26 Apr 2024, 10:19:12 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-एस. निहाल सिंह
- समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अग्रणी उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक भाषण के दौरान भारतीयों के इंग्लिश उच्चारण का मखौल उड़ाते हुए कहा है कि इसे समझना बड़ा मुश्किल काम है। हालांकि देश के अनेक राज्यों में पहले चरण के चुनावों में जीत हासिल करने वाला जमीन-जायदाद का यह बड़ा व्यापारी अपनी टिप्पणियों के लिए बदनाम है, परंतु भारत के संदर्भ में इससे ज्यादा सच्ची और सटीक बात उन्होंने अभी तक नहीं कही। यह सही है कि भारत में सही इंग्लिश बोलने का स्तर आश्चर्यजनक गति से नीचे गिरता जा रहा है। कोई भी व्यक्ति बड़ी इंग्लिश अखबार उठाकर यह देख सकता है कि कैसे इस भाषा को तोड़-मरोड़ कर व्याकरण के उन आधारभूत नियमों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, जिसका तरीका अलबत्ता हमें छोटी कक्षाओं में ही सिखा दिया जाता है। जिन आम शब्दों और क्रियाओं का सही उपयोग हमें प्राथमिक कक्षाओं में ही सिखा दिया जाता है, उनका भी गलत इस्तेमाल अब रोजमर्रा देखने को मिल रहा है। हमारे यहां बोली जाने वाली इंग्लिश का स्तर क्या है, यह जानने का सबसे बढ़िया तरीका अग्रणी इंग्लिश टेलीविजन खबरिया चैनलों को देखकर लगाया जा सकता है कि कैसे उद्घोषक साधारण शब्दों का उच्चारण भी बड़े पैमाने पर गलत कर रहे हैं।

ज्यादातर अन्य वक्ता और उद्घोषक इतनी जहमत तक नहीं उठाते कि समय निकालकर यह सीख लिया जाए कि कैसे इस भाषा का सही उच्चारण किया जाना चाहिए। आलम यह है कि ज्यादातर उद्घोषकों के लिए आम शब्दों का सही उच्चारण कैसे करना है, इसे जानना एक पहेली जैसा है। ऐसे ही कुछ शब्दों को पेश कर रहा हूं, जिन्हें आमतौर पर दुनिया भर में गलत ढंग से उच्चारित किया जाता है । इसका सही उच्चारण यह है इसके पहले हिस्से यानी डेवेलप पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए और बाकी बचे शब्द मेंट पर अपेक्षाकृत कम जोर देना चाहिए, लेकिन हो यह रहा है कि पूरे शब्द पर एक सार और एक-सा जोर देकर बोला जा रहा है, गोया यह इंग्लिश भाषा न होकर एक फोनेटिक यानी स्वरलहरी हो। इसी तरह इंडस्ट्री और बट्रेस के मामलों में शब्दों का उच्चारण भी गलत ढंग से किया जाता है, जहां तक मैकेनिस्म शब्द की बात है तो इसका स्वरूप बिगाड़ कर इसे मकानिस्म बोला जा रहा है। एक इंग्लिश समाचार चैनल के उद्घोषक महोदय ऐसे भी हैं जो प्रिमिसिस (परिसर) शब्द को तोड़-मरोड़ कर इसमें एम अक्षर के बाद आई की जगह वाई की ध्वनि मिला रहे हैं और इसे प्रिमाईसेस उच्चारित करते हैं।
हमारे टीवी उद्घोषक जिनका काम खबरें पढ़ना और टिप्पणियां करना है, वे रिबेल (विद्रोही) शब्द के स्थितिजन्य उच्चारण को लेकर एकदम भ्रमित हैं।  फ्रेंच और जर्मन भाषा के नामों के उच्चारण के बारे में जितना कम कहें, उतना अच्छा। टेलीविजन चैनल चलाना एक महंगा सौदा होता है। फिर भी पैसे से भरपूर इन चैनलों ने यह तक सोचना गवारा नहीं किया कि वे अतिरिक्त समय और पैसा निकालकर अपने कर्मियों का इंग्लिश उच्चारण शुद्ध करवा सकें। और कुछ नहीं तो उन्हें विदेशी नामों के सही उच्चारण का लिखित निर्देश ही दे देते, भले ही भारतीय दर्शकों को यह उच्चारण सुनने में कितने ही अटपटे क्यों न लगें तो भी शुद्धता तो होनी ही चाहिए। यहां किसी पैसा बनाने वाले किसी रोशन दिमाग के लिए एक नया मौका सुझाता हूं और वह है कि जिस तादाद में नित इंग्लिश टीवी चैनल खुलते जा रहे हैं, ऐसे में शुद्ध उच्चारण सिखाने वाले योग्य उस्ताद के लिए यह समय चांदी कूटने का है। ऐसे टीवी कर्मी जो इंग्लिश का बुनियादी व्याकरण भूल चुके हैं या जिन्होंने कभी सीखा ही नहीं, उन्हें इंग्लिश शब्दों की खासियत को सही रूप में कैसे उच्चारण करना है, यह सिखाया जाना जरूरी है।

