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बुद्धि की उपज को सुरक्षित रखे देश

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 17 2016 10:39AM | Updated Date: May 17 2016 10:39AM
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- अश्विनी कुमार
 -लेखक पंजाब केसरी दिल्ली  के संपादक हैं।


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की पहली राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) नीति को अपनी मंजूरी दे दी है। बौद्धिक संपदा अधिकारों का मसला काफी पेचीदा रहा है। इसे ट्रेडमार्क पहचान की रक्षा के लिए बनाया गया है। यह नीति एक विजन दस्तावेज है जिसमें समस्त बौद्धिक संपदाओं के बीच सहयोग संभव बनाया जाएगा। इसके अलावा संबंधित नियम भी तैयार किए जाएंगे। इस नीति का लक्ष्य समाज के सभी वर्गों में इसके आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ के बारे में जागरूकता पैदा करना है। यह सही है कि भारत के पास बहुत ही प्रभावी और मजबूत ट्रेडमार्क कानून है लेकिन यह नीति ट्रेडमार्क पंजीकरण की व्यवस्था तक ही सीमित है। जब देश में व्यापार, वाणिज्य, उद्योग विकास के पथ पर हो, नए-नए अविष्कार हो रहे हैं तब ऐसे में उनकी सुरक्षा के लिए आईपीआर बहुत जरूरी है।

नई नीति में संगीत और औद्योगिक ड्राइंग्स भी शामिल हैं। इसके तहत सरकार अनुसंधान एवं विकास संगठनों, शिक्षा संस्थानों, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उपक्रमों, स्टार्टअप और अन्य हितधारकों को शक्ति संपन्न बनाएगी ताकि अभिनव तथा रचनात्मक वातावरण तैयार किया जा सके। 2014 में नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद से ही अमरीकी कंपनियों के नेतृत्व में वैश्विक दवा कंपनियां भारत के बौद्धिक संपदा नियमों में परिवर्तन के लिए सरकार पर दबाव बना रही थीं। वैश्विक कंपनियों को अक्सर भारत के मूल्य नियंत्रण और मार्केटिंग प्रतिबंधों को लेकर शिकायत रही है। पिछले महीने ही अमरीकी व्यापार प्रतिनिधि ने भारत, चीन और रूस में आईपीआर संरक्षण में सुधार को लेकर बातचीत की थी। अमरीकी और अन्य पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों का उद्देश्य केवल लाभ कमाना ही होता है। बाजार के समक्ष मानवता हार रही है। दवाओं की कीमतें बहुत अधिक हैं।

जीवन रक्षक दवाएं वाजिब कीमत पर आम नागरिकों को उपलब्ध ही नहीं हैं। आईपीआर नीति के संबंध में जानकारी देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट कर दिया है कि दवाओं के मूल्यों को काबू में रखने के लिए स्वास्थ्य संबंधी विचारों के साथ पेटेंट कानूनों का संतुलन बनाना जरूरी है। सरकार अमरीका तथा अन्य देशों द्वारा पेटेंट कानून में संशोधन की मांग के दबाव में नहीं आई। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमेशा बाजार में एकाधिकार चाहती हैं लेकिन किसी भी देश को अपने हितों की चिंता करने का अधिकार है। भारत का बौद्धिक संपदा अधिकार कानून व्यापक और विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप है क्योंकि इसमें विदेशी कंपनियों के रचनात्मक उत्पादों और सेवाओं की रक्षा होगी। नई नीति का मकसद साफ है कि जब कोई व्यक्ति यहां कुछ नया ईजाद करे तो यह सुनिश्चत किया जा सके कि कोई दूसरा या तीसरा पक्ष उसका गलत तरीके से वाणिज्यिक इस्तेमाल नहीं कर सके।

कोई किसी दूसरे व्यक्ति की रचनात्मकता या खोज को चुरा न सके। हमारे यहां कॉपीराइट नियमों का उल्लंघन आम बात है। इसलिए यह जरूरी है कि आईपीआर की सुरक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा तैयार किया जाए और देश में प्रशिक्षित आईपीआर प्रोफेशनल्स तैयार किए जाएं। इससे भारत के बासमती चावल, दार्जिलिंग की चाय या कांजीपुरम की साड़ी और अन्य विशुद्ध भारतीय उत्पादों की सुरक्षा मजबूती से की जा सकेगी। फार्मास्यूटिकल्स के मामले में भारत और अमरीका में काफी अधिक तनातनी रही है। भारत की आईपीआर नीति के लागू होने से इस तनातनी के कम होने की सम्भावनाएं हैं। नई नीति के महत्वपूर्ण बिंदुओं में एक यह भी है कि 2017 से किसी भी ट्रेडमार्क के पंजीकरण में महज एक महीने का समय लगेगा, पहले इसमें चार माह का समय लगता था। भारत के चार पेटेंट कार्यालयों में लगभग 2 लाख 37 हजार से ज्यादा आवेदन लंबित पड़े हैं। इनका निपटारा किया जाना जरूरी है। इस नीति की देखरेख का काम सरकार के औद्योगिक नीति संवर्द्धन विभाग द्वारा किया जाएगा। आप कोई भी इनोवेशन आम करते हैं तो उसका पेटेंट करा लें। कोई भी विचार बुद्धि की उपज होता है, तरकीब हमारी बौद्धिक सम्पदा है, इसकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। व्यावसायिक रणनीतियों को सुरक्षित रखने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का उपयोग बेहद जरूरी है। उम्मीद है कि भारत के उद्यमी और अन्य प्रतिभाएं इस अधिकार का उपयोग करेंगी।
 

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