27 Apr 2024, 04:13:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- हर्षवर्धन पांडे
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी  ने राज्यसभा और प्रदेश विधान परिषद के आगामी चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार दो दिन पहले  सर्वसम्मति से घोषित कर दिए। इनमें हाल में सपा में वापस आए पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के अलावा अमर सिंह तथा बिल्डर संजय सेठ भी शामिल हैं। गौरतलब है कि बोर्ड के सदस्य सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव और प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खां अमर सिंह के मुखर विरोधी रहे हैं। राज्यसभा भेजे जाने के मद्देनजर अमर सिंह की सपा में वापसी के सवाल पर यादव ने कहा कि इस बारे में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव कोई निर्णय लेंगे। बहरहाल, राज्यसभा का अधिकृत प्रत्याशी बनाने के बाद अमर सिंह की सपा में वापसी मात्र औपचारिकता भर  रह गई है। मुलायम सिंह यादव  के प्रति अमर सिंह का प्रेम एक बार फिर जागने के कयास लगने शुरू हो गए हैं और पहली बार इन मुलाकातों के बाद एक नई तरह की किस्सागोई समाजवादी राजनीति को लेकर शुरू हो गई हैं।  यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण  है क्योंकी मुख्यमंत्री अखिलेश भी इस दौरान  नेताजी से मिले और अमर सिंह के मसले पर  साथ बैठकर उन्होंने  अपनी भावी राजनीति को लेकर कई चर्चाएं भी की। 

सभी ने यूपी की सियासत को साधने और मिशन 2017 को लेकर भी  मैराथन मंथन किया।  राज्य सभा की सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम के एलान के साथ ही उत्तर प्रदेश की  राजनीतिक  बिसात के केंद्र  में अमर सिंह एक बार फिर आ गए हैं। ऐसे में संभावना है कि उन्हें  राज्य सभा का टिकट मिलने के बाद देर सबेर उनकी सपा में घर वापसी तय है। यह तीसरा ऐसा  मौका है जब अमर सिंह नेताजी के साथ मिलकर हाल के दिनों में गलबहियां  सक्रियता बढ़ाकर उत्तर प्रदेश के हालात को लेकर  चर्चा की है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ब्रह्मास्त्र को छोड़ने के बाद अब सपा को समाजवादी राजनीति साधने के लिए एक ऐसे कुशल प्रबंधक की आवश्यकता है जो नमो के शाह की बराबरी कर सके लिहाजा नेता जी भी अमर सिंह के साथ अब गलबहियां करने में लगे हुए हैं। वह एक दौर में नेताजी के हनुमान रह चुके हैं।  
नेताजी भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं अगर यूपी में उन्हें मोदी के अश्वमेघ घोड़े की लगाम रोकनी है तो अमर सिंह सरीखे लोगों को पार्टी में वापस लाकर ही 2017  में होने वाले विधानसभा चुनाव तक  अपना जनाधार ना केवल मजबूत किया जा सकता है बल्कि कॉरपोरेट की छांव तले समाजवादी कुनबे में विस्तार किया जा सकता है।  अमर की पार्टी में दोबारा  वापसी की अटकलें अब राज्य सभा का टिकट मिलने के साथ ही  फिलहाल तेज हो चली हैं। हालांकि सब कुछ तय करने की चाबी खुद नेताजी के हाथों में है लेकिन  अब उनकी पार्टी में वापसी को लेकर बड़ी भूमिका देखने को मिल सकती है। हालांकि एक दौर में अमर सिंह ने खुद कहा था कि वह किसी राजनीतिक दल में शामिल होने नहीं जा रहे हैं। सक्रिय राजनीति में उनकी जिंदगी के 19  साल खर्च हुए हैं और अब वह भविष्य  में राज्यसभा का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा प्रयास नहीं करेंगे लेकिन राजनीति तो संभावनाओं का खेल है।

यहां कुछ भी संभव है लिहाजा अमर सिंह भी  बीती बातें भुलाकर राज्य सभा में जाने को बेताब हैं। अमर सिंह की सपा में एक दौर में ठसक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1995 में पार्टी ज्वॉइन करने के बाद नेताजी और सपा दोनों  को दिल्ली में स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।  तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने और उसमें नेताजी  की भूमिका बढ़ाने में भी अमर सिंह ही बड़े  सूत्रधार थे वहीं इंडो यू एस न्यूक्लियर डील में भी कड़ी का काम अमर सिंह ने ही किया जब उनके सांसदों ने मनमोहन सरकार की लाज यूपीए सरकार को  बाहर से समर्थन देकर बचाई।  यूपी की जमीन से इतर पहली बार विभिन्न राज्यों में पंख पसारने में अमर सिंह के मैनेजमेंट के किस्से आज भी समाजवादी कार्यकर्ता नहीं भूले हैं। 

अमर सिंह अखिलेश और नेताजी की खिचड़ी साथ पकने के बाद से ही दिल्ली में 16 अशोका रोड से लेकर 5 कालिदास मार्ग  लखनऊ तक हलचल मची हुई है। अमर सिंह नेता जी  से अपने घनिष्ठ संबंधो का फायदा उठाने  का कोई मौका  कम से कम अभी तो नहीं छोड़ना चाहते हैं।  शायद ही आगे चलकर उन्हें  इससे  बेहतर मौका कभी मिलें वैसे भी इस समय सपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार  उत्तर प्रदेश में चला रही है। नेताजी भी बड़े दूरदर्शी हैं, वक्त के मिजाज को वह बेहतर ढंग से पढना जानते हैं। 1996 में अपने पैंतरे से उन्होंने केंद्र में कांग्रेस को आने से जहां रोका वहीं बाद में वह खुद रक्षा मंत्री बन गए।  राजनीति का यह चतुरसुजान इस बात को बखूबी समझ रहा है कि अगर कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ एकजुट नहीं हुए तो आने वाले दौर में उनके जैसे छत्रपों की राजनीति पर सबसे बड़ा ग्रहण लग सकता है शायद इसीलिए वह इस सियासत का तोड़ खोजने निकले हैं जहां उनकी बिसात में अमर सिंह  ही अब सबसे फिट बैठते हैं। नेताजी  इस राजनीति के डीएनए को भी बखूबी समझ रहे  हैं।  ऐसे में अमर सिंह की घर वापसी अब राज्य सभा में इंट्री के बाद तय मानी जा रही है।

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