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आम आदमी के लिए इंसाफ बहुत दूर है

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 19 2016 11:14AM | Updated Date: May 19 2016 11:14AM
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- अश्विनी कुमार 
लेखक पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक हैं


आम नागरिक आखिर न्याय के  लिए किस-किस की चौखट पर जाकर गुहार लगाए? किस-किस से गुहार करे? किस-किस के यहां जाकर आंसू बहाए? देश में जिस ढंग से लगातार हत्याएं हो रही हैं और पुलिस बेबस दिखाई देती है, ऐसी स्थिति में आम नागरिक खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा है। सभ्य समाज में हत्याओं में बढ़ोतरी असहनीय है। हत्याएं बिहार में हों या उत्तर प्रदेश में या फिर हरियाणा में, मामले की जांच में तेजी या हत्यारों की गिरफ्तारी तभी होती है जब मामला हाईप्रोफाइल हो या जिसे मीडिया इस कदर उछाल दे कि पुलिस प्रशासन को अपनी नाक बचाने के लिए कार्रवाई करनी पड़े। राजनीतिज्ञों के घड़ियाली आंसू तो हर घटना के बाद आते हैं लेकिन देश में तांडव जारी है। जिन लोगों के मामले मीडिया की हैडलाइन नहीं बनते, ऐसे मामलों में न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सीवान में हुई पत्रकार राजदेव की हत्या के तार वर्षों से जेल में बंद अपराधी से राजनीतिज्ञ बने शहाबुद्दीन से जुड़ते दिख रहे हैं। जेल में बंद रहने के बावजूद शहाबुद्दीन का आतंक कम नहीं हुआ। उससे जुड़े गुर्गों ने बेखौफ होकर हत्याएं की हैं। जेलों की चारदीवारी में सुरक्षित रहकर आराम की जिंदगी बिताते हुए अपराधी वह सब कुछ कर रहे हैं जो वह बाहर रहकर सहजता से नहीं कर पाते। पत्रकार राजदेव के परिवार को न्याय मिलेगा, इसमें संदेह है। स्कूली छात्र आदित्य हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रॉकी यादव की मां और जनता दल (यू) से निलम्बित विधान पार्षद मनोरमा देवी ने अदालत में समर्पण कर दिया। इस मामले में मनोरमा के बाहुबली पति बिंदी यादव और बेटा राकी पहले ही जेल में बंद हैं। आदित्य हत्याकांड में इन सबकी गिरफ्तारी से पहले जिस तरह इन्होंने कानून की धज्जियां उड़ाईं और बेटे को बचाने के लिए तरह-तरह के नाटक किए उससे साफ है कि इस देश में न तो किसी को कानून का खौफ है और न पुलिस का। हरियाणा के सोनीपत जिला के करेवड़ा गांव में 15 दिनों में तीन लोगों की गोली मार कर हत्या किए जाने से पूरा गांव सहमा हुआ है। पुलिस के पहरे के बावजूद ग्रामीणों ने घरों से निकलना बंद कर दिया है। करेवड़ा गांव में संजय नाम के शख्स ने सरपंच पद का चुनाव लड़ा था। संजय का बड़ा भाई अजय उर्फ कन्नू आपराधिक प्रवृत्ति का है, वह ग्रामीणों को डराकर चुनाव जीतना चाहता था लेकिन किसी ने उसके भाई को वोट नहीं डाला। सरपंच का चुनाव हारने के बाद सड़क हादसे में अजय के भाई और बाप की मौत हो गई। इसके बाद अजय ने ग्रामीणों की हत्या कर दी। पहले उसने चुनाव जीतने वाले सरपंच को गोली मारी, फिर उसके दो दोस्तों को गोलियों से भून दिया जिसमें वीरेंद्र की मौत हो गई। उसके बाद उसने सेना में मेजर सुशील छिकारा के पिता जगवीर और उनके भाई अनिल की हत्या कर दी। अगर आज देश चैन की नींद सोता है तो इसका पूरा श्रेय सेना के जवानों को जाता है। सेना के जवानों ने अपनी शहादतें देकर सीमाओं की रक्षा की है। तपती दोपहरिया और शून्य से कम तापमान में भी वे अपनी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। अगर सैनिकों के परिवार ही सुरक्षित नहीं हैं तो फिर भविष्य में कौन सेना में भर्ती होगा। पुलिस ने अजय की गिरफ्तारी पर 5 लाख का इनाम घोषित कर रखा है। अब तक वह बदमाश के आगे बेबस दिखाई दे रही है। आम लोगों का पुलिस पर से विश्वास उठता जा रहा है। निर्दोषों की हत्याएं हो रही हैं। कुछ समय के लिए सनसनी पैदा होती है। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच ऐसा माहौल पैदा कर दिया जाता है कि अपराध नियंत्रण का असली मुद्दा ही कहीं खो जाता है। कौन-कौन इस तंत्र से लड़ेगा। देश में कई राज्यों में ऐसे बाहुबली, अपराधी सरगना हैं जिनकी आज की राजनीति में उपयोगिता है। वे किसी के लिए अछूते नहीं। पुलिस को चाहिए कि वह अपराधी को सिर्फ अपराध के दृष्टिकोण से ही देखें, उसे राजनीतिक दबाव में आकर काम नहीं करना चाहिए तभी वह अपराधों पर नियंत्रण पा सकेगी। अगर उसने निष्क्रिय रहना जारी रखा तो उसे भी जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है। लोकतंत्र में सबको न्याय मिलना चाहिए और वह भी जल्दी और सस्ते में लेकिन भारत में स्थिति ऐसी नहीं कि उन्हें त्वरित न्याय मिले। आम आदमी के लिए इंसाफ कितना महंगा है, यह सब जानते हैं। हालात बदतर हो रहे हैं और आम आदमी के लिए इंसाफ बहुत दूर खड़ा है और इंसाफ है तो वह पैसे वालों और बाहुबलियों के कदमों में है।
 

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