इससे पहले कि मैं उस व्यापारिक बुद्धि वाले व्यक्ति को सब्जबाग दिखाऊं, यहां पर एक चेतावनी भी जरूरी है कि जानबूझकर जो इंग्लिश शब्दों का गलत उच्चारण किया जा रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि इसके पीछे ‘मुझे क्या परवाह’ जैसा रुख हो या फिर अतिशयोक्ति के तौर पर कहें तो लोगों द्वारा विदेशी शासन से मिली आजादी को मनाने एक तरीका भी हो सकता है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने इस समस्या का हल अपने तौर यह निकाला है कि जहां तक हो सके इंग्लिश में बात ही न की जाए। अरुण जेटली जैसे दुर्लभ वक्तओं को छोड़कर उनकी भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश नेताओं की अंग्रेजी इतनी साधारण है कि जब इंग्लिश चैनलों में उनसे अंग्रेजी में सवाल किए जाते हैं तो वे जवाब हिंदी में ही देते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से इंग्लिश बोलने में अच्छी महारत हासिल कर ली है। भले ही उनका अंग्रेजी बोलने का लहजा कुछ-कुछ गाना गाने जैसा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय दर्शकों से संवाद के लिए यह भाषा जरूरी है। बेशक औपचारिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिंदी में संबोधन करना राष्ट्रीयता की गौरवमयी निशानी समझा जाता है लेकिन दुनिया के बड़े नेताओं से अनौपचारिक बैठकों में इंग्लिश भाषा, जिसके साथ हमारा काफी पुराना राब्ता है, इसके बिना गुजारा नहीं हो सकता। नई सरकार के राज में जिस तरह से हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह दी जा रही है, उससे इंग्लिश के स्तर में गिरावट आएगी, यह तो होना ही है। जब तक इंग्लिश का प्रचलन भारत या कोई अन्य देश कानूनन हटा नहीं देता तब तक यह उन भारतीयों में संपर्क भाषा का काम करती रहेगी, जिन्हें हिंदी अच्छी तरह नहीं आती। यही वजह है कि इतने सारे इंग्लिश टीवी चैनल हमारे यहां हैं। यह हमारा फर्ज है कि हम इस भाषा को सही तरह से लिखें और बोलें। सही इंग्लिश लिखना और बोलना एक चुनौती के तौर पर लेकर हमें इसमें अपनी महारत सिद्ध कर देनी चाहिए। इंग्लिश में प्रवीण होने और सही बोलने का मतलब अपने गुलामी वाले काल में फिर से लौटना नहीं है बल्कि यह द्योतक है उस भाषा में हमारी काबिलियत का जो आज एक तरह से विश्व-भाषा बन गई है।

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