दुर्भाग्य किसी देश के उस समाज का क्या होगा जहां दूसरों को जीवन देने वाला अन्नदाता (यही तो भारतीय कृषक की पहचान थी) आज अपने जीवन को बचा नहीं पा रहा है। उसके साथ तो और भी बड़ी त्रासदी हो रही है। वह तो आत्महत्या कर लेता है पर, उसकी संतान पूरी तरह निराश्रित हो जाती है। ऐसे कृषक परिवारों के बच्चे स्वयं को बहुत निसहाय पाते हैं। कई घटनाओं में तो माता-पिता दोनों ही आत्महत्या कर लेते हैं पर, निराश्रित बच्चों की समझ में नहीं आता कि वह क्या करें।
जब महाराष्ट्र के भीषण सूखा ग्रस्त इलाकों के ग्रामीण परिवारों का सर्वेक्षण किया गया तो पता चला कि वहां उन परिवारों के बच्चों की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है जिनके पिता अथवा माता-पिता दोनों ने आत्महत्या कर ली है। पर, कहते हैं न कहीं न कहीं कोई अदृश्य शक्ति मौजूद रहती है जो किसी के हृदय में अच्छाई की भावनाएं उत्पन्न कर शुभकार्य करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसी ही एक अच्छाई की भावना एक नेक दिल इंसान के दिल में जागी। उसने इस भावना को अपने सहयोगियों में भी जगाया जिसके फलस्वरूप महाराष्ट्र के नासिक में ऐसे किसान परिवारों के बच्चों के लिए एक आश्रय स्थल अस्तित्व में आया। इसके संचालक गांव-गांव घूम कर किसान परिवारों के बच्चों को यहां लाते हैं। इन बच्चों को आश्रय भी मिलता है और उनके भोजन व कपड़े की चिंता संस्था करती है। इतना ही नहीं उन्हें स्कूलों में भी प्रवेश दिलाया जाता है, जिससे बच्चे भविष्य में भी अपने पैरों पर खड़े हो सकें। दो वर्ष से यह आश्रम चल रहा है। जिसको जानकारी मिलती है वह इस आश्रम की सहायता करता है। शासन भी ऐसे बच्चों की फीस आधी कर देता है। आश्रम के कुछ बच्चे हाई स्कूल पास कर चुके हैं। उनसे भविष्य के बारे में पूछा गया तो किसी ने कहा-वह डॉक्टर बनना चाहता है तो किसी ने कहा कि वह टीचर बनना चाहता है। जिनको थोड़ी बहुत और जानकारी थी तो उसने इंजीनियर बनने की बात भी कही, लेकिन दुख की बात यह है कि किसी ने भी किसान बनने और भूमि की देखभाल कर अन्नदाता बनने का नाम तक नहीं लिया। क्या वह बच्चे किसानी करने से इतने डरे हुए थे कि उन्हें पढ़-लिख कर अच्छा किसान बनने का ख्याल तक नहीं आया? यह बहुत खतरनाक है। यदि अन्नदाता ही नहीं बचेगा तो जीवन की रक्षा कैसे होगी?
इस प्रकार के आश्रय स्थल और अधिक संख्या में खुलने चाहिए। इन बच्चों के भविष्य की रक्षा करना समाज व शासन दोनों का दायित्व है। आखिर किसानों का हम सब पर बहुत अधिक कर्ज है। इसे अब उनकी मुसीबत में चुकाने का समय आ गया है। हर संभव प्रयास हो कि किसानों के साथ-साथ उनकी खेती की रक्षा भी की जाएगी। कृषि से ही शुरू हुई मानव सभ्यता जब तक तक कृषि की और नहीं लौटेगी उसका अस्तित्व खतरे में रहेगा। कृषक और उसके परिवार की देखभाल कर उसका व्यवसाय बनाए रखें।