-वीना नागपाल
कहते हैं पानी का कोई रंग नहीं होता, पर महाराष्ट्र के लातूर और उसके आसपास व दूर-दराज के इलाकों की महिलाओं से पूछिए। वह बताएंगी कि पानी का रंग कैसा होता है? उन्हें इतनी दूर-दूर जाकर इतनी मेहनत से सिर्फ एक घड़ा भर पानी जो मिलता है, वह लाना होता है कि उनकी आंखों के आगे कभी अंधेरा छा जाता है तो कभी चक्कर आने से लाल,पीले, नीले तारे चमकने लगते हंै। कभी यह पानी मटमैला होता है तो कभी कीचड़ से भरा गंदेला तक होता है। वह इसका रंग देखे बगैर बस एक मटका पानी को तरसती हुर्इं और केवल इतना भर पानी मिलने से ही संतोष कर लेती हैं। यह पानी भी उन्हें आठ या दस किलोमीटर जाकर मिलता है। पिछले दिनों एक खबर आई थी कि एक 13-14 वर्षीय लड़की कई दिनों से इतनी दूर से दिन में दो-तीन बार चलकर एक-दो मटके पानी भरकर ला रही थी कि एक दिन दोपहर में वह चक्कर खाकर गिर पड़ी और उसकी मृत्यु हो गई। क्या अब भी बताने की जरूरत है कि पानी का रंग कैसा होता है? आप सबने समाचार पत्रों में वह तस्वीरें देखी होंगी कि महिलाएं पैरों के नीचे जलती जमीन और सिर पर पड़ती चिल-चिलाती धूप की परवाह किए बगैर दूर-दूर से पानी ढोकर लाती हैं। पता नहीं पानी लाने और उसकी तलाश करने का जिम्मा महिलाओं के हिस्से में ही क्या आया है? अभी एक और समाचार आया है कि इन भयंकर सूखा ग्रस्त इलाकों में मर्द अब भी पेड़ों के नीचे बैठे पत्ते खेलते रहते हैं या बीड़ियां, चिलम फूंकते रहते हैं और महिलाएं व लड़कियां ही पानी ढो-ढोकर लाती हैं। बहुत दर्दनाक है यह। महिलाओं के हिस्से में यह क्यों आया है कि वह घर-परिवार के मर्दों की प्यास बुझाती रहें और फिर भी उन्हें कमजोर और अक्षम माना जाए।
महाराष्ट्र के इन इलाकों और बुंदेलखंड में पडे सूखे ने पानी का महत्व समझाया है कि नहीं, यह तो पता नहीं पर, इसे समझना बहुत जरूरी हो गया है। इन भयंकर सूखे के दृश्यों को देखकर अब तो पानी के संरक्षण के लिए चेत जाना चाहिए। भरे हुए गिलास का जूठा पानी सिंक में फेंकने से पहले रूक जाएं। गिलास में पानी उतना ही लें जितनी प्यास हो। भारतीय शिष्टाचार में अतिथियों का स्वागत पानी के गिलास से ही शुरू होता है पर अब आधा भरा गिलास भी उनको दें तो आपके आतिथ्य सत्कार में कोई कमी नहीं आएगी। शहरों में आजकल गृहिणियां वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने की आदी हो गई हैं। इसे रोज लगाने के स्थान सप्ताह में एक या दो बार ही लगाएं। इसका पानी नाली में बहाने के स्थान पर घर के टॉयलेट व बाथरूम धोने के काम तथा घर में पोंछा लगाने के काम में ले सकते हैं। नल लगातार खोल कर बर्तन धोने के स्थान पर एक टब में पानी भरकर बर्तन धलुवाए जा सकते हैं। वैसे तो आजकल इन सब उपायों के बारे में बताने या सुझाव देने की जरूरत नहीं है। महिलाएं स्वयं बहुत जागरूक हैं और समाचारों व टीवी के माध्यम से भी इस विषय में बहुत जानकारी दी जा रही है और उसे समझा भी जा रहा है।
इन सबके बावजूद कई बार लापरवाही हो ही जाती है। उस समय लातूर तथा अन्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों की महिलाओं का पीड़ा भरे श्रम का दृश्य अपनी आंखों के सामने एक बार अवश्य लाएं। यह तो तय है कि अपने परिवार को किसी भी अभाव में पड़े हुए देखकर सबसे पहले महिलाएं ही चिंतित होती हैं और उसे दूर करने के लिए जुट जाती हैं। जल की आपूर्ति एक ऐसी ही समस्या है जिससे महिलाओं को ही सबसे पहले सामना करना पड़ता है। अच्छा यही होगा कि हम सब महिलाएं मिलकर जल संरक्षण के अभियान में जुट जाएं और अपने परिवारोंं को आने वाली किसी भी त्रासदी से बचा लें। हम तो यह भी मानते हैं कि यदि हम इस अभियान में जुटेंगे तो एक प्रकार से सूखाग्रस्त इलाके की उन महिलाओं के संघर्ष की भी साझेदारी कर पाएंगे जो पानी के लिए इतनी मेहनत कर रही हैं। हम उनके पसीने की बूंदों को शायद पोंछने की कोशिश कर पाएं। पानी का रंग हमारी समझ में भी आ जाए।
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