08 May 2024, 17:22:14 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-कृष्णमोहन झा
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं

देश के जिन पांच राज्यों में इस समय विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल रही है उनमें पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों पर सारे देश की नजरें लगी हुई हैं। राज्य में मतदान प्रक्रिया के तीन चरण संपन्न हो चुके हैं। शेष तीन चरण 25 अप्रैल, 30 अप्रैल और 5 मई को संपन्न होने के बाद 19 मई की मतगणना कराई जाएगी। उसी दिन असम, केरल, पुंडुचेरी, तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों के लिए मतगणना संपन्न होगी। प. बंगाल के ताजा विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की जीतने की संभावनाएं सबसे बलवती मानी जा रही है। तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के लिए माकपा-कांग्रेस गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी जी तोड़ मेहनत कर रही है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि तृणमूल कांग्रेस को स्वयं भी इन विधानसभा चुनावों में वैसी शानदार जीत की उम्मीद नहीं है जैसी कि उसे सन् 2011 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में मिली थी परंतु माकपा-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा को भी इस हकीकत का अहसास हो चुका है कि तृणमूल कांग्रेस के हाथ से सत्ता की बागडोर छुड़ा लेने की स्थिति में नहीं है। गौरतलब है कि सन् 2011 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी ने मिलकर सत्ता हासिल की थी और 293 सदस्यीय विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस को 184 सीटों पर और कांग्रेस को 42 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाबी मिली थी।

राज्य मेंं 34 सालों से सत्ता पर काबिज रहे वाम मोर्चे को ममता लहर ने शर्मनाक हार का मुंह देखने के लिए विवश कर दिया था। बाद में कांग्रेस से नाता तोड़कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अकेले ही सत्ता की बागडोर थाम ली थी और कांग्रेस को विपक्ष में बैठने पर मजबूर कर दिया था। ममता बैनर्जी सरकार द्वारा की गई अनेक गलतियों के बावजूद पिछले पांच सालों में वाममोर्चा और कांग्रेस खुद को इतना ताकतवर नहीं बना पाए कि वे इन विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को कोई तगड़ी चुनौती पेश कर पाते। लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को राज्य में जो सफलता मिली थी उसके बाद वह इतनी आशान्वित हो उठी थी कि इन विधानसभा चुनावों में उसने अपनी शानदार जीत का सुनहरा सपना संजो लिया था परंतु वह अब इस हकीकत का पूर्वानुमान लगा चुकी है कि अभी उसे कड़ी मेहनत करना है। कोलकाता नगर निगम चुनावों में भाजपा को जो कामयाबी मिली थी उसने पार्टी की उम्मीदे जरूर बढ़ा दी थी परंतु उस कामयाबी से भी भाजपा के हौसले इन विधानसभा चुनावों में बुलंदियों पर पहुंचे हुए दिखाई नहीं देते। यह भी दिलचस्पी का विषय है कि भाजपा भले ही राज्य विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल सरकार को टक्कर देने के लिए मैदान में मौजूद है परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह समय समय पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ की है उससे यह संदेह भी पनपता है कि राष्ट्रीय स्तर पर दोनों दलों के बीच निकटता की गुंजायश अभी बरकरार है।

दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को असली परेशानी तो विधानसभा चुनावों में अपनी ही पार्टी के उन नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के कारण हो रही है जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस की सरकार के दौरान पिछले पांच सालों में ममता बनर्जी की लोकप्रियता का नाजायज लाभ उठाने में तनिक भी संकोच नहीं किया।  हाल में ही हुए स्टिंग आपरेशन में तृणमूल कांग्रेस सांसदों द्वारा रिश्वत लेते हुए पकड़ जाने की घटना ने भी मुख्यमंत्री को परेशानी में डाला। गौरतलब है कि इस मामले की जांच एक संसदीय समिति द्वारा कराए जाने का आदेश लोकसभा स्पीकर दे चुकी है।

कालकाता में विगत दिनों एक फ्लाईओवर के ध्वस्त हो जाने की शर्मनाक घटना ने भी सरकार की किरकिरी कराई थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और माकपा नेताओं ने यह आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार ने अपनी ही पार्टी के व्यक्ति को फ्लाई ओवर निर्माण के लिए सामग्री की आपूर्ति का ठेका दिया था जिसने घटिया सामग्री की आपूर्ति की। कांग्रेस-माकपा गठबंधन ने आरोप लगाया है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक हत्याओं में उन तृणमूल कांग्रेस कार्यकतार्ओं का हाथ है जो ममता सरकार के रहते निरंकुश हो गए हैं। गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर राज्य में भय और आतंक का वातावरण निर्मित करने के आरोप  बार-बार लगने से भी मुख्यमंत्री की परेशानियां बढ़ी है। महिलाओं पर हुए अत्याचारों की घटनाओं तथा राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को भी माकपा-कांग्रेस गठबंधन ने चुनावी मुद्दों में प्रमुखता से शामिल किया है।  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने ही पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिली परेशानी के बावजूद अगर दुबारा अपनी पार्टी के सत्ता में लौटने का भरोसा है तो उसकी एक मुख्य वजह यह है कि उनके मुस्लिम वोट बैंक में कोई दल सेंध लगाने की स्थिति में नहीं है। सिंगुर में 2011 में उन्होंने टाटा संयत्र लगाने के विरोध में जो आंदोलन किया था उसने राज्य के मुस्लिम मतदाताओं को पूरी तरह उनके पक्ष में कर दिया था और उन्होंने तृणमूल कांग्रेस को गत विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत दिलाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे मतदाता आज भी दीदी को अपना सबसे बड़ा हितैषी मानते है। इन चुनावों में भी उनका समर्थन ममता बनर्जी को ही मिलना तय माना जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह भी भरोसा है कि उन्होंने ग्रामीण जनता, विद्यार्थियों और युवा वर्ग के लिए मनोरंजन के जो साधन जुटा दिए है उसका लाभ भी उन्हें चुनावों में मिलेगा। कांग्रेस-माकपा गठबंधन को प्रदेश की जनता ने कितना पसंद किया है उससे भी चुनाव परिणाम प्रभावित होना तय है लेकिन यह भी एक हकीकत है कि वाम दलों के प्रति जनता का असंतोष अभी भी इतना कम नहीं हुआ है कि दोनों दल सता में आने की रंगीन कल्पनाओं में खो जाए।
 

